मुख्य न्यायाधीश पर हमले की व्यापक निंदा: वकीलों का प्रदर्शन, राजनीतिक जगत में आक्रोश; ‘नाथूराम मानसिकता’ पर तीखा प्रहार
नई दिल्ली, 07 अक्टूबर (ऐजेंसी/सक्षम भारत)। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी आर गवई पर सोमवार को अदालत कक्ष में एक वस्तु फेंकने के प्रयास की घटना ने देश में व्यापक आक्रोश उत्पन्न कर दिया है। इस कृत्य की वरिष्ठ वकीलों के संगठनों से लेकर शीर्ष राजनीतिक नेताओं तक ने एक स्वर में निंदा की है। इस घटना के विरोध में आज, अखिल भारतीय लॉयर्स यूनियन सुप्रीम कोर्ट के सामने विरोध प्रदर्शन करेगा।
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन और अखिल भारतीय लॉयर्स यूनियन ने इस घटना को सर्वोच्च न्यायालय और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला बताया है। यूनियन के अखिल भारतीय महासचिव पीवी सुरेंद्र नाथ ने एक बयान में कहा कि यह घटना देश में पल रही “नाथूराम मानसिकता” की उपज है और इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने दोषियों के खिलाफ गहन जाँच और सख्त कार्रवाई की मांग की है।
क्या थी घटना?
सोमवार को अदालती कार्यवाही के दौरान, राकेश किशोर नामक एक 71 वर्षीय वकील ने कथित तौर पर मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंकने की कोशिश की। हालांकि, सतर्क सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें तुरंत रोक लिया। पुलिस सूत्रों के अनुसार, वकील के पास से एक नोट मिला, जिस पर “सनातन धर्म का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान” लिखा था।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने तत्काल प्रभाव से वकील राकेश किशोर का लाइसेंस निलंबित कर दिया है। किशोर ने बताया कि मुख्य न्यायाधीश गवई की एक हालिया टिप्पणी, जिसमें उन्होंने खजुराहो परिसर में क्षतिग्रस्त विष्णु प्रतिमा की पुनर्स्थापना से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान “जाओ और भगवान से पूछो” कहा था, उससे उन्हें बहुत ठेस पहुँची थी।
इस विचलित कर देने वाले कृत्य के बावजूद, मुख्य न्यायाधीश अविचलित रहे और उन्होंने कार्यवाही जारी रखी। उन्होंने कहा, “इस सब से विचलित न हों। हम विचलित नहीं हैं। ये बातें मुझे प्रभावित नहीं करतीं।”
राजनीतिक दलों और न्यायिक संगठनों की प्रतिक्रिया
इस घटना को न्यायपालिका की गरिमा पर हमला मानते हुए, विभिन्न राजनीतिक दलों और न्यायिक संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
सत्ता पक्ष और सरकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यायमूर्ति गवई से बात की और कहा कि उन पर हुए हमले से हर भारतीय आक्रोशित है। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश द्वारा प्रदर्शित धैर्य की सराहना करते हुए कहा कि “हमारे समाज में इस तरह के निंदनीय कृत्यों के लिए कोई जगह नहीं है।” भाजपा ने भी इस कृत्य की कड़ी निंदा की और कहा कि संविधान द्वारा शासित लोकतांत्रिक समाज में ऐसे असामाजिक कृत्यों के लिए कोई जगह नहीं है।
विपक्षी दल
विपक्षी दलों के नेताओं ने एकमत से इस हमले की निंदा की और इसे संविधान पर हमला तथा देश में फैली नफरत और कट्टरता का प्रतिबिंब बताया।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस प्रयास को “अभूतपूर्व, शर्मनाक और घृणित” बताते हुए इसे देश की न्यायपालिका और कानून के शासन की गरिमा पर हमला बताया।
सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने भी इसे न्यायपालिका और संविधान पर हमला बताते हुए “सत्ता में बैठे लोगों द्वारा प्रोत्साहित की गई दंडमुक्ति और घृणा की संस्कृति” को दोषी ठहराया।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन और केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इस कृत्य की निंदा की। विजयन ने इसे “संघ परिवार द्वारा फैलाई गई घृणा का प्रतिबिंब” बताया।
बसपा अध्यक्ष मायावती ने घटना को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक करार दिया।
भाकपा (मार्क्सवादी) ने इसे “हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक ताकतों द्वारा समाज में फैलाए जा रहे मनुवादी और सांप्रदायिक ज़हर का एक और उदाहरण” बताया।
शरद पवार और अखिलेश यादव जैसे नेताओं ने भी इस कृत्य को संविधान और देश का घोर अपमान बताते हुए निंदा की।
न्यायिक संगठन
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड के सचिव निखिल जैन ने मांग की है कि मामले में स्वतः संज्ञान लिया जाना चाहिए और संबंधित वकील के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए, क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुँचाने का प्रयास है। वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने भी इसे “संस्था पर समग्र रूप से हमला” माना और गहन जाँच की मांग की है।