राजनैतिकशिक्षा

किसान आंदोलन में कोरोना

-सिद्वार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

देश में कोरोना की सुनामी आई हुई है। इस कारण केंद्र से लेकर सभी राज्य सरकारें परेशान हैं। कोरोना का संक्रमण अब कृषि कानूनों के विरोध का झंडा लेकर बैठे किसान आंदोलन तक पहुंच चुका है। कोरोना से दो किसानों की मौत हो चुकी है और कई बीमार हैं। बावजूद इसके किसान न तो टेस्ट करा रहे हैं और न ही वैक्सीन ले रहे हैं। किसानों का यह हठ कोरोना का सुपर स्प्रेडर बन सकता है। किसानों का प्रदर्शन 26 नवंबर 2020 से लगातार जारी है। मार्च तक सब ठीक था, मगर अप्रैल में दूसरी लहर आने के बाद सरकार एक्टिव हुई तो इसे किसानों ने आन पर ले लिया। वे गरजने लगे कि यहां से कोई नहीं जाएगा। कोरोना है ही नहीं। नतीजा यह हुआ कि अब आंदोलन स्थल पर न तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है और न ही कोई मास्क लगा रहा है। भले ही यह प्रदर्शन दिल्ली की गाजीपुर, सिंघु, टिकरी आदि चंद सीमाओं तक सीमित हो, लेकिन किसान नेता अपने आंदेलन को बड़ा बताने में कोई कमी नहीं कर रहे हैं। अब जबकि दो किसानों की कोरोना से मौत हो चुकी है, तो सेाचिए संक्रमण कितनों में फैला होगा। आंदोलन में हर राज्य से किसान आ रहे हैं और वापस गांव को लौट रहे हैं। यह स्थिति देश में संक्रमण को भयावह बना सकती है। कहा जा रहा है कि आंदोलन स्थल पर डटे किसानों में से इस समय 15 फीसद बीमार हैं। इनको बुखार, खांसी-जुकाम की शिकायत है। यह स्थिति स्वास्थ्य विभाग के कैंपों में साफ दिखती है। सेक्टर-9 मोड़ पर विभाग की ओर से शुरुआत से ही मेडिकल कैंप चल रहा है। यहां पर रोजाना करीब 100 आंदोलनकारी दवा लेने के लिए आते हैं। इनमें से 15 बुखार पीडि़त मिलते हैं। जिला प्रशासन की ओर से 22 अप्रैल को टीकरी बार्डर पर बैठे आंदोलनकारियों के साथ बातचीत और उसमें डीसी व एसपी ने सभी से वैक्सीनेशन की अपील की थी। हालांकि टेस्टिंग के लिए तो अभी तक कोई भी तैयार नहीं है, मगर दर्जनभर किसानों ने वैक्सीन ली है। इसके बाद केंद्र खाली पड़े हैं। रोजाना बॉर्डर पर दो जगहों पर सभाओं में आंदोलनकारियों का जुटना ही कोरोना संक्रमण फैलने के रिस्क को बढ़ा रहा है। आंदोलनकारियों द्वारा लगातार उनके बीच कोरोना संक्रमण न होने का दावा किया जा रहा है, मगर स्वास्थ्य विभाग का तर्क है कि इसको लेकर तो स्थिति तभी साफ होगी, जब ये आंदोलनकारी अपना टेस्ट करवाएंगे। टेस्ट भी यदि बाद का विषय मान लिया जाए तो कम से कम एहतियात के तौर पर जो वैक्सीन कोरोना से बचाव में उपयोगी है, उससे तो किसी को भी परहेज नहीं करना चाहिए। इस प्रदर्शन को लेकर सर्वोच्च न्यायालय कई बार किसानों को फटकार लगा चुका है। न्यायालय ने कई बार उन्हें कहा है कि आपको आंदोलन करना है तो करिए, लेकिन दूसरों की परेशानी मत बढ़ाइए। मगर नेता चंद किसानों को बहकाकर अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए आंदोलन जारी रखने पर अमादा हैं। हालांकि कुछ दिनों से देश में कोरोना संक्रमण की दर पहले की तुलना में घटती हुई दर्ज हो रही है, मगर गांवों में फैल गई इस महामारी से सरकारों के माथे पर स्वाभाविक ही चिंता की लकीर गहरा गई है। कुछ राज्यों में स्थिति बहुत बुरी है। इसे लेकर प्रधानमंत्री ने भी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को अतिरिक्त सतर्कता बरतने की सलाह दी है। उत्तर प्रदेश में इलाज न मिल पाने की वजह से इतनी अधिक मौतें हो रही हैं कि मृतकों का अंतिम संस्कार करना भी मुश्किल बना हुआ है। कोरोना की पहली लहर के समय ही चिंता जताई जा रही थी कि अगर यह संक्रमण गांवों में फैलना शुरू हो गया, तो उस पर काबू पाना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सुविधाएं पहले ही सबसे खराब स्थिति में हैं। मगर उस समय भी मुख्य रूप से इस संक्रमण को रोकने की तैयारियां शहरों में ही केंद्रित रहीं, गांवों में इसके लिए कोई एहतियाती उपाय नहीं किए गए। मगर अब उपाय शुरू हुए हैं तो किसान इसमें अडंगा डालकर बैठे हैं। एक बार किसान आंदोलन कोरोना का सुपर स्प्रेडर बना तो हम देश में बीमारी फैलने की कल्पना भी नहीं कर सकते। बेहतर है कि किसान जिद छोड़ें और घरों को लौट जाएं। एक बार सब ठीक हो जाए तो फिर से चाहें तो आंदोलन कर लें।

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