राजनैतिकशिक्षा

ऑनलाइन कारोबार की रेगुलेशन

-डा. वरिंदर भाटिया-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

केंद्र के कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मिनिस्टर ने कहा है कि ई-कॉमर्स (ऑनलाइन कारोबार) सेक्टर में फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट की मौजूदा पॉलिसी को सरकार नहीं बदलेगी। हाल ही में देश के कानूनों का उल्लंघन करने के कारण कुछ अमरीकी कंपनियों की आलोचना की गई थी। केंद्र ने यह भी स्पष्ट किया है कि ई-कॉमर्स में एफडीआई के लिए पॉलिसी में कोई बदलाव नहीं करेंगे। बीते वक्त में ऑनलाइन बिजनेस करने वाली कई कंपनियों के साथ सरकार का टकराव हो चुका है। ऑनलाइन व्यापार से जुड़ी बढ़ती शिकायतों के चलते सरकार ने हाल ही में कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ई-कॉमर्स रूल्स की घोषणा की है। ये रूल्स सार्वजनिक चर्चा के लिए 6 जुलाई तक खुले हैं। ई-कॉमर्स, जिसे इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स भी कहते है, इंटरनेट तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से उत्पाद और सेवाएं खरीदना-बेचना तथा ऑनलाइन मनी ट्रांसफर करना एवं डेटा शेयर करने की प्रक्रिया है। ई-कॉमर्स में फिजिकल प्रोडक्ट्स के अलावा इलेक्ट्रॉनिक गुड्स तथा सेवाओं का व्यापार भी होता है। अगर और आसान शब्दों में कहें तो ऑनलाइन शॉपिंग करना ही ई-कॉमर्स कहलाता है। आप फिजिकल प्रोडक्ट (फर्नीचर, किचन आइटम, इंडस्ट्री मशीनरी आदि), डिजिटल गुड्स (ई-बुक्स, ई-मैगजीन्स, ई-पेपर, वीडियो कोर्स, ग्राफिक्स, पेंटिग्स आदि) एवं सेवाएं (कंसल्टेंसी, टीचिंग, राइटिंग, हेल्थ एडवाइस, लीगल एडवाइस आदि) ऑनलाइन खरीद-बेच सकते हैं। ऑनलाइन कारोबार यानी ई-कॉमर्स ने कोरोना महामारी के दौर में लाखों लोगों को जरूरी सामान ख़रीदने के लिए बाहर निकलने से बचाया है। ई-कॉमर्स ने भारत में ख़रीददारी के मायने बदल दिए हैं।

अगले तीन साल के दौरान इसका भारतीय बाजार 99 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। कोविड महामारी के संकट के दौर में जब सब कुछ ठहर गया, तब ई-कॉमर्स तेजी से बढ़ा है। इस कामयाबी के बाद भी भारत में ई-कॉमर्स के बड़े विवाद देखने को मिल रहे हैं। यह ऐसे समय में हो रहा है जब भारत में हर साल लाखों लोग ऑनलाइन से जुड़ रहे हैं। इन कंपनियों पर छोटे कारोबारी लगातार कुछ विक्रेताओं को देने और बाकियों की उपेक्षा करने का आरोप लगाते रहे हैं। इसके अलावा भारत के लाखों परंपरागत दुकानदार भी सालों से दावा करते आए हैं कि बिना किसी नियंत्रण वाली ई-कॉमर्स वेबसाइटें उन्हें कारोबार से बाहर धकेल रही हैं। हाल ही में 21 जून को नियमों में सख्ती लाते हुए उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने ई-कॉमर्स को लेकर मौजूदा नीतियों में बदलाव का प्रस्ताव रखा है। इन प्रस्तावों में एक प्रस्ताव उत्पादों की सेल पर पाबंदी लगाने का भी है, जबकि ई-कॉमर्स की वेबसाइटों पर त्योहार के समय में ऐसे सेल काफी लोकप्रिय हैं। प्रस्तावित नए नियमों में कहा गया है, ‘ई-कॉमर्स संस्थाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अनुचित कारोबारी लाभ लेने के लिए अपने मंच के माध्यम से संबंधित पक्षों और संबद्ध उद्यमों से एकत्र की गई किसी भी जानकारी का उपयोग न करें। भारतीय नियमों के मुताबिक उदारवादी नीतियों वाले ऑटोमेटिक रूट के तहत 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति है, लेकिन ई-कॉमर्स में इन्वेंटरी बेस्ड मॉडल जहां उत्पाद ई-कॉमर्स कंपनी का हो और उसे सीधे उपभोक्ताओं को बेचा जा रहा हो, वहां प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति नहीं है। ई-कॉमर्स कंपनियों को अपनी बिक्री का एक-चैथाई यानी 25 प्रतिशत या उससे ज्यादा किसी एक वेंडर या कंपनी से बेचने की अनुमति भी नहीं है। नियमों के मुताबिक उत्पादों या सेवाओं की बिक्री की कीमतों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दबाव भी नहीं डाल सकती हैं, ताकि रिटेल से बराबरी की स्थिति बनी रहे। लेकिन बड़ी कंपनियों को खुला बाजार देने की रणनीति को लेकर कई लोगों ने चेताया भी है, क्योंकि इन बड़ी कंपनियों पर जो आरोप लग रहे हैं, वे नए नहीं हैं।

आलोचक हमेशा यह आरोप लगाते आए हैं कि ये कंपनियां कारोबार पर अपना आधिपत्य जमाने के लिए गैर प्रतिस्पर्धी तौर-तरीके अपनाती हैं। गोल्डमैन ने ‘ग्लोबल इंटरनेट ई-कॉमर्स स्टीपेनिंग कर्व’ टाइटल से एक रिपोर्ट में कहा है कि साल 2024 तक भारत का ई-कॉमर्स कारोबार 99 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। ऐसा इस कारोबार में 27 फीसदी की कंपाउंड एनुएल ग्रोथ रेट यानी सीएजीआर के आने से होगा। साल 2024 तक दुनिया के ई-कॉमर्स बाजार में भारत का बेहद बड़ा हिस्सा होगा और इस कारोबार के लिए भारत में असीम संभावनाएं दिख रही हैं। कोरोना वायरस संकटकाल के दौरान जहां सभी तरह के कारोबार को भारी नुकसान पहुंचा है, वहीं ई-कॉमर्स कंपनियों के कारोबार में जोरदार बढ़त देखी जा रही है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कंज्यूमर पैकेज्ड गुड्स जैसी कैटेगरी के मामलों में जो ग्रोथ सिर्फ तीन महीनों में देखी गई है, वो करीब पिछले तीन साल की ग्रोथ के बराबर है। इस तरह ई-कॉमर्स कंपनियों के कारोबार में इस कोरोना संकटकाल के दौरान भी कमी नहीं आई है, बल्कि इजाफा ही देखा गया है। साल 2024 तक भारत में ई-कॉमर्स कारोबार के कई घटक जैसे रिटेल, फैशन, एपैरेल के जरिए ऑनलाइन कारोबार में भारी ग्रोथ देखी जाएगी। रिटेल की ऑनलाइन पहुंच के तेजी से ग्रोथ के जरिए इसके 10.7 फीसदी तक पहुंचने की संभावनाएं इस रिपोर्ट में जताई गई हैं। साल 2024 तक ई-कॉमर्स कारोबार के 99 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान तो है ही और ऐसा साल दर साल 27 फीसदी सीएजीआर के होने के चलते होगा। सरकार ने पिछले सप्ताह भारत में ई-कॉमर्स क्षेत्र के लिए कुछ प्रस्तावों की घोषणा की थी। इन प्रस्तावों में कुछ ऐसे बदलाव भी शामिल हैं जिनकी वजह से ई-कॉमर्स कंपनियों की नींद उड़ी हुई है। ये प्रस्ताव बेहद व्यापक हैं और केवल इनसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ही नहीं, बल्कि कई अन्य सेक्टर भी प्रभावित होंगे।

ई-कॉमर्स सेक्टर के लिए नए प्रस्तावों को लेकर कन्फ्यूजन भी बरकरार है। ई-कॉमर्स कंपनियों को प्रोडक्ट की प्राइसिंग, क्वालिटी और गारंटी पर गुमराह करने वाले विज्ञापनों की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। उन्हें डिस्काउंट की पेशकश करने वाले विक्रेताओं यानी सेलर्स का विज्ञापन नहीं करना चाहिए। कहा जा रहा है कि इससे ईटेलर्स का बढ़ता ऑनलाइन एडवर्टाइजिंग बिजनेस प्रभावित हो सकता है। ई-कॉमर्स कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके प्लेटफॉर्म पर लिस्टेड प्रोडक्ट पर ‘वह किस देश का बना हुआ है’, यह मौजूद रहे यानी कि कंट्री ऑफ ओरिजिन। यह एक बेहद मुश्किल टास्क है। इस नियम को लागू करने में जो सबसे बड़ी मुश्किल हो सकती है, वह यह है कि जब भी ग्राहक ऑनलाइन खरीददारी करे तो उसे आयातित प्रोडक्ट या सर्विस का लोकल विकल्प भी दिखाई दे। यह भी एक कठिन टास्क है। इन दोनों डिटेल्स को मेंटेन करने को लेकर ई-कॉमर्स कंपनियों और सेलर्स दोनों में ही कोई उत्साह नहीं है। ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर कुछ प्रोडक्ट ऐसे भी होते हैं जिन्हें खरीद लेने के बाद वापस नहीं किया जा सकता। आमतौर पर ऑनलाइन शॉपिंग में फ्री एक्सचेंज या रिफंड की पेशकश रहती है। कंज्यूमर से स्पष्ट तौर पर उसकी मंजूरी जान लेना ग्राहक के लिए ऑनलाइन शॉपिंग अनुभव को बेहतर ही बनाएगा। ई-कॉमर्स कंपनी सामान या सेवा की गलत बिक्री में लिप्त नहीं होनी चाहिए। कुल मिला कर देश में स्वदेशी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स और स्टार्टअप को उत्साहित करने की नीतियां रेखांकित किए जाने की जरूरत है क्योंकि विदेशी वर्चस्व वाली ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा ग्राहकों का वित्तीय शोषण निरंतर बढ़ रहा है।

 

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