निजता की रक्षा
-सिद्वार्थ शंकर-
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
वॉट्सएप और केंद्र सरकार के बीच डेटा की निजता को लेकर विवाद गरमाता जा रहा है। यह विवाद तीन महीने पहले जारी किए गए आईटी नियमों को लेकर उठा है। इनमें से एक नियम के अनुसार, वॉट्सएप और वैसी ही दूसरी कंपनियों को ऐप पर भेजे गए मैसेज के ओरिजिन की जानकारी रखनी होगी। वॉट्सऐप का कहना है कि यह किसी भी व्यक्ति की निजता का उल्लंघन होगा। इस नियम के खिलाफ वॉट्सएप दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचा है। उधर, मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड आईटी ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए एक प्रेस नोट जारी किया है। इस प्रेस नोट में केंद्र ने वॉट्सएप के आरोप का जवाब दिया है। सरकार ने साफ कहा है कि केंद्र निजता के अधिकार का सम्मान करता है। जब सरकार किसी खास मैसेज के ओरिजिन के बारे में जानना चाहती है तो उसकी मंशा किसी की निजता के उल्लंघन की नहीं होती। काफी जद्दोजहद के बाद फेसबुक और गूगल ने यह साफ कर दिया है कि वह भारत के सूचना तकनीक नियमों के प्रावधानों का अनुपालन करेंगे। मगर ट्विटर और वाट्सएप अब भी सरकार के नए नियमों से खुश नहीं हैं। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि सोशल मीडिया के नए नियम केवल दुरुपयोग रोकने के लिए बनाए गए हैं। इससे यूजर्स की निजता को किसी प्रकार का खतरा नहीं है। सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करने के लिए नए आईटी नियम जारी किए थे, जो 25 मई से प्रभावी हो गए हैं। इसे लेकर फेसबुक के मालिकाना हक वाले मैसेजिंग एप व्हाट्सएप ने भारत सरकार के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया कि नए नियम असंवैधानिक हैं। ये नियम आईटी नियम निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। ऐसे में इन्हें लागू किए जाने से रोका जाना चाहिए। अगर नियमों की बात करें तो सोशल मीडिया कंपनियों के लिए हर मैसेज के स्रोत का पता लगाना अनिवार्य रहेगा। अधिकृत एजेंसियों की आपत्ति के 36 घंटे के भीतर आपत्तिजनक सामग्री हटानी पड़ेगी। अश्लील पोस्ट के अलावा उस तस्वीरों को शिकायत मिलने के 24 घंटे के अंदर हटाना होगा, जिनसे छेड़छाड़ की गई है। कंपनियों को देश में मुख्य अनुपालन अधिकारी, नोडल अधिकारी और शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करना पड़ेगा। कहा जा रहा है कि नए आईटी नियम के तहत सोशल मीडिया कंपनियों को एक मासिक रिपोर्ट प्रकाशित करनी होगी, जिसमें प्राप्त शिकायतों, उनमें की गई कार्रवाई और मंच से हटाई/प्रतिबंधित की गई सामग्री का ब्योरा देना अनिवार्य रहेगा। इसके साथ ही कंपनियों को अपनी वेबसाइट या एप या फिर दोनों पर भारत में संपर्क का पता देना होगा। देश की सुरक्षा-संप्रभुता, कानून व्यवस्था को नुकसान पहुंचानी वाली सामग्री का स्रोत बताना पड़ेगा। नए आईटी नियमों पर अमल नहीं करनी वाली कंपनियों को अपना ‘मध्यस्थ्य का दर्जा खोना पड़ेगा। यह दर्जा कंपनियों को तीसरे पक्ष की ओर से जारी सामग्री/डाटा की जवाबदेही से छूट मुहैया करता है। इससे एप पर जारी होने वाली हर सामग्री का स्रोत संबंधित सोशल मीडिया कंपनी को ही माना जाएगा। यही नहीं, साइट पर आपत्तिजनक सामग्री के प्रसार की कानूनी जवाबदेही भी संबंधित कंपनी की ही होगी। प्रकाशक के रूप में कोई भी सामग्री जारी होने से पहले कंपनियों को उसमें जरूरी काट-छांट करनी पड़ेगी। व्हॉट्सएप ने इन नियमों को अदालत में चुनौती दी है, जबकि फेसबुक-गूगल ने अमल करने का भरोसा तो दिलाया है, लेकिन इसकी समयसीमा नहीं घोषित की है। वहीं, ट्विटर ने फिलहाल अपने पत्ते नहीं खोले हैं। जानकारों का कहना है कि कंपनियां नए नियमों में कुछ बदलाव चाहती हैं। वे इनके क्रियान्वयन के लिए छह महीने की मोहलत देने की भी पक्षधर हैं। बता दें कि साल 2011 में यूपीए के शासनकाल में आईटी इंटरमीडियरी नियम बने थे। आईटी एक्ट के सेक्शन-87 के तहत केंद्र सरकार ने 2018 में इन नियमों में बदलाव के लिए ड्राफ्ट जारी किया था। तकरीबन 3 साल तक चर्चा के बाद 25 फरवरी 2021 को इन नियमों को नोटिफाई किया गया। इन्हें लागू करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स को 3 महीने का समय दिया गया था। डेडलाइन 25 मई को खत्म हो गई। वॉट्सएप ने सिर्फ एक नियम को चुनौती दी है, लेकिन अन्य सभी नियमों के पालन के लिए ट्विटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक समेत सभी बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स को कंप्लायंस रिपोर्ट देनी चाहिए। सही है कि अगर सोशल मीडिया के मंचों पर की गई अभिव्यक्तियां देश की संप्रभुता या किसी व्यक्ति की गरिमा को नुकसान पहुंचाती हैं, अश्लीलता से जुड़े नियमों के खिलाफ हैं तो उसे नियंत्रित करने की जरूरत है। इसीलिए सरकार ने नए लागू प्रावधानों में यह व्यवस्था भी की है कि अगर किसी सामग्री पर सरकार की ओर से चिंता जताई जाती है तो सोशल मीडिया कंपनियों को उसे छत्तीस घंटे के भीतर हटाना होगा। सवाल है कि यह कैसे तय होगा कि सरकार की ओर से जताई जाने वाली सभी आपत्तियां किसी रूप में लोकतंत्र और लोगों की अभिव्यक्ति के अधिकार को चोट नहीं पहुंचाएंगी।