राजनैतिकशिक्षा

सोशल मीडिया की जिम्मेदारी

-डा. वरिंदर भाटिया-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

देश में सोशल मीडिया की रेगुलेशन से जुड़ा सवाल वाद-विवाद में है। ताजा जानकारी के अनुसार भारत के नए डिजिटल नियमों को लगभग सभी सोशल मीडिया कंपनियों ने मान लिया है। इस संबंध में सभी प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफार्म ने केंद्रीय आईटी मंत्रालय को जवाब भी दे दिया है। हालांकि एक बहुचर्चित माइक्रो-ब्लॉगिंग वेबसाइट ने अब तक सरकार के डिजिटल नियमों को मानने की दिशा में कोई प्रतिक्रिया या जवाब नहीं दिया है। इन नए डिजिटल नियमों के विरोध को वाजिब साबित करने के लिए अभिव्यक्ति की आजादी का खतरा दलील के रूप में सामने लाया जा रहा है। इन नियमों को लाने से ठीक कुछ दिन पहले एक माइक्रो ब्लॉगिंग साइट के साथ भारत सरकार का विवाद करीब हजार अकाउंट्स को सस्पेंड करने को लेकर सामने आया था। तब इस साइट ने ब्लॉग पोस्ट कर जवाब देते हुए कहा था कि कंपनी अभिव्यक्ति की आजादी के पक्ष में है और यह कहना कि शासन ने जिस आधार पर इस साइट के अकाउंट्स बंद करने को कहा है, वह भारतीय कानून के अनुरूप नहीं है।

सोशल मीडिया की रेगुलेशन से जुड़े इन नए नियमों से असहमति जताने वाले बताते हैं कि नए आईटी नियमों में कोई नियंत्रण और संतुलन समझ में नहीं आता है। उन्हें ऐसा लगता है मानो सर्विस प्रोवाइडर के हाथ में अब कुछ रह ही नहीं जाएगा। उनसे जो जानकारी मांगी जाएगी, उसे देनी होगी और अगर ऐसा नहीं होता तो उन पर और उनके शीर्ष प्रबंधन पर आपराधिक मुकदमा हो सकता है। नियमों के आलोचकों का मत है कि ये नियमों की कसावट सरकार और कंपनियों में तालमेल को कम करते हुए कंट्रोल बढ़ाने वाला कदम है। इन नियमों से असहमति रखने वालों का कहना है कि ये इस सोशल मीडिया सेक्टर को डराने और मारने की कोशिश लगती है। नए नियमों के मुताबिक इन कंपनियों को ड्यू डिलिजेंस यानी उचित सावधानी का पालन करना होगा। इसके अंतर्गत शिकायत निवारण तंत्र, उपयोगकर्ताओं की ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करना, गैर-कानूनी जानकारी को हटाना, उपयोगकर्ताओं को सुनने का अवसर देना, स्वैच्छिक उपयोगकर्ता सत्यापन तंत्र की स्थापना आदि शामिल है। इसके अलावा कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ चैबीसों घंटे समन्वय के लिए एक नोडल संपर्क अधिकारी और एक शिकायत अधिकारी की नियुक्ति और प्राप्त शिकायतों की जानकारी और उन पर की गई कार्रवाई के साथ-साथ इन सोशल मीडिया मध्यस्थों द्वारा सक्रिय रूप से हटाई गई सामग्री के विवरण का उल्लेख करते हुए एक मासिक अनुपालन रिपोर्ट भी प्रकाशित करनी होगी। जो पूरी जिम्मेदारी एक तरीके से सर्विस प्रोवाइडर पर डालने वाली बात लगती है। इन नियमों के आलोचक कहते हैं कि इन नियमों के जरिए शासन इन कंपनियों पर अपना आधिपत्य रखना चाहता है। उनका कहना है कि ये नियम-कानून बताए तो नागरिकों के हित में जा रहे हैं, लेकिन ये कब सरकार हित में काम करने लग जाएं, ये कहना मुश्किल है। जैसे जिन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के पास 50 लाख से अधिक उपयोगकर्ता हैं, उन्हें सरकार ने शिकायत अधिकारी नियुक्त करने के लिए तीन महीने का समय दिया था। इसके बाद आपराधिक कार्रवाई की बात भी कही गई है। हमें कहना है कि सुनने में ये प्रावधान सही तो लगता है, लेकिन वो लागू कैसे होता है, ये इच्छाशक्ति पर निर्भर करेगा। इन कानूनों के पक्ष में कहा जा रहा है कि इसे जनता और हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श के बाद लाया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि नए कानून इंटरनेट स्पेस को सुरक्षित और विकसित करने के लिए जरूरी हैं, लेकिन इन पर चैक्स और बैलेंसिस भी लगाना जरूरी है जिससे इनके दुरुपयोग की संभावना कम हो सके और लोग खुले माहौल में संवाद कर सकें। शासन का सोशल मीडिया की रेगुलेशन के पक्ष में अनेक प्रबल मत है जैसे कि इन सभी सोशल मीडिया कंपनियों को भारत में तगड़ा मुनाफा हो रहा है।

सोशल मीडिया का दायरा काफी बड़ा है। भारत अपनी डिजिटल संप्रभुता से समझौता नहीं कर सकता है। सोशल मीडिया कंपनियों को आपत्तिजनक मैसेज मिलने के 36 घंटों के भीतर यह पता लगाना होगा कि यह मैसेज कहां से आ रहा है। इसके साथ ही उन्हें ड्यू डिलिजेंस (मैसेज की जांच) करना होगा। चीफ कंप्लाएंस ऑफिसर की नियुक्ति करनी होगी। यह वो पद है जिससे किसी समस्या के समाधान के लिए संपर्क किया जा सकेगा। तमाम तर्क देने के बाद मत है कि सोशल मीडिया पर निजता का सम्मान करना ही होगा और शासन व्यवस्था इसका भरोसा भी दिलाए कि वो निजता के अधिकार का सम्मान करती है। निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। और ऐसा बार-बार कहा भी जा रहा है कि नए नियमों में भी किसी तरह किसी भारतीय के निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जाएगा। सोशल मीडिया से जुड़े ऐसे कई तमाशबीन और अत्यंत नाजुक मामले सामने आए हैं जहां आपत्तिजनक संदेशों को बार-बार सोशल मीडिया पर सर्कुलेट किया गया। इससे देश में अराजकता फैलती है। ऐसे में क्या जरूरी नहीं कि यह पता किया जाए कि किसने इन संदेशों को पोस्ट किया है। क्या ऐसे लोगों को ढूंढना और सजा दिलाना जरूरी नहीं है। जरूरी यह भी है कि नए नियमों का इस्तेमाल सिर्फ ऐसे मामलों की रोकथाम, जांच और दंड दिलाने के लिए हो। और तो और, कुछ ऐसी स्थिति में कंटेंट के सोर्स की जानकारी मांगी जानी ठीक होगी जिसमें ‘बेहद गंभीर अपराध’ वाले संदेश जो देश की अखंडता, संप्रभुता से जुड़े हों, देश की सुरक्षा से जुड़े हों, आंतरिक सुरक्षा से जुड़े हों, किसी दोस्ताना संबंधों वाले देश से जुड़े हों या इन सभी मामलों में भड़काऊ संदेश हों, यौन उत्पीड़न से जुड़े हों, यौन विषयक सामग्री से जुड़े हों, बच्चों के यौन उत्पीड़न से संबंधित सामग्री से जुड़े हों, ‘फ्री स्पीच’ का हवाला देते हुए कई ओटीटी प्लेटफॉर्म भी ऐसे कई कंटेंट प्रसारित करते हैं, जिससे समस्याएं पैदा हो जाती हैं। इन पर कंटेंट को लेकर कोई सेंसर बोर्ड नहीं है, जिसकी वजह से हिंसा से भरा या अश्लील कंटेंट भी सबके लिए आसानी से उपलब्ध हो जाता है। यह कंटेंट सामाजिक जहर ही है। अभी तक इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट की धारा 79 के तहत इन सोशल मीडिया कंपनियों को इंटरमीडियरी के नाते किसी भी तरह की जवाबदेही से छूट मिली हुई थी, जिसका मतलब यह था कि इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अगर कोई आपत्तिजनक जानकारी भी आती थी, तब भी यह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उसकी जिम्मेदारी लेने से बच सकते थे और इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकती थी। यह ठीक नहीं कहा जा सकता है, लेकिन अब जारी किए गए आधिकारिक दिशा-निर्देशों से साफ है कि अगर ये कंपनियां इन नियमों का पालन नहीं करती हैं तो उनका इंटरमीडियरी स्टेटस छिन सकता है और वे भारत के मौजूदा कानूनों के तहत आपराधिक कार्रवाई के दायरे में आ सकती हैं। सरकार इसको रेगुलेट करना चाहती है तो यह सिरे से गलत नहीं लग रहा, बशर्ते रेगुलेटरी सिस्टम पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर काम न करे। सोशल मीडिया की संतुलित रेगुलेशन की देश में जरूरत है जिससे देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को सुरक्षित रखा जा सके। सोशल मीडिया की सामाजिक जिम्मेदारी महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।

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