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सुनवाई के बगैर सज्जन कुमार की सजा निलंबित नहीं कर सकते, 1984 का मामला कोई साधारण नहींः न्यायालय

नई दिल्ली, 05 अगस्त (सक्षम भारत)। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि 1984 के सिख विरोधी दंगों से संबंधित मामले साधारण नहीं है और कांग्रेस के पूर्व नेता सज्जन कुमार के मामले में सुनवाई के बगैर उनकी उम्र कैद की सजा निलंबित करने के लिये कोई आदेश देना बहुत कठिन है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सज्जन कुमार की अपील पर अगले साल मई में ग्रीष्मावकाश के दौरान अवकाश पीठ सुनवाई करेगी। न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने सज्जन कुमार के आवेदन पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। पीठ ने कहा, हम समझते हैं कि ये साधारण आपराधिक मामले नहीं है। सज्जन कुमार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने जब न्यायालय से इस आवेदन पर सुनवाई करने का अनुरोध किया तो पीठ ने कहा, हमारे लिये पढ़े बगैर या सुनवाई के बगैर ही ऐसा कोई आदेश देना बहुत ही मुश्किल है जो आप चाहते हैं। पीठ ने कहा कि इस याचिका पर अगले साल मई में ग्रीष्मावकाश के दौरान अवकाश कालीन पीठ सुनवाई करेगी। कांग्रेस के पूर्व नेता 73 वर्षीय सज्जन कुमार इस समय दिल्ली की जेल में बंद हैं और उन्होंने उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें दोषी करार दिये जाने के बाद पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। उच्च न्यायालय ने सज्जन कुमार को 1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान 1-2 नवंबर, 1984 को दिल्ली छावनी के राज नगर पार्टी-1 में पांच सिखों की हत्या और राजनगर पार्ट-2 में एक गुरुद्वारा जलाये जाने की घटनाओं के सिलसिले में उम्र कैद की सजा सुनायी है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की 31 अक्टूबर, 1984 को उनके दो सिख अंगरक्षकों द्वारा गोली मार कर हत्या किये जाने के बाद देश में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे। सज्जन कुमार ने उच्च न्यायालय के 17 दिसंबर, 2018 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील दायर की हुई है। उच्च न्यायालय ने उन्हें जीवन पर्यंत जेल की सजा सुनाई है। उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार सज्जन कुमार ने 31 दिसंबर, 2018 को एक स्थानीय अदालत में समर्पण कर दिया था जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था। इस मामले में सोमवार को सुनवाई के दौरान विकास सिंह ने कहा कि सज्जन कुमार के खिलाफ ऐसा कोई आरोप नहीं है कि वह उस भीड़ का हिस्सा थे जिसने यह अपराध किया। शिकायतकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि सज्जन कुमार को निचली अदालत ने पहले बरी कर दिया था लेकिन उच्च न्यायालय ने बहुत ठोस आधार पर उन्हें दोषी ठहराया है। सिंह ने जब इस मामले के प्रमुख गवाह के बयानों में विरोधाभास का जिक्र किया तो पीठ ने कहा, वह (प्रमुख गवाह) प्रमुख साक्ष्य हो सकती है लेकिन सिर्फ एक साक्ष्य नहीं। इसके समर्थन में भी हैं। सिंह ने कहा कि वास्तव में कुमार ने 1984 के दंगों के बाद दंगा पीड़ितों के पुनर्वास में उनकी मदद की थी। उन्होंने कहा कि न्यायालय यह शर्त लगा सकता है कि सजा निलंबित रहने के दौरान सज्जन कुमार दिल्ली के बाहर ही रहेंगे। इस पर पीठ ने कहा,आपकी बात में कुछ वजन हो सकता है लेकिन हम इस तरह से हस्तक्षेप और सजा निलंबित नहीं करना चाहते। दवे ने कहा कि सज्जन कुमार के संसदीय क्षेत्र में 825 व्यक्तियों का वध किया गया था, जहां से वह 1984 में सांसद थे और पुलिस ने 1984 से 2006 के दौरान कोई कार्रवाई ही नहीं की। उच्च न्यायालय ने सज्जन कुमार को बरी करने के निचली अदालत के 2010 के निर्णय निरस्त कर दिया था। लेकिन उसने पांच अन्य दोषियों-कांग्रेस के पूर्व पार्षद बलवान खोखड़, नौसेना के सेवानिवृत्त अधिकारी कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल और पूर्व विधायक महेन्द्र यादव तथा किशन खोखड़ को अलग-अलग अवधि की सजा सुनाने का निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा था।

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