राजनैतिकशिक्षा

महान अर्थशास्त्री असरदार सरदार डॉ मनमोहन सिंह

-दिलीप कुमार पाठक-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का निधन हो गया है, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सहित पूरे देश सहित पूरी दुनिया के उनके शुभचिंतकों ने शोक व्यक्त किया है। डॉ मनमोहन सिंह का जाना भारतीय राजनीति में एक बड़ा नुकसान है। डॉ साहब जब आप पीएम थे तब मुल्क आपके साथ न्याय नहीं कर सका, आपको वो इज्ज़त नहीं दे सका जिसके आप हकदार थे। 2014 में एक इंटरव्यू में आपने कहा था, मेरा पूरा विश्वास है कि मौजूदा मीडिया और संसद में मौजूद विपक्षी पार्टियों की तुलना में इतिहास मेरे प्रति ज्यादा दयालु होगा मुझे लगता है इतिहास आपके साथ न्याय करेगा। अलविदा डॉ साहब ये मुल्क आपको डिजर्व नहीं करता था। डॉ मनमोहन सिंह दो बार प्रधानमंत्री ज़रूर बने लेकिन वे कभी भी खुद को राजनेता नहीं मानते थे, पार्टी के आदेश पर जीवन में सिर्फ़ एक बार लोकसभा का चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। मनमोहन सिंह को बहुत अच्छी तरह से पता था कि उनका राजनीतिक जनाधार नहीं है। उन्होंने कहा था, राजनेता बनना अच्छी बात है, लेकिन लोकतंत्र में राजनेता बनने के लिए आपको पहले चुनाव जीतना पड़ता है, और मैं चुनाव नहीं जीत सकता इसलिए मैं खुद को नेता नहीं मानता। फ़िर उन्होंने चुनाव से तौबा कर ली।
डॉ मनमोहन सिंह ने एक दशक अधिक समय तक अभूतपूर्व बढ़ोतरी और विकास का नेतृत्व किया। डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में, भारत ने अपने इतिहास में सबसे अधिक बढ़ोतरी दर देखी, जो औसतन 7.7% रही और लगभग दो ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनी, 1971 में डॉ. मनमोहन सिंह वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में शामिल हुए। 1972 में उनकी नियुक्ति वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में हुई। उन्होंने वित्त मंत्रालय के सचिव; योजना आयोग के उपाध्यक्ष; भारतीय रिजर्व बैंक के अध्यक्ष; प्रधानमंत्री के सलाहकार; विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 1982 से 1985 तक भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर थे। उनके कार्यकाल के दौरान बैंकिंग क्षेत्र से संबंधित व्यापक कानूनी सुधार किए गए और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम में एक नया अध्याय जोड़ा गया और शहरी बैंक विभाग की स्थापना की गई। आरबीआई में अपने कार्यकाल के बाद, उन्होंने वित्त मंत्री नियुक्त होने से पहले कई पदों पर काम किया। वित्त मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल इस तथ्य के लिए उल्लेखनीय था कि उन्होंने भारत में उदारीकरण और व्यापक सुधारों की शुरुआत की।
डॉ. मनमोहन सिंह ने 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया जो स्वतंत्र भारत के आर्थिक इतिहास में एक निर्णायक समय था। आर्थिक सुधारों के लिए व्यापक नीति के निर्धारण में उनकी भूमिका को सभी ने सराहा है। भारत में इन वर्षों को उनके व्यक्तित्व के अभिन्न अंग के रूप में जाना जाता है। अर्थशास्त्र के जानकार कहते हैं कि डॉ मनमोहन सिंह अगर 1991 में वित्तमंत्री नहीं बने होते तो शायद भारत कभी भी आर्थिक आपातकाल से बाहर नहीं आता। बतौर वित्तमंत्री मनमोहन सिंह ने आर्थिक दर को जो आयाम दिया जिसके कारण आज भी भारत को फायदा होता है। वित्तमंत्री, प्रधानमंत्री आएंगे, जाएंगे लेकिन मनमोहन सिंह जी जैसा अर्थशास्त्र का जानकार उनके जैसा विद्वान शायद ही इस मुल्क को मिले इसलिए ही डॉक्टर मनमोहन सिंह को अर्थशास्त्र का आर्किटेक्ट कहा जाता है। डॉ मनमोहन सिंह जी को अब तक के भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में सबसे बेहतर वित्तमंत्री के रूप में याद रखा जाएगा। वहीँ प्रधानमंत्री के रूप में उनके पहले कार्यकाल को स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। आरटीआई, मनरेगा, फूड सिक्योरिटी बिल, परमाणु समझौता जैसे महान सुधारों के लिए याद किया जाएगा।
दुनिया के सबसे बड़े मुल्क अमेरिका के प्रभावशाली राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था कि डॉक्टर मनमोहन सिंह जी जब बोलते हैं तो पूरी दुनिया सुनती है। हालांकि बहुत कम बोलते हैं लेकिन जितना भी बोलते हैं, कमाल बोलते हैं। पूरी दुनिया उनकी अर्थशास्त्र की जानकारी और उनके ज्ञान से प्रभावित रही है कैंब्रिज, ऑक्सफोर्ड, जैसे बड़े-बड़े विश्वविद्यालय में डॉक्टर मनमोहन सिंह के व्याख्यान भविष्य में विद्यार्थियों के लिए मार्गदर्शन का काम करेंगे। ये मुकाम डॉक्टर मनमोहन सिंह की विद्वता को दर्शाता है, शायद इस मुल्कों को दोबारा ऐसा विद्वान प्रधानमंत्री मिले।
देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण, भारतीय विज्ञान कांग्रेस का जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी पुरस्कार वर्ष के वित्त मंत्री के लिए एशिया मनी अवार्ड और वित्तमंत्री के लिए यूरो मनी अवार्ड, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का एडम स्मिथ पुरस्कार; कैम्ब्रिज के सेंट जॉन्स कॉलेज में विशिष्ट प्रदर्शन के लिए राइट पुरस्कार.. उनको जापानी निहोन किजई शिम्बुन एवं अन्य संघो की तरफ से सम्मानित किया जा चुका है। डॉ. मनमोहन सिंह को कैंब्रिज एवं ऑक्सफोर्ड और अन्य कई विश्वविद्यालयों की तरफ से मानद उपाधियां प्रदान की गई हैं। डॉ. मनमोहन सिंह ने कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। उन्होंने 1993 में साइप्रस में राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक में और वियना में मानवाधिकार पर हुए विश्व सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया है। अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने 1991 से भारतीय संसद के उच्च सदन (राज्य सभा) के सदस्य रहे जहां वे 1998 से 2004 तक विपक्ष के नेता थे। वहीं डॉ. मनमोहन सिंह ने 2004 के आम चुनाव के बाद 22 मई 2004 को प्रधानमंत्री के रूप के शपथ ली और 22 मई 2009 को दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह को न केवल उनके विजन के लिए जाना जाता है, जिसने भारत को एक आर्थिक महाशक्ति बनाया, बल्कि उनकी कड़ी मेहनत और उनके विनम्र, मृदुभाषी व्यवहार के लिए भी जाना जाता है। वह एक ऐसे प्रधानमंत्री रहे हैं जिन्हें न केवल उन छलांगों और सीमाओं के लिए याद किया जाएगा, जिनसे उन्होंने भारत को आगे बढ़ाया, बल्कि एक विचारशील और ईमानदार व्यक्ति के रूप में भी याद किया जाएगा।

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