राजनैतिक

कश्मीर-अरुणाचल में भाजपा

-प्रो. एनके सिंह-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

कश्मीर डिवेलपमेंट कौंसिल्स तथा अरुणाचल कौंसिल्स के चुनाव परिणाम भारत की सियासत के मानस में चमत्कारी परिवर्तन के परिचायक हैं। इन दोनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की कोई विचारयोग्य उपस्थिति नहीं थी, इसके बावजूद इस पार्टी ने असाधारण परिणाम दिखाए हैं। कश्मीर में पार्टी के उम्मीदवारों की जीत पार्टी के भीतरी तबके के लिए भी आश्चर्यजनक है। उल्लेखनीय है कि भाजपा की केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा दिया है, जिसके बाद हुए चुनाव के परिणाम उसके लिए सुखद माने जा सकते हैं। यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देता था। यह राजतंत्र की विरासत थी, जब राजा गुलाब सिंह राज्य में शासन करते थे। तथापि, राज्य के भारत संघ में एकीकरण के समय इसे अस्थायी प्रावधान के तौर पर रखा गया। समय-समय पर इसमें अब्दुल्ला परिवार का शासन रहा और इस तरह यह अन्य शासनकाल में भी प्रचलित रहा। समस्या उस अनुच्छेद के रिटेंशन में थी जो कश्मीर के लोगों को नागरिकता की अलग पहचान देता था। अनुच्छेद क्यों अतर्कसंगत था, यह डा. बीआर अंबेडकर की इस बात से स्पष्ट होता है जब उन्होंने सवाल किया कि कश्मीर के नागरिकों को वह सभी अधिकार क्यों दे दिए जाएं जो अन्य भारतीयों के लिए नहीं हैं।

वर्षों से कई सरकारों ने इसमें बदलाव का वादा किया, किंतु यह वादा पूरा नहीं हो पाया और राज्य में अनुच्छेद प्रचलित रहा। भाजपा का मानना है कि वह देश की एकता की कड़ी पक्षधर है, इसलिए उन्होंने घोषणापत्र में कहा कि सत्ता में आने पर इस अनुच्छेद को हटा दिया जाएगा। कई अन्य दलों ने भी अपने-अपने घोषणापत्रों में इसके बारे में वादे किए, लेकिन इस भेदभावपरक व्यवस्था को हटाया नहीं जा सका। अन्य दलों ने इसे हटाने के लिए वादे के बावजूद कोई प्रयास नहीं किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस वादे को अपना ध्येय बनाया तथा अनुच्छेद हटाने के लिए उन्होंने अमित शाह को तैनात किया। अमित शाह को कड़े फैसले लेने तथा परिणाम देने के लिए माना जाता है। वह नरेंद्र मोदी के हनुमान ही साबित नहीं हुए, बल्कि उन्होंने इस वादे को अपने अंजाम तक पहुंचा कर उपलब्धियों वाला नेता भी साबित कर दिया। कश्मीरी नेता, जिनमें महबूबा मुफ्ती भी शामिल हैं, बार-बार यह धमकी देते रहे कि अगर इस अनुच्छेद को हटाया गया तो राज्य में खून की नदियां बहने लगेंगी तथा अशांति फैल जाएगी। इन धमकियों के बावजूद इस मनोरथ को बिना खून बहाए तथा शांति भंग किए बिना पूरा कर लिया गया। कश्मीरी नेता राज्य में यथास्थिति के पक्षधर थे। इस भेदभावपूर्ण व्यवस्था को बदलने के लिए अमित शाह ने चतुराई के साथ योजना बनाई तथा एक सोची-समझी रणनीति के जरिए मनोरथ को हासिल कर लिया। उन्होंने बदलाव से पूर्व की स्थिति का अध्ययन करके बदलाव के बाद की संभावनाओं की परिकल्पना भी की। जब यह बदलाव हो गया तो अंतरराष्ट्रीय प्रेस तथा अन्य मीडिया सूत्रों ने दावा किया कि इस बदलाव को लोग स्वीकार नहीं करेंगे तथा वे विद्रोह कर सकते हैं। लोकल डिवेलपमेंट कौंसिल के हाल में शांतिपूर्वक चुनाव संपन्न हुए तथा इसमें भाजपा सबसे बड़े एकल दल के रूप में उभरी।

हालांकि नेशनल कांफ्रेंस तथा अन्य दल मिलकर विधानसभा चुनाव जीत सकते हैं, लेकिन डीडीसी चुनाव के परिणाम से कई दुखी हैं तथा कई हैरान भी हैं। भाजपा की राज्य में अब तक कोई विचारयोग्य उपस्थिति नहीं थी। उसे इस बात का भी खतरा था कि राज्य में मुसलमान वोट गुपकार गुट जैसे दूसरों दलों को जा सकते हैं और उनकी चुनावी संभावनाओं पर यह तुषारापात की तरह होगा। यह गुपकार क्या है। इसका जवाब यह है कि यह वह स्थान है जहां भाजपा के विरोधी दल एक साथ हुए। इसी स्थान पर भाजपा के विरोधी सभी दलों ने गठबंधन बना लिया। हैरान करने वाला एक घटनाक्रम यह भी है कि तीन मुस्लिम युवा श्रीनगर के मेयर के रूप में चुन लिए गए। इसने इस मिथक को तोड़ दिया कि भाजपा की मुस्लिम मतदाताओं के बीच पैठ नहीं है। हर कहीं कांग्रेस ने भाजपा को उभरने के लिए ‘स्पेस’ दिया जो कि चिंता का कारण भी है क्योंकि एक सफल लोकतंत्र के लिए विपक्ष की भी जरूरत होती है। देश के अन्य कोने पर उत्तर पूर्व में भी इसी तरह के परिणाम सामने आए हैं, इसी तरह का घटनाक्रम वहां भी हुआ है। अरुणाचल प्रदेश में भाजपा ने जिला परिषद की 237 सीटों में से 197 सीटें जीत ली हैं। बुरी स्थिति यह है कि जनता दल यूनाइटेड, जिसकी राज्य में आंशिक उपस्थिति थी, के छह सदस्यों ने भाजपा को ज्वाइन कर लिया। इस तरह यह घटनाक्रम लोकतांत्रिक भावना तथा गठबंधन धर्म के भी खिलाफ है। चूंकि स्थानीय चुनाव अथवा उपचुनाव के रूप में भाजपा ने करीब दस राज्यों में जीत दर्ज की है, इस तरह की संभावनाएं बन रही हैं कि भविष्य में और सियासी फेरबदल हो सकते हैं। हैदराबाद और बिहार चुनाव जैसे सियासी आश्चर्य भी हैं। अब भाजपा के निशाने पर पश्चिम बंगाल है। वहां की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी के केंद्र के साथ रिश्ते कड़वे हो गए हैं। सबसे ज्यादा विवादास्पद घटनाक्रम यह है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के काफिले पर ही तृणमूल कांगे्रस के कार्यकर्ताओं ने हमला कर दिया।

राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है, इस आलोचना के पक्ष में एक वैधानिक कारक यह भी जुड़ गया है। इस हमले से यह बात पुख्ता होती है कि राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है। ममता बैनर्जी के लिए असहज स्थिति यह भी है कि उनके अपने साथी ही उन्हें छोड़ रहे हैं तथा भाजपा में जा रहे हैं। कई वरिष्ठ टीएमसी नेताओं ने हाल में भाजपा को ज्वाइन कर लिया। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि भाजपा अमित शाह अथवा प्रधानमंत्री के निर्देशन में पहले रणनीति बनाती है, ब्लू प्रिंट बनाती है, फिर उस पर अमल करके सकारात्मक परिणाम भी हासिल कर लेती है। भाजपा ने यह स्थापित किया है कि वह एक संगठित पार्टी है तथा देश के भविष्य के लिए वह अच्छी तरह ‘उपकरणों’ से सुसज्जित है। अमित शाह ने पार्टी को देश के नक्शे, यहां तक कि जहां उसकी उपस्थिति नहीं भी है, वहां भी उसे नक्शे पर लाने के लिए सुनियोजित प्रयास किए हैं। यह दुखद है कि एक ओर जहां भाजपा शक्तिशाली होती जा रही है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस कमजोर होती जा रही है। कांग्रेस के नेता अपने कैडर को कोई राह नहीं दिखा पा रहे हैं और वह असंगठित नजर आ रही है। यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।

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