राजनैतिकशिक्षा

रेत समाधि की लेखिका गीताजंली श्री को मिला बुकर सम्मान

-विनोद तकिया वाला-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

हिंदी की वरिष्ठ लेखिका गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत समाधि’ को अर्न्तराष्ट्रीय बुकर सम्मान 2022 के लिए चुन लिए जाने के बाद हिंदी प्रेमियों के मन में गीतांजलि श्री और उनके उपन्यास के बारे में जानने की उत्कंठा जग गई है। आप को बता दे कि मूल रूप से हिंदी में लिखा गया यह उपन्यास स्त्री चेतना की कहानी पर आधारित तो है ही, इसमें दो देशों के सरहदों को लांघता हुआ कथानक भी है। हिन्दी के जानकार का मानना है कि सरहदों के पार जाती कहानी इन्सानी अंतर्द्वद्व, उसके संघर्ष की हदों को तोड़ती है और एक ऐसे आशावादी मुकाम पर पहुंचती है, जहां पात्रों की निराशा हवा हवाई हो जाती है। लेखिका गीतांजलि श्री के संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है। लेखिका का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ, दिल्ली के एलएसआर कालेज तथा जेएनयू से इतिहास में पढ़ाई की तथा इनके पति सुधीरचंद्र एक जाने-माने इतिहासकार हैं। गांधी दर्शन पर किया गया उनका काम उल्लेखनीय है। इन दिनों लेखक और इतिहासकार की यह जोड़ी गुड़गांव में रहती है। वैसे उनका घर दिल्ली में भी है।

गीतांजली श्री को साहित्य सम्मान, हिंदी साहित्य, उपन्यास लेखन, उपन्यास रेत समाधि, राजकमल प्रकाशन, अशोक महेश्वरी, डेजी रॉकवेल, माई, हमारा शहर उस बरस, तिरोहित, खाली जगह है। ‘रेत समाधि’ उनका पांचवां उपन्यास है। इससे पूर्व उनके चार उपन्यास प्रकाशित हुए हैं, वे ‘माई’, ‘हमारा शहर उस बरस’, ‘तिरोहित’ और ‘खाली जगह’ हैं। गीतांजलि श्री ने एक दौर में कई कहानियां भी लिखी हैं, ये कहानियां ‘वैराग्य’ और ‘यहां हाथी रहते थे’ संग्रह में संकलित हैं। उनकी प्रतिनिधि कहानियों का एक संग्रह भी अलग से है। उनकी किस्सागोई में मार्मिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण का जादू पसरा रहता है। रेत समाधि’में मानसिक अवशाद से जूझ रही एकआम भारतीय परिवार की स्त्री कैसे बॉर्डर पार कर पाकिस्तान जाना का र्निणय लेती है। कैसे वह अपने को इस मानसिक अवशाद से निकालती है-यह पढ़ना पाठको के लिए काफी रोमांचक है। लेखिका नें अपने इस उपन्यास की लेखन में कई बनी-बनाई राजनीतिक्र सरहदें ध्वस्त करता चलता है, साथ ही अपने मिजाज में नए प्रतिमान भी गढ़ता है। सच तो यह है कि रिश्तों और संघर्ष के बारीक रेशों से बुने गए इस उपन्यास के बारे में चार पंकितयों में समेट कर समीक्षा कर पाना मुशकिल नही नामुमकिन है। इसका आनंद तो पढ़कर ही उठाया जा सकता है। हकीकत में, इस उपन्यास के प्रत्येक पन्ने पर कई नए किरदार आपको मिलते हैं। कई बार घर में पड़ी निर्जीव चीजें भी जीवंत होकर अपना आप बीती किस्सा सुनाने लगती हैं।

इस उपन्यास के केंद्र में 80 बरस की एक बृद्ध महिला हैं, जिनके पति की मौत हो चुकी है। इस मौत के बाद वृद्ध कथा नायिका मानसिक अवसाद की शिकार हो जाती हैं। मानसिक आघात इतना गहरा है कि वे अपने कमरे से भी निकलना नहीं चाहतीं, पूरा परिवार उनसे तरह-तरह से मनुहार कर रहा है। बेटा अपने ढंग से और बेटी अपने ढंग से मनाने की कोशिस करती है कि वे कम से कम अपने कमरे से बाहर तो निकलें, लेकिन महिला ने खुद को काले कमरे में बंद कर रखा है कि वे बाहर आने से घबराती हैं। क्रमश: परिवार के साथ वृद्धा नायिका के संवादों में रिश्तों की परतें खुलती जाती हैं। पात्रों की मनोदशा के रेशे-रेशे आपको दिखने लगते हैं, संबंधों की बिल्कुल अजूबी दुनिया से आपका साक्षात्कार होता है। ऐसे ही समय में अचानक वृद्धा नायिका को पाकिस्तान जाने की सूझती है। वहां उन्हें किसी रोजी नाम की स्त्री का कोई सामान सौंपना है। इस उपन्यास मे पाठक अपनेआप को महसूस करेंगे कि कैसे यह सामान्य सी महिला की कथा भी है, कैसे सरहदों के आर-पार जाती कहानी भी है और कैसे मानव संबंधों की जटिलता का मनोवैज्ञानिक आख्यान भी है। इतिहास की कहानी तो है ही।

रिश्तों के ताने-बाने में बुना यह उपन्यास कई मुद्दों पर कटाक्ष भी करता चलता है। भारत से पाकिस्तान तक की यात्रा में समाज की वह उम्मीदें भी दिखने लग जाती हैं जो उसे पारंपरिक रूप से किसी स्त्री से होती हैं। पुलिश की इंसानियत की वजह से उपजने वाला टकराव, पितृसत्ता के खिलाफ बुलंद होती शालीन आवाज से लेकर राजनीति का दोहरापन, पर्यावरण की चिंता, सांप्रदायिकता से पसरता तना, विभाजन प्रेम की आवाज के साथ-साथ इस उपन्यास में भारत-पाकिस्तान की राजनीति भी बेनकाब होती चलती है। हिंदी की वरिष्ठ लेखिका गीतांजलि श्री के पास एक चमकती हुई भाषा है। शब्द विन्यास के छोटे-छोटे वाक्य हैं। उपन्यास में अधूरे छोड़े गए वाक्य भी संदर्भों को पूरी तरह खोलकर रख देते हैं। ‘धम्म से आंसू गिरते हैं जैसे पत्थर। बरसात की बूंद।’ जैसे काव्यात्मक वाक्य इस उपन्यास को बिल्कुल नई छटा देते हैं।

“बेटी का निचला होंठ रुलाई से काँपा और माँ ने उसे गोद में उठा लिया। फिर जो हुआ वो ये कि माँ वो होंठ बन गयी जो काँप रहा था। बेटी का सिर काँधे पर रख उसे बहलाने गुनगुनाने लगी कि वो जो बड़ा सा हाथी है, बैठा है इंतज़ार में कि बेटी आये, उसकी सवारी करे, और दोनों झूम झूम करें, और पत्ते गपशप कर रहे हैं और सुनो सुनो कहानियाँ सुना रहे हैं। बेटी मुस्करा पड़ी। ये हुआ तो माँ वो मुस्कान बन गयी। बेटी की रुलाई धीरे धीरे स्थिर साँसों में बदल गयी और माँ सिसकी से साँस हो गयी। बेटी सो गयी और माँ सलोने सपनों से उसे ओढ़ाती रही। उस पल एक मोहब्बत देहाकार हुई। माँ की साँस खोती चली, बेटी की साँस किलकारने लगी और हाथी की पीठ उल्लास से पुकारने लगी।’ उपन्यास कार गीतांजलि श्री ने कई बार उन्हें पात्रों की तरह पेश किया है। ये निर्जीव पात्र जब सजीव होते हैं और अपना अंतर्द्वद्व बयां करते हैं तो वह कभी पैबंद (पैच) की तरह नहीं लगते, बल्कि वह उपन्यास का सघन हिस्सा बन जाते हैं। उपन्यास का ऐसा ही एक हिस्सा गौर करने लायक है।

“ज़िन्दगी का क्या? छोटे से दायरे में चलना जानती है, जैसे एक पगडण्डी पे जो शुरू हुई नहीं कि ख़तम। पर विशाल विकराल भी जानती है, जैसे पगडण्डी से खुली सड़क पे निकल आये और बड़ी सड़क से जा मिले जो महामार्ग हो, ग्रैंड ट्रंक रोड जैसा ऐतिहासिक हाईवे हो। इनका पगडण्डी से दूर सुदूर जुड़ जाना कहानी में नए मोड़ लाता है, ट्रक ट्रैक्टरों की दहाड़ से पगडण्डी थर्रा जाती है, या सिल्क रूट से चिरकाल से उतारे रेशमी एहसास उसको नरमी से लपेट लेते हैं। पगडण्डी चमत्कृत होती है कि कहाँ से आ रही होंगी ये सड़कें, किन वक्तों से, काफ़िलों से, सरहदों से। और कहाँ से कहाँ आ गयी मैं, कितने अलग अलग जीवन पार करके। क्या अभी भी वही पगडण्डी हूँ, या उसके भी पहले की ज़रा सी रविश?पर ये सवाल कौन पूछेगा, कब, अभी किसे ख़बर?’

गीतांजलि श्री का लेखन जटिल बुनावटों वाला है. उनके लेखन में बाहर और भीतर की दुनिया एक साथ सधती है. अगर आप उनके लेखन से यह उम्मीद पालते हैं कि कुछ रोमांचक मिलेगा या कोई ऐसा तत्त्व जो आपके अचेतन में पैठे विलास को तुष्ट करेगा तो आपको घोर निराशा होगी. हां अगर आप किसी संवेदनशील विचार-लेखन की सैर करना चाहें, बाहर के शोर और भीतर के सन्नाटे को पहचानना चाहें, बदलावों-ठहरावों के बयार को बारीकी से समझने की मंशा हो, तो उनका लेखन शायद आपकी मदद कर सकता है। गीताजंली श्री ने ना केवल हिन्दी प्रेमियों का दिल जीता है बल्कि भारत की इस बेटी मे सम्पूर्ण विश्व में भारत के माथे हिन्दी की विन्दी के सम्पूर्ण विश्व में तिरंगा की आन वान -शान से फहराया है लेकिन दुःख की बात यह है राजनीति सता के गलियारों से बधाई व शुभकामनाए तक नही दी गई लेकिन खबरी लाल अपनी लेखनी से गीताजंली श्री को माँ सरस्वती की मानस पुत्री को शत शत नमन व हद्वय की गहराईयों से शुभ कामनाएं देता है। फिलहाल आप से यह कहते हुए विदा लेते है
ना ही काहूँ से दोस्ती ‘ ना ही काहुँ से बैर।

 

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