राजनैतिकशिक्षा

कांग्रेस संगठन को ‘च्यवनप्राश’ बनाए नेतृत्व…आगे बड़ी चुनौती

-अजय जैन ‘विकल्प’-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

आखिरकार इस बार भी सबसे पुराने दल कांग्रेस का दामन और फट ही गया। 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों ने कांग्रेस को फिर केवल बड़बोला और संगठन स्तर पर शून्य साबित कर दिया है। जीत-हार के इस जश्न में यह बड़ा संदेश है कि संगठन में समय अनुरूप बदलाव कीजिए, हालात समझिए, मोह और गुटबाजी छोड़िए, अन्यथा ऐसे ही परिणाम के लिए दोबारा भी तैयार रहिए। हालांकि, संगठन के आला इसे अब भी शायद ही स्वीकार करें कि, आमजन ने कांग्रेस को अप्रासंगिक मानकर दुत्कार दिया है। इस स्थिति में कांगेस के लिए निराश होने की अपेक्षा सबसे बेहतर यही होगा कि उसे गैर गांधी का नेतृत्व बतौर अध्यक्ष मिले, अथवा अंतरिम अध्यक्ष ही नेतृत्व करे और आने वाले कुछ समय तक चुनाव छोड़कर घर बैठते हुए हवाबाजी की बजाय केवल संगठन की मजबूती के साथ गलतियों पर गंभीर और ईमानदारी से सकारात्मक मंथन किया जाए।
कहना अनुकूल होगा कि, उत्तरप्रदेश में भाजपा संगठन, मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादू चल गया और परिणाम अनुमान सहित भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व की मंशा मुताबिक ही आए। एक ही समय में 5 राज्यों में चुनाव होना और 4 में बहुमत से आना यह भाजपा की सालभर चलने वाली संगठनात्मक गतिविधियों का असर है, जिसके पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक सहित अन्य की भी ईमानदार और विशिष्ट भूमिका है। यह एक तरह का कुशल, गुटबाजी रहित एवं परिवार से ऊँचा उठकर किया जाने वाला प्रबंधन है, जो कांग्रेस अब तक सीखी नहीं, और सीखी तो अमल किया नहीं और किया तो ज़मीन पर नहीं।
हर लोकसभा, विधानसभा और छोटे से चुनाव में भी हार और जीत दोनों ही मिलती है, पर उस परिणाम की सतत समीक्षा एवं नए-पुराने प्रयोग दोहराने के बाद भी चुनाव में हार की माला गले में लटकाना कांग्रेस अपनी नियति बना चुकी है। ऐसा नहीं कि कभी भाजपा नहीं हारी और कांग्रेस जीती नहीं, पर उस परिणाम से आगे सबक लेना और समय पर उचित निर्णय लेकर मैदान में उतरना बहुत आवश्यक है। आने वाले 2024 में कांग्रेस के सामने और बड़ी चुनौती आने वाली है, जिसके लिए आज से ही पराजय पर रोने और सोने की बजाय कड़े फैसले एवं अमल भी करना पड़ेगा। जमीनी कार्यकर्ता की बात भी उतनी ही सुननी होगी, जितनी मुख्यमंत्री य़ा वरिष्ठ नेता की सुनी जाती है। कांग्रेस की नजर में भाजपा प्रमुख विरोधी दल है, पर खुले और बड़े मन से उसकी संगठनात्मक शक्ति को समझकर तालाब में से मोती जैसी बातें और योजना अंगीकार करनी होंगी।
कांग्रेस के नेतृत्व को संगठन को मजबूती देकर ‘च्यवनप्राश’ बनाना होगा, जिसे हर योद्धा पसंद करता है, क्योंकि उसे अपनी कमजोरी को ताकत बनाम शक्ति में बदलना है। इसी दिशा में कांग्रेस संगठन को नीचे वाले स्तर तक जाल समान बुनना होगा, क्योंकि 2024 में सबके सामने बड़ी चुनौती होगी।
कांग्रेस के शीर्ष मुखिया को यह समझना होगा कि, संगठन ही सत्ता है या बेहतर संगठन और कार्यकर्ता ही सत्ता रूपी खजाने की चाबी है। बड़े व अनुभवी नेताओं को जिम्मेदारी देनी होगी, हर दिन समीक्षा करनी होगी और निष्क्रियता रूपी रोग का इलाज भी करना पड़ेगा, तभी आमजन की नजर में संगठन का मान लौटेगा और बढ़ेगा भी। विशेष रूप से बतौर अनुभव कांग्रेस द्वारा भाजपा को कोसने की अपेक्षा स्वयं के काम से अपनी लकीर बड़ी करनी होगी। जिन राज्यों में कांग्रेसी सत्ता है, वहां यह लकीर विशेष तौर पर बड़ी करनी आवश्यक है। नया सूरज निकालने का विकल्प कांग्रेस के पास भी है, बस उसे अपनी अजेयता के लिए मजबूत होना पड़ेगा।
विडंबना देखिए कि, कुछ समय पहले कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपनी प्रतिष्ठा गवांने के बाद जैसे नहीं बदली थी, वैसे ही दिल्ली में नवोदित दल ‘आआप’ से भी पराजित होकर भी नहीं सुधरी। जरा याद कीजिए कि, कुछ साल पहले दिल्ली में हार के बाद कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने कहा था कि हम केजरीवाल से सीखेंगे, मगर हुआ क्या। ना तो कांग्रेस और ना राहुल गांधी-प्रियंका गांधी ने कुछ सीखा, उल्टे लगातार गलतियां कर दल को आज गर्त में धकेल दिया है। कांग्रेस को यह भी मानना-समझना होगा कि, देश में जहां भाजपा का राज कई वर्षों तक रहेगा, वहीं राज्यों में अब आआप उसके लिए और चुनौती खड़ी हो गई है, जबकि अन्य दल तो हैं ही, इसलिए संगठन की दुर्गति को समाप्त करना ही उसे ऊँचाई पर ले जा सकेगा।
बहरहाल, कांग्रेस को इन चुनावों में किस बात की बधाई दी जाए, यह भी सोचना चाहिए। पंजाब से गोवा तक कांग्रेस संगठन ने ऐसा क्या तीर मारा कि, दल की झोली में मतदाताओं ने सत्ता के कड़क नोट तो दूर की बात, सफलता की चिल्लर तक नहीं पटकी। कुल मिलाकर बात यही है कि, भाजपा परिवारवाद से दूर, संगठन, नीयत, नीति व कार्यकर्ता के दम पर चलती थी, चलती है और चलेगी भी। कांग्रेस को नेताओं और परिवारवाद से निकालकर कार्यकर्ताओं का दल बनाना पड़ेगा। ठीक इसी प्रकार कांग्रेस को थोड़े समय मन को पक्का करके चुनाव लड़ने से बचते हुए चरमराते संगठन को चमकते अनुशासित संगठन में जल्दी ही बदलना पड़ेगा, वरना आगे भी लाभ की किरण केन्द्र तो दूर, शायद ही किसी राज्य में भी सफलता का सूरज लाए।

 

 

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