क्या भारत ग्लोबल साउथ में अपनी खोई विरासत फिर हासिल कर पाएगा?
मोदी का घाना दौरा -: कूटनीति का वही ढोल या साख लौटाने की ठोस कवायद?
-ओंकारेश्वर पांडेय-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद तमाम सवालों से घिरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब घाना की धरती पर उतरे, तो उनके कदमों में 75 साल की उम्र की थकान और हार न मानने की जिद एकसाथ झलक रही थी। अक्रा के हवाई अड्डे पर, हल्के नीले नेहरू जैकेट में सजे मोदी का चेहरा तनाव और सुकून के मिश्रित भाव लिए था। शायद यह नेहरू जैकेट सिर्फ एक परिधान नहीं, बल्कि उस नेहरू की याद का प्रतीक था, जिन्होंने कभी घाना की जनता को आजादी और ग्लोबल साउथ की एकजुटता का सपना दिखाया था। घाना के राष्ट्रपति जॉन ड्रामानी महामाहा ने उनका स्वागत किया, लेकिन हवा में सवाल गूँज रहे थे। ऑपरेशन सिंदूर की आधी-अधूरी कहानी, अमेरिका की मध्यस्थता की खबरों ने भारत की स्वायत्तता को कटघरे में खड़ा किया है, और हालिया भारत-पाक तनाव में चीन की सैन्य मदद ने ग्लोबल साउथ में भारत की साख को दांव पर ला दिया है।
क्या यह घाना, जो कभी गांधी और नेहरू की अहिंसा व साझेदारी से प्रेरित था, मोदी के नेतृत्व में भारत के ग्लोबल साउथ के सपने को नया जीवन दे पाएगा? क्या यह यात्रा, गंभीर सवालों से जूझ रही विदेश नीति को पुनर्परिभाषित करने की बजाय, एक और कूटनीतिक शो बनकर रह जाएगी?
ऑपरेशन सिंदूर और कूटनीतिक भंवर
पिछले महीने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत भारत ने सीमित सैन्य कार्रवाई की। सेना निर्णायक कदम के लिए तैयार थी, मगर आखिरी पल में राजनीतिक नेतृत्व ने कदम पीछे खींच लिए। इंडोनेशिया में तैनात नौसेना अधिकारी कैप्टन शिव कुमार ने खुलासा किया, “हम तैयार थे, लेकिन रणनीति में स्पष्टता की कमी ने हमें रोका। ” इस खुलासे ने देश में हलचल मचा दी। अमेरिका की मध्यस्थता की खबरों ने भारत की स्वायत्त कूटनीति पर सवाल उठाए। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने तंज कसा, “मोदी सरकार की विदेश नीति अब फोटो सेशन और खोखली घोषणाओं तक सिमट गई है। नीतिगत दृढ़ता गायब है। ”
पर्दे के पीछे, चीन की भूमिका ने आग में घी डाला। हालिया भारत-पाक तनाव में चीन ने पाकिस्तान को फाइटर जेट, मिसाइल, और सैटेलाइट डेटा देकर समर्थन दिया, जिसे विशेषज्ञ भारत के खिलाफ रणनीतिक चाल मानते हैं।
घाना यात्रा: अवसर या मजबूरी?
इस तूफानी माहौल में मोदी अक्रा पहुंचे। घाना की संसद में उनका स्वागत पारंपरिक ढोल की थाप और स्थानीय गीतों ने किया। मोदी ने ट्वीट किया, “अक्रा पहुंचना सम्मान की बात है। राष्ट्रपति महामाहा का स्वागत हमारे पुराने, भरोसेमंद रिश्तों का प्रतीक है। हम भारत-घाना संबंधों को नई ऊँचाइयों पर ले जाएंगे। ”
लेकिन सवाल वही है—क्या यह यात्रा ऑपरेशन सिंदूर की चूक, अमेरिका पर निर्भरता, और चीन की बढ़ती चुनौती को पार कर भारत की साख सुधारेगी? या यह सिर्फ एक और कूटनीतिक चमक-दमक बनकर रह जाएगी?
भारत-घाना: ऐतिहासिक बंधन और रोचक किस्से
अक्रा के बाजारों में भारतीय मसालों की खुशबू और बॉलीवुड गानों की गूँज घाना को भारत से जोड़े रखती है। यह रिश्ता कागजी कूटनीति से कहीं गहरा है—यह साझा संघर्ष और सपनों की कहानी है। 1950 के दशक में घाना के पहले राष्ट्रपति क्वामे एनक्रूमा भारत आए। गांधी की अहिंसा और नेहरू की ‘ग्लोबल साउथ’ की सोच ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होंने घाना की आजादी की लड़ाई को नई दिशा दी। 1957 में घाना के आजाद होने पर भारत ने वहाँ अपना पहला दूतावास खोला।
एक पुराना किस्सा है—1960 में नेहरू की घाना यात्रा के दौरान एनक्रूमा ने उन्हें एक शानदार ‘केन्टे’ कपड़ा भेंट किया, जो आज अक्रा के नेशनल म्यूजियम में प्रदर्शित है। उस स्वागत में स्थानीय जनजातियों ने ढोल-नगाड़ों के साथ नृत्य किया, और नेहरू की सादगी ने सबका दिल जीत लिया।
2011 में मनमोहन सिंह की यात्रा भी कम यादगार नहीं थी। नीली पगड़ी और सादे सूट में वह घाना की संसद में बोले, “भारत अफ्रीका का प्राकृतिक सहयोगी है। हमारा रिश्ता संसाधनों या निवेश तक सीमित नहीं, बल्कि साझा विकास और मानवीय सहयोग पर आधारित है। ” उनकी बातों में गहराई थी, और स्वागत में घानाई गायकों ने पारंपरिक गीत गाए।
आर्थिक समीकरण: प्रगति और चुनौतियाँ
भारत-घाना व्यापार नेहरू काल से लंबा सफर तय किया है। 2004 में यह महज 213 मिलियन डॉलर था, जो मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 2013-14 तक 1.2 अरब डॉलर पहुंचा। मोदी सरकार में यह 2017-18 में 3.34 अरब और 2018-19 में 4.48 अरब डॉलर तक गया, लेकिन 2023-24 में 2.51 अरब तक सिमट गया। 2024-25 (अप्रैल-अक्टूबर) में शुरुआती व्यापार 3.13 अरब डॉलर रहा। भारत का व्यापार घाटा बढ़ा है, क्योंकि घाना से सोना और तेल (घाना के निर्यात का 70%) तेजी से आयात हो रहा है।
भारत ने घाना को 450 मिलियन डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट (LoC) दी, जिससे गांवों में बिजली, आईटी पार्क, और स्वास्थ्य सुविधाएँ बनीं। लेकिन चुनौती सामने खड़ी है—चीन। घाना इन्वेस्टमेंट प्रमोशन सेंटर (GIPC) के मुताबिक, भारत प्रोजेक्ट संख्या में दूसरे स्थान पर है, लेकिन निवेश राशि में चीन, स्पेन, और मिस्र से पीछे है। 1994-2024 में भारत का निवेश 1.92 अरब डॉलर रहा, जबकि चीन का इससे कहीं अधिक। 2023 में भारत का निवेश 77.93 मिलियन डॉलर था, लेकिन चीन की आर्थिक पकड़ मजबूत है।
ग्लोबल साउथ में चीन को चुनौती?
हालिया भारत-पाक तनाव में चीन ने पाकिस्तान को फाइटर जेट, मिसाइल, और सैटेलाइट डेटा देकर समर्थन दिया, जिसे विशेषज्ञ भारत के खिलाफ रणनीतिक चाल मानते हैं। घाना की सड़कों पर पारंपरिक नृत्यों की रौनक के बीच मोदी की यह यात्रा सिर्फ भारत-घाना दोस्ती की कहानी नहीं है। यह ग्लोबल साउथ में भारत की साख को पुनर्जनन करने और चीन की आक्रामकता को टक्कर देने की कोशिश है। चीन ने अफ्रीका में 200 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है, जबकि भारत 80 बिलियन के आसपास है। घाना में चीन की पकड़ इंफ्रास्ट्रक्चर और खनन में मजबूत है। लेकिन भारत की ताकत उसकी सॉफ्ट पावर में है—ऐतिहासिक दोस्ती, सांस्कृतिक जुड़ाव, और लोकतांत्रिक मूल्य।
मोदी की यह यात्रा आर्थिक प्रतिद्वंद्विता का नया अध्याय भी शुरू कर सकती है। घाना के तेल-गैस भंडार, समुद्री मार्गों की सुरक्षा, और ग्लोबल साउथ में नेतृत्व के लिए भारत के पास मौका है। यह भारत के लिए न सिर्फ घाना, बल्कि पूरे अफ्रीका में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर है, बशर्ते यह चीन की रणनीति को संतुलित करने के लिए स्पष्ट कदम उठाए।
सांस्कृतिक ताकत और जनमानस
अक्रा के बाजारों में भारतीय मसालों की खुशबू और अमिताभ बच्चन व शाहरुख खान की फिल्मों की गूँज घाना को भारत से जोड़े रखती है। 15, 000 भारतीय समुदाय, योग, और क्रिकेट यहाँ भारत की सॉफ्ट पावर हैं। एक पुराना किस्सा है—1980 के दशक में ‘डिस्को डांसर’ ने घाना के सिनेमाघरों को फिर से जिंदा कर दिया। आज भी वहाँ के बुजुर्ग “आओ, ओम शांति ओम” गुनगुनाते हैं। लेकिन चीन और यूरोपीय देशों की आक्रामक मौजूदगी ने भारत के लिए मुकाबला कठिन कर दिया। घाना की सड़कों पर बच्चों के नृत्य और पारंपरिक गीत भारत-घाना की दोस्ती की गर्मी दिखाते हैं, मगर क्या यह नीतिगत ठोस कदमों में बदलेगा?
मोदी का इम्तिहान
घाना की संसद से लेकर अक्रा की सड़कों तक, मोदी की यह यात्रा कोई साधारण कूटनीति नहीं। यह भारत की विदेश नीति की अग्निपरीक्षा है। भारत कई मोर्चों पर जूझ रहा है। ऑपरेशन सिंदूर का अधूरा नतीजा जनता के मन में सवाल छोड़ गया है। कैप्टन शिव कुमार जैसे सैन्य अधिकारियों ने सरकार की रणनीतिक अस्पष्टता पर उंगली उठाई है। अमेरिका की मध्यस्थता की खबरों ने भारत की स्वायत्तता को कटघरे में खड़ा किया। और अब, चीन की पाकिस्तान को सैन्य मदद ने भारत को ग्लोबल साउथ में अपनी साख बचाने की चुनौती दी है।
मोदी के सामने सवाल है—कि क्या वह इस यात्रा को भाषणों और ट्वीट्स से आगे ले जा पाएंगे? यह मौका है—नेहरू और एनक्रूमा की ऐतिहासिक दोस्ती को नया जीवन देने का, ग्लोबल साउथ में भारत की पुरानी साख को पुनर्जीवित करने का, और चीन की आक्रामकता का मुकाबला करने का। अगर यह यात्रा भाषणबाजी तक सिमट गई, तो विपक्ष का तंज—“विदेश नीति उड़ानों और उद्घाटनों तक सीमित है”—और गहरा हो जाएगा।
घाना क्यों ज़रूरी है?
घाना भारत के लिए एक रणनीतिक खजाना है। इसके बाजारों में कोको और सोने की चमक भारत की आर्थिक भूख को ललचाती है। यह देश तेल, बॉक्साइट, और कोको का पावरहाउस है। भारत ने यहाँ आईसीटी, हेल्थकेयर, कृषि, और इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश किया है। 450 मिलियन डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट ने घाना के गाँवों में बिजली, आईटी पार्क, और अस्पताल बनाए हैं। घाना का तेल भारत की ऊर्जा जरूरतों को मिटा सकता है। अटलांटिक महासागर के समुद्री मार्ग भारत की सुरक्षा रणनीति का हिस्सा हैं। और सबसे बड़ी बात, घाना ग्लोबल साउथ में भारत के नेतृत्व को मजबूत करने का रास्ता खोल सकता है।
घाना की सामाजिक ताकत भी अनोखी है। यहाँ महिलाओं की आबादी पुरुषों से अधिक है, जो सामाजिक बदलाव की मिसाल है। भारत के लिए यह मौका है—साझा लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने का, और अफ्रीका में अपनी सॉफ्ट पावर को चमकाने का। लेकिन चीन की गहरी आर्थिक पकड़ और यूरोपीय देशों की नई सक्रियता रास्ते में रोड़े हैं। घाना की सड़कों पर पारंपरिक नृत्यों की रौनक भारत-घाना की दोस्ती की गर्मी दिखाती है। मोदी की इस यात्रा से भारत और घाना नये बदलते वैश्विक दौर में रिश्तों की नयी परिभाषा लिखें, यह दोनों देशों की जनता चाहेगी। इसके लिए दोनों देशों को दिखावे से अलग जमीनी हकीकत और ज़रूरत के हिसाब से ठोस कदम उठाने होंगे।
यह यात्रा तस्वीरों और ट्वीट्स की चमक से आगे बढ़नी चाहिए। यह भारत के लिए मौका है—ग्लोबल साउथ में नेतृत्व को नई परिभाषा देने का, ऐतिहासिक साझेदारी को ठोस नीतियों में बदलने का, और चीन से मुकाबले के लिए रणनीतिक स्पष्टता लाने का।
घाना का इतिहास हमें सिखाता है कि सच्ची दोस्ती परस्पर विश्वास और ठोस कदमों से बनती है। नेहरू और एनक्रूमा ने यह दिखाया था। क्या मोदी इस बार उस विरासत को नया जीवन दे पाएंगे, या यह यात्रा एक और कूटनीतिक सैर-सपाटा बनकर रह जाएगी? भारत को चाहिए रणनीतिक स्पष्टता, आर्थिक ताकत, और सांस्कृतिक जुड़ाव। अगर यह मौका चूक गया तो सुर्खियाँ भले बनें, मगर भारत का अफ्रीकी सपना अधूरा रह जाएगा।