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निठारी हत्याकांड, कोली की क्यूरेटिव याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित

नई दिल्ली, 07 अक्टूबर (ऐजेंसी/सक्षम भारत)। उच्चतम न्यायालय ने निठारी हत्याकांड से संबंधित एक मामले के दोषी सुरेंद्र कोली की ओर से दायर क्यूरेटिव याचिका पर मंगलवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने खुली अदालत में संक्षिप्त सुनवाई के दौरान इस मामले को ‘एक मिनट में अनुमति देने वाला’ बताते हुए अहम टिप्पणियां कीं, जिससे कोली के जेल से बाहर आने की संभावनाएं प्रबल हो गई हैं।

पीठ ने यह निर्णय उस वक्त सुरक्षित रखा जब शेष 12 मामलों में कोली पहले ही बरी हो चुका है और केवल एक ही मामले में वह उम्रकैद की सज़ा काट रहा है। यह असामान्य स्थिति न्यायपालिका के समक्ष विचारणीय प्रश्न खड़ी कर रही है।

पीठ की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ
तीन न्यायाधीशों की पीठ ने सुनवाई के दौरान न्याय के उपहास को रोकने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने टिप्पणी की कि जब अन्य मामलों में कोली को बरी कर दिया गया है, तो केवल इस एक मामले में उसे दोषी ठहराया जाना “एक अजीब स्थिति पैदा कर देगा” और यह “न्याय का उपहास” हो सकता है।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने भी इस एकमात्र दोषसिद्धि के आधार पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि कोली की दोषसिद्धि केवल एक बयान और रसोई के चाकू की बरामदगी पर आधारित है। उन्होंने सवाल किया कि “क्या यह संभव है कि रसोई के चाकू से हड्डियां काटी जाएं?” ये टिप्पणियाँ दर्शाती हैं कि शीर्ष अदालत इस अंतिम मामले की दोषसिद्धि के साक्ष्यों पर गंभीर रूप से विचार कर रही है।

क्या है क्यूरेटिव याचिका?
सुरेंद्र कोली ने अपनी उम्रकैद की सज़ा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में यह क्यूरेटिव याचिका दाखिल की है। इससे पहले, इस मामले में उसकी पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो चुकी थी। यह याचिका सर्वोच्च न्यायालय में किसी अंतिम न्यायिक निर्णय के विरुद्ध उपलब्ध अंतिम कानूनी उपाय होती है, जो न्याय के घोर विफल होने की स्थिति में दायर की जाती है।

निठारी कांड की पृष्ठभूमि
निठारी कांड की शुरुआत 7 मई 2006 को हुई थी, जब नोएडा के निठारी गांव में एक युवती की गुमशुदगी दर्ज हुई थी। 29 दिसंबर 2006 को यह मामला तब राष्ट्रीय सुर्खियां बना जब मोनिंदर सिंह पंढेर की कोठी के पीछे के नाले से बच्चों और महिलाओं के 19 कंकाल बरामद किए गए। पुलिस ने पंढेर और उसके नौकर सुरेंद्र कोली को गिरफ्तार किया था।

कोली पर बलात्कार और हत्या के कुल 13 मामले थे। अधिकांश मामलों में निचली अदालत ने उसे फांसी की सज़ा दी थी। हालांकि, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 16 अक्टूबर 2023 को कोली और पंढेर को 12 मामलों में बरी कर दिया था। इस वर्ष 30 जुलाई को, सुप्रीम कोर्ट ने भी उच्च न्यायालय के इस फैसले को बरकरार रखा था।

वर्तमान में कोली केवल रिम्पा हलदर हत्या केस से जुड़े एक मामले में सज़ा काट रहा है। 2015 में, दया याचिका के निपटारे में हुई देरी के कारण उसकी फांसी की सज़ा को उम्रकैद में बदल दिया गया था। अब सुप्रीम कोर्ट के सकारात्मक रुख से उसके जेल से बाहर आने की संभावना बनती दिख रही है।

 

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