राजनैतिकशिक्षा

जीएसटी से मिले राजस्व का जायज बंटवारा जरूरी

-अजित रानाडे-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लागू होने के सात साल बाद इसकी परिषद की 56वीं बैठक में ऐतिहासिक निर्णय लिए गए और कर श्रेणियों में बड़े बदलाव किए गए। इसे जीएसटी 2.0 का शुभारंभ कहा जा सकता है। आगामी 22 सितंबर से जीएसटी की चार श्रेणियां दो श्रेणी (स्लैब) में आ जाएंगी। अति-विलासितापूर्ण चीजों व सेहत के लिए हानिकारक वस्तुओं पर 40 प्रतिशत कर की नई श्रेणी लागू हो जाएगी। अब तक की चार कर-श्रेणियां ‘सरल कर’ की भावना के विरुद्ध थीं और नई दो श्रेणियां बहुत ही स्वागत योग्य सुधार हैं।

नए रूप में 12 प्रतिशत और 28 प्रतिशत की श्रेणियों को समाप्त कर दिया गया है। बची दो श्रेणियों में से 18 प्रतिशत वाली श्रेणी पहले से ही कुल राजस्व का दो-तिहाई संग्रह कर रही थी और पांच प्रतिशत वाली श्रेणी से सिर्फ सात प्रतिशत कर-संग्रह हो रहे थे, जबकि 12 प्रतिशत और 28 प्रतिशत की श्रेणियों से कुल राजस्व के क्रमशः पांच फीसदी और 11 प्रतिशत कर-संग्रह हो पा रहे थे। नई व्यवस्था में 18 प्रतिशत वाली श्रेणी में 28 प्रतिशत कर वाली अधिकांश वस्तुओं को और पांच प्रतिशत वाली में 12 प्रतिशत कर वाली चीजों को समाहित किया गया है। अब 18 प्रतिशत कर श्रेणी और अधिक राजस्व एकत्र करेगी। इस प्रकार यह उपभोग को बढ़ावा देने वाली नीति है।

इस सुधार से सरकार को काफी नुकसान होगा, जबकि उपभोक्ताओं के लिए यह प्रोत्साहन का काम करेगा। अनुमान है कि इस बदलाव के कारण सरकार को करीब 15 खरब रुपये के सकल राजस्व की हानि होगी। हालांकि, सरकार ने 2023-24 के उपभोग-आधार पर 93,000 करोड़ रुपये के सकल नुकसान और 48,000 करोड़ रुपये के शुद्ध घाटे का अनुमान लगाया है। शुद्ध नुकसान इसलिए कम बताया जा रहा है, क्योंकि प्रोत्साहन के कारण उपभोग में बढ़ोतरी से अतिरिक्त कर संग्रह से इसकी भरपायी हो जाएगी। हालांकि, कुछ प्रक्रियागत बाधाएं हैं, जिनको 22 सितंबर से पहले दूर करना जरूरी है। व्यापारियों, थोक विक्रेताओं व कारखानों ने त्योहारी सीजन के लिए स्टॉक जमा कर रखा है। इनकी वस्तुओं पर अधिकतम खुदरा मूल्य सुधार से पहले की दरों का लगा हुआ है। अब वे नए मूल्य स्टीकर कैसे लगा पाएंगे? अगर वे पहले की कीमत रखते हैं, तो क्या उन पर जीएसटी कानून के मुनाफाखोरी-रोधी प्रावधान लागू होंगे?

जीएसटी व्यवस्था से जुड़े दो मुद्दे अभी भी परेशान कर रहे हैं। पहला यह कि यह अप्रत्यक्ष कर है और अमीरों की तुलना में गरीबों को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। नियम-कानूनों के बोझ छोटे कारोबारियों के लिए विशेष रूप से कष्टदायक हैं। उम्मीद है, नए संशोधनों से यह बोझ कम हुआ होगा। दूसरा मुद्दा राज्यों पर पड़ने वाले असर का है। दरों में कटौती और करों के नए सिरे से समायोजन से होने वाला सकल नुकसान 15 खरब रुपये होगा या 10 खरब से नीचे रहेगा, यह अभी तय नहीं है, मगर यह साफ है कि इसका आधा बोझ राज्यों पर पड़ेगा। मूल जीएसटी कानून में राज्यों के नुकसान की भरपायी का जो वादा किया गया था, वह 2022 में समाप्त हो चुका है और क्षतिपूर्ति उपकर भी समाप्त होने वाला है। ऐसे में, राज्य अपने खर्चे कैसे पूरा करेंगे?

एक और ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत के संघीय ढांचे में ‘दो-तिहाई/एक-तिहाई’ का अजीबोगरीब अनुपात है। खर्च करने की दो-तिहाई जिम्मेदारी राज्य और स्थानीय सरकारों की है, जबकि उनके पास केवल एक-तिहाई राजस्व स्वायत्तता है। इसीलिए, पेट्रोल, डीजल और बिजली को जीएसटी दायरे से बाहर रखा गया। हालांकि, वित्त मंत्री ने राज्यों को आश्वासन दिया है कि केंद्र उनकी राजकोषीय स्थिरता व आर्थिक कल्याण की रक्षा करेगा।

इस समस्या से निपटने के लिए, राज्य-केंद्र की हिस्सेदारी को 50:50 से बदलकर 60:40 करना व्यावहारिक होगा। केंद्र के पास इसके अतिरिक्त उपकर, संप्रभु ऋण और विदेशी कर्ज जैसे अन्य संसाधन भी होते हैं, जो राज्यों के पास नहीं हैं। इसीलिए जरूरी है कि संग्रहित धन के वितरण-फॉर्मूले को राज्यों के पक्ष में करने से उनकी चिंता कम होगी और सहयोगात्मक संघवाद की भावना और मजबूत होगी।

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