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राजस्थान विधानसभा उपचुनाव: क्या चुनावी परीक्षा में पास होगी भाजपा?

-रमेश सर्राफ धमोरा-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

राजस्थान में आगामी 13 नवंबर को सात विधानसभा सीटों झुंझुनू, खींवसर, दौसा, रामगढ़, देवली उनियारा, चैरासी, सलूंबर में विधानसभा के उपचुनाव होने जा रहे हैं। इनमें सलूंबर से भाजपा विधायक अमृतलाल मीणा व रामगढ़ से कांग्रेस विधायक जुबेर खान के निधन के चलते उपचुनाव हो रहा है। जबकि 5 सीट पर वहां के विधायकों के सांसद बनने के चलते विधायक पद से इस्तीफा देने के कारण उपचुनाव हो रहा है।
उपचुनाव वाली सात सीटों में से भाजपा के पास सिर्फ एक सलूंबर की सीट थी। बाकी 6 सीटों में से एक पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल नागौर से सांसद बन गए उसके चलते सीट खाली हो गई। आदिवासी बहुल चैरासी विधानसभा सीट के विधायक व भारतीय आदिवासी पार्टी के अध्यक्ष राजकुमार रोत के बांसवाड़ा-डूंगरपुर से सांसद बनने के कारण चैरासी विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है। झुंझुनू सीट पर कांग्रेस के विधायक बृजेंद्र सिंह ओला के झुंझुनू से सांसद बनने के कारण, देवली-उनियारा से कांग्रेस के विधायक हरीश चंद मीणा के टोंक-सवाई माधोपुर सीट से सांसद बनने के कारण, दौसा से कांग्रेस के विधायक मुरारीलाल मीणा ने दौसा संसदीय सीट से सांसद बनने के कारण विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था। इसलिए उक्त सीटों पर उपचुनाव हो रहा हैं।
प्रदेश की सात विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों में राजस्थान में भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की एक बार फिर कड़ी परीक्षा होगी। उपचुनाव में भाजपा कितनी सीट जीत पाती है उसके आधार पर भजनलाल शर्मा सरकार की परफॉर्मेंस आंकी जाएगी। भजनलाल शर्मा के मुख्यमंत्री बनते ही श्रीगंगानगर जिले की श्री करनपुर विधानसभा सीट पर संपन्न हुए उपचुनाव में भाजपा के प्रत्याशी व राजस्थान सरकार में मंत्री सुरेन्द्र पाल सिंह टीटी चुनाव हार गए थे। उससे भजनलाल शर्मा सरकार की बहुत किकरी हुई थी। चुनाव हारने के बाद भाजपा प्रत्याशी सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
उसके बाद लोकसभा चुनाव में भी भजनलाल सरकार अच्छा परफॉर्मेंस नहीं दिखा पाई थी। 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी 25 सीट जीतने वाली भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में मात्र 14 सीट ही जीत पाई थी। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 8 सीटों पर तथा उनके सहयोगी दल राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, भारतीय आदिवासी पार्टी व मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी क्रमशः एक-एक सीट नागौर, बांसवाड़ा डूंगरपुर व सीकर जीत गई थी। लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को तो नहीं हटाया मगर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के पद से सीपी जोशी को हटाकर उनके स्थान पर राज्यसभा सदस्य मदन राठौड़ को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी थी। प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद मदन राठौड़ को भी पहली बार उपचुनाव में अपनी सांगठनिक क्षमता का प्रदर्शन करना होगा।
इन उपचुनावों में भाजपा के पास खोने को तो मात्र एक सीट है मगर हासिल करने को 7 सीटों का बड़ा लक्ष्य है। यदि भाजपा उपचुनाव में 5 सीट जीत जाती है तो मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा व भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ की स्थिति केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष मजबूत हो जाएगी। यदि भाजपा सात में से चार सीट भी नहीं जीत पाती है तो मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की कार्य शैली सवालों के घेरे में आ जाएगी और उन्हें परीक्षा में तीसरी बार भी फेल माना जाएगा। भजनलाल शर्मा उपचुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं तो आने वाले समय में उनके मुख्यमंत्री पद पर भी संकट गहरा सकता है।
वैसे भी भाजपा आलाकमान ने प्रदेश भाजपा के सभी दिग्गज नेताओं को दरकिनार कर पहली बार विधायक बने प्रदेश में अनजान चेहरे भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाकर सबको चौंका दिया था। भाजपा आलाकमान का मानना था कि नया चेहरा आगे करने से पार्टी की स्थिति आने वाले समय में मजबूत होगी और प्रदेश में भाजपा को नया नेतृत्व मिलेगा। मगर अभी तक के चुनावी नतीजे ने तो भाजपा आलाकमान को मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की कार्यशैली से असंतुष्ट ही किया है। भाजपा आलाकमान के मन मुताबिक परिणाम नहीं दे पाने के कारण भजनलाल शर्मा की छवि केंद्रीय नेतृत्व की नजरों में हरियाणा व मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की तरह मजबूत नहीं बन पाई है।
राजस्थान में भाजपा की वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी किनारे लगाने के चलते भाजपा में अंदर खाने जमकर गुटबाजी व्याप्त हो रही है। राजस्थान के भाजपा विधायकों में वसुंधरा राजे समर्थकों की संख्या काफी अधिक है तथा वह सभी विधायक स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। अपने अनदेखी के चलते वसुंधरा समर्थक विधायक अवसर की तलाश में है। पिछले लोकसभा चुनाव में भी वसुंधरा समर्थक विधायकों ने ज्यादा सक्रियता नहीं दिखाई थी उसी के चलते पार्टी को 11 सीट गंवानी पड़ी थी। वसुंधरा के कट्टर समर्थक रहे चूरू के सांसद राहुल कस्वां की टिकट काटना भी लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी पड़ गया था। राहुल कस्वां स्वयं तो कांग्रेस टिकट पर चूरू से चुनाव जीत ही गए उसके साथ ही आसपास की गंगानगर, चूरु, झुंझुनू, सीकर जैसी सीटों पर भी भाजपा का सूपड़ा साफ करवा दिया था।
उपचुनाव में टिकट वितरण करने में भी भाजपा ने अपने सिद्धांतों को ताक पर रख दिया है। राज्य सरकार में मंत्री डॉक्टर किरोडीलाल मीणा के सगे भाई जगमोहन मीणा को दौसा की सामान्य सीट पर प्रत्याशी बना दिया है। वही 2023 के चुनाव में झुंझुनू से निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले राजेंद्र भांभू व रामगढ़ से निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले सुखवंत सिंह को भाजपा ने टिकट देकर मैदान में उतार दिया है। हालांकि सलूंबर में भाजपा ने अपने विधायक अमृतलाल मीणा के निधन के चलते उपचुनाव में सहानुभूति पाने के लिए उनकी पत्नी शांता देवी मीणा को टिकट दिया है। वहीं देवली-उनियारा से पिछले चुनाव में प्रत्याशी रहे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के पुत्र विजय बैसला की टिकट काटकर उनके स्थान पर पूर्व विधायक राजेंद्र गुर्जर को ही एक बार फिर मैदान में उतार दिया है।
कुल मिलाकर राजस्थान की 7 सीटो पर होने वाले उपचुनाव के नतीजे भजनलाल शर्मा के राजनीतिक भविष्य का फैसला करेंगे। यदि भजनलाल शर्मा इन उपचुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर पाने में सफल रहते हैं तो उन्हें सरकार चलाने में फ्री हैंड मिल जाएगा अन्यथा नकारात्मक परिणाम की स्थिति में उनकी राजनीतिक स्थिति और अधिक कमजोर हो जाएगी। आगे आने वाले समय में सब कुछ उपचुनाव के परिणाम पर ही निर्भर करेगा।

 

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