राजनैतिकशिक्षा

गांधी परिवार पर चार्जशीट

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

यहां से राजनीति नई करवट ले सकती है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने ‘नेशनल हेराल्ड’ अखबार और एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) मामले में जो आरोप-पत्र अदालत में दाखिल किया है, उसमें सोनिया गांधी को पहला और राहुल गांधी को दूसरा आरोपित बनाया गया है। गांधी परिवार के खिलाफ यह पहला आरोप-पत्र है। मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडीज दोनों दिवंगत नेता हैं, फिर भी ईडी ने उन्हें आरोपित बनाया है। कांग्रेस ने इस कार्रवाई के खिलाफ देश भर में विरोध-प्रदर्शन शुरू किए हैं। धनशोधन कानून के मुताबिक, गांधी परिवार के नेताओं पर सजा की तलवार लटकी है, लेकिन दोनों नेता दिसंबर, 2015 से जमानत पर हैं। वह निर्णय भी विशेष अदालत का था। जब तक अदालत नया गिरफ्तारी वारंट जारी नहीं करती, तब तक जमानत पर तत्काल संकट नहीं है।

भविष्य में अदालत के फैसलों के आधार पर इसमें परिवर्तन संभव है। इसके अलावा, ईडी जुलाई, 2022 में लगातार तीन दिनों में 11 घंटे सोनिया गांधी और लगातार 5 दिनों में करीब 50 घंटे तक राहुल गांधी से सघन पूछताछ कर चुका है, लिहाजा आरोप-पत्र दाखिल करने और अदालत के संज्ञान लेने के बाद गांधी नेताओं की गिरफ्तारी संभव और प्रासंगिक नहीं लगती। अलबत्ता आरोप-पत्र में ‘अपराध से अर्जित आय’ 988 करोड़ रुपए मानी गई है। संबद्ध संपत्तियों का बाजार मूल्य करीब 5000 करोड़ रुपए आंका गया है। आरोप एजेएल की 2000 करोड़ रुपए की संपत्तियों पर कब्जे के लिए उसका अधिग्रहण, निजी कंपनी ‘यंग इंडियन’ के जरिए, मात्र 50 लाख रुपए में किए जाने का भी है। ईडी ने पीएमएलए की धारा 4 के तहत सजा भी मांगी है। इसमें 7 साल तक की जेल का प्रावधान है। यदि 25 अप्रैल को विशेष अदालत के न्यायाधीश इस आरोप-पत्र पर संज्ञान लेते हैं, तो उस दिन और ट्रायल के दौरान सोनिया-राहुल गांधी को अदालत में उपस्थित रहना होगा।

बहरहाल इस मामले के तमाम ब्यौरे देश के सामने हैं। 2012 में डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने अदालत में याचिका दी थी। तब केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार थी। सवाल है कि करीब 13 साल के बाद एक आरोप-पत्र दाखिल क्यों किया गया? सघन पूछताछ के भी तीन साल गुजर चुके हैं, लिहाजा ऐसे अतिविशिष्ट मामले में जांच एजेंसियां इतनी लेट-लतीफी क्यों करती हैं? हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर और नायब सिंह सैनी की 2014 से सरकार है। तब खूब शोर मचाया जाता था कि गांधी परिवार के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को सलाखों के पीछे भेजा जाएगा। ईडी ने 15 अप्रैल को उनसे भी 6 घंटे से अधिक समय तक पूछताछ की। वाड्रा आज भी स्वतंत्र हैं।

दरअसल कुछ सवाल ईडी की जांच की विश्वसनीयता और उसकी सजा-दर पर भी किए जा सकते हैं। करीब 96 फीसदी मामले विपक्षी नेताओं के ही खिलाफ क्यों दर्ज किए जाते हैं? गौरतलब यह है कि अशोक चव्हाण, नारायण राणे (दोनों महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री) सहित अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल, हिमंता बिस्व सरमा, सुवेन्दु अधिकारी, नवीन जिन्दल सरीखे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है, जो कभी गैर-भाजपा दलों में रहे और विभिन्न घोटालों में आरोपित हुए, लेकिन वे ‘भाजपाई’ हैं, लिहाजा तमाम आरोपों और जांच से मुक्त हैं। यह ईडी जैसी प्रमुख आर्थिक जांच एजेंसी की स्वायत्तता पर ‘काला सवाल’ है। कांग्रेस इसे ही ‘प्रतिशोध की राजनीति’ करार दे रही है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने गांधी परिवार पर आरोप-पत्र को प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की ‘बदले की राजनीति’ के संदर्भ में देखा है और उसके खिलाफ ‘सत्यमेव जयते’ का नारा बुलंद किया है। बहरहाल यह मामला राजनीतिक रूप से संवेदनशील साबित हो सकता है।

 

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