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सीमा पर चीन का दोहरा शिकंजा, ब्रह्मपुत्र पर भीमकाय बांध के बाद फास्ट रेल-ट्रेक

-डॉ. सुधीर सक्सेना-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

तिब्बत पर चीन का निरंकुश शासन और दृढ़ होगा तथा भारत के लिए खतरा और भयावह। चीन के पाकिस्तान का सबसे बड़ा और शक्तिशाली हितैषी होने से बांध और रेलपांत भारत की सुरक्षा और सार्वभौमिकता के लिए बड़ा खतरा हैं। बांध को लेकर दिल्ली को ढाका का सहयोग और विश्वास लेना चाहिये। जरूरी है कि अंतरदेशीय जल बंटवारे और प्रबंधन पर भारत और चीन के मध्य ठोस और सार्थक बातचीत हो।

खतरे की घंटियां लगातार घनघना रही हैं और उनमें कंपन पैदा किया है ड्रेगन यानि चीन ने। पाकिस्तान तक सीधा कारीडोर तलाशने के बाद से बीजिंग सुनियोजित और चरणबद्ध तरीके से भारत के लिये अकल्पनीय और भयावह मुसीबतें खड़ी करने की मुहिम में लिप्त है। दुनिया के छज्जे पर तेजगति की रेल पातें बिछाई जा रही है और विश्व की विशालतम नदियों में शुमार ब्रह्मपुत्र का पानी बांधा जा रहा है। ये दोनों निर्माण चीन को सामरिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत शक्तिशाली और सुदृढ़ पायदान पर खड़ा कर देंगे। दक्षिण पूर्व तिब्बत में ब्रह्मपुत्र पर पांच पनबिजली संयंत्रों को समेटे इस विशालतम बांध की बस कल्पना ही की जा सकती है। यह यांग्त्सी पर बने अब तक के विशालतम बांध थ्री गर्जेस से कई गुना बड़ा है। तिब्बत में 2015 में जल विद्युत परियोजना 1.5 अरब डॉलर की थी। यारलुंग जांग्बो परियोजना की लागत 167.7 अरब डॉलर है। 1.2 ट्रिलियन युआन की यह परियोजना ब्रह्मपुत्र नदी घाटी का हुलिया बदल देगी।

ब्रह्मपुत्र नदी बड़ा यू-टर्न लेकर बरास्ते अरूणाचल बांग्लादेश में प्रवेश करते हुये विश्व की सबसे गहरी घाटी का निर्माण करती है। वहां बांध बनने का अर्थ है ब्रह्मपुत्र के जल प्रवाह पर नियंत्रण। इससे हर साल 300 बिलियन किलोवाट बिजली उत्पन्न होगी। विश्व की छत रूपी तिब्बती पठार टेक्टॉनिक प्लेटों पर स्थित होने से अत्यंत संवेदनशील और भूकंप-संवेद है। भीमकाय बांध के निर्माण का सीधा अर्थ है भूगर्भ से छेड़छाड़। जाहिर है कि पर्यावरण प्रभावित होगा और पारिस्थितिकी भी।

इस हाहाकारी बांध के निर्माण को गत वर्ष दिसंबर में मंजूरी मिली। अरूणाचल से अनति दूर चीनी सीमा में निंगची में समारोह हुआ, जिसमें चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग ने शिरकत की। भारत और अन्य पड़ोसी राष्ट्रों की चिंताओं को खारिज कर द्रुतगति से निर्माण शुरू हो गया। मीकांग नदी से चीन के सलूक के नतीजे दक्षिण पूर्व एशियाई देशेां की स्मृति में है। ब्रह्मपुत्र पर बांध से भारत में अरूणाचल और बांग्लादेश-त्रिकूट (डेल्टा) सर्वाधिक प्रभावित होगा। असर लाओस, म्यांमार, वियेतनाम, कंबोडिया और थाईलैंड जैसे अधोप्रवाही देशों पर भी पड़ेगा। बांग्लादेश की तबाही का खतरा सबसे ज्यादा है। 16 करोड़ की आबादी के बांग्लादेश की जल सुरक्षा, आर्थिकी, पर्यावरण और मृदा-उर्वरता पर इससे प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उसकी कृषि-समृद्धि की चूलें हिल सकती हैं।

धान उत्पादन में मिलियनों टन की कमी आयेगी, लेकिन मैत्री के बावजूद बीजिंग ने ढाका का नामचार की सूचनाएं दी। उसने ‘नो-निगेटिव इंपैक्ट’ का ढोल पीटा और ‘बिल्ड फर्स्ट, निगोशियेट लेटर’ की नीति अपनाई। ऐसा नहीं है कि भारत सशंक और सचेत नहीं है। दिसंबर 24 में अजीत डोभाल की चीन के विदेश मंत्री वांग ची से वार्ता में यह मुद्दा उठा। मगर भारत की चिंता को सबसे मुखर अभिव्यक्ति दी अरूणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने। उन्होंने ब्रह्मपुत्र पर चीनी बांध को ‘वाटर बम’ बताते हुए जीवन, भूमि और संसाधनों की तबाही की आशंका व्यक्त की और कहा कि प्रवाह पर नियंत्रण से चीन जब चाहे तब भारी मात्रा में पानी छोड़कर अरूणाचल में बाढ़ की विभीषिका उत्पन्न कर सकता है।

यह तो हुई ब्रह्मपुत्र के पानी को बांधने की बात। अब आयें तिब्बत में रेलपोत पर। तिब्बत सन् 1950 तक दुर्गम क्षेत्र रहा है, लेकिन चीनी आधिपत्य के बाद वहां चीनियों का बड़े पैमान पर आव्रजन हुआ और अब वह चीन के कठोर नियंत्रण में है। अब चीन किंघाई से ल्हासा तक दुनिया की सबसे ऊंची और तीव्र रेलपांत बिछा रहा है। 960 किमी लंबी यह पात 13123 फुट ऊंचाई पर होगी। इससे शिनिंग से ल्हासा पहुंचने में फकत 22 घंटे लगेंगे। करीब 90 फीसद रेलपॉत 300 मीटर ऊंचाई पर होगी। सन् 2018 में चेंगदू युआन और जून 2021 में न्यिंग्ची-ल्हासा के उपरांत युआन-न्यिंग्ची ट्रैक सन् 2030 तक पूरा होगा। इससे तांगगुला को 5068 मीटर ऊंचा होने से विश्व के सर्वोच्च रेलवे स्टेशन का दर्जा मिल जाएगा।

प्रारंभिक सिंचुआन जहां 300 मीटर ऊंचाई पर है, वहीं टर्मिनस सागर तल से 3000 मीटर ऊंचा ट्रेन यार्लुंग-त्सांग्पो घाटी से 16 बार गुजरेगी, जिसमें 47 बोगदे और 121 पुल निर्धारित हैं। यह रेल ट्रैक सबसे लंबी 42.5 किमी लंबी सुरंग को समेटेगा। 10 किमी लंबी मिलिन सुरंग को कठिनतम बोगदा माना जा रहा है। इस प्रोजेक्ट पर 320 बिलियन युआन की लागत आयेगी। इसे रेलपांत पर ट्रेन की गति होगी 100 किमी। इसके पूर्ण हाने पर चीन के लिए तिब्बत पर नियंत्रण नागरिकों की आवाजाही, सैनिकों और आयुधों की तैनाती और फौजी ठिकानों की स्थापना आसान हो जायेगी। तिब्बत पर चीन का निरंकुश शासन और दृढ़ होगा तथा भारत के लिए खतरा और भयावह। चीन के पाकिस्तान का सबसे बड़ा और शक्तिशाली हितैषी होने से बांध और रेलपांत भारत की सुरक्षा और सार्वभौमिकता के लिए बड़ा खतरा हैं। बांध को लेकर दिल्ली को ढाका का सहयोग और विश्वास लेना चाहिये। जरूरी है कि अंतरदेशीय जल बंटवारे और प्रबंधन पर भारत और चीन के मध्य ठोस और सार्थक बातचीत हो।

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