राजनैतिकशिक्षा

प्रकृति का समझें मोल

-सिद्वार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

कोरोना काल में एक चीज तो सभी को समझ आ गई होगी कि प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा क्या होता है। कुछ साल पहले चीन में ऑक्सीजन या कहें शुद्ध हवा बेचने की खबर आई थी तो हर किसी ने इसे बकवास कहा था या फिर लोगों को लूटने का हथकंडा। मगर आज क्या हो रहा है। हम भी ऑक्सीजन के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं। जो ऑक्सीजन हमें प्रकृति ने फ्री में दी है, उसका मोल नहीं समझा और अब कृत्रिम ऑक्सीजन के लिए हाथ-पैर जोड़ रहे हैं। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई ने ऑक्सीजन तो कम की ही, श्मशान में शवों को जलाने के लिए लकड़ी की भी कमी कर दी है। अस्पताल से लेकर श्मशान तक जो नजारा दिख रहा है, उसमें कोरोना महामारी का योगदान तो है, हमारा भी कम नहीं है। समय रहते चीजों का मोल अगर हम समझने लगें तो शायद दिक्कतें कम हो जाएं। आज देश के हर अस्पताल में ऑक्सीजन के लिए मारामारी मची है। कोई भी सरकार, कोई भी नेता और कोई भी अफसर मरीजों की सबसे बड़ी जरूरत को पूरा कर पाने में असमर्थ है। जहां ऑक्सीजन है, वहां के अस्पताल में भर्ती होने के लिए मरीजों की लंबी कतार है, जहां नहीं है, वहां के हालात बताने की जरूरत नहीं। एक दिन पहले नासिक के अस्पताल में ऑक्सीजन आपूर्ति बंद होने से 24 कोरोना मरीजों की मौत दहला देने वाली घटना है। इस हादसे ने एक बार फिर अस्पतालों में मरीजों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसी घटनाएं इसलिए भी ज्यादा विचलित करती हैं कि लोग अस्पतालों में नए जीवन की उम्मीद से जाते हैं, लेकिन अगर अस्पताल में इस तरह से मौत मिलने लगे तो इससे ज्यादा भयानक और दुखदायी क्या होगा! इस अस्पताल में इन दिनों कोरोना संक्रमितों का इलाज किया जा रहा है। बुधवार को अस्पताल के ऑक्सीजन टैंक में रिसाव हो गया। अस्पताल प्रशासन ने हड़बड़ाहट में ऑक्सीजन आपूर्ति बंद कर दी। उस वक्त बड़ी संख्या में मरीज ऑक्सीजन पर थे। ऑक्सीजन बंद होते ही मरीजों की स्थिति बिगड़ गई। रिसाव रोकने के लिए करीब दो घंटे तक ऑक्सीजन आपूर्ति बंद रखी गई। इसी बीच चैबीस लोगों ने दम तोड़ दिया। इस घटना के वक्त अस्पताल में एक सौ सत्तर से ज्यादा मरीज भर्ती थे और इनमें कई मरीज जीवन रक्षक प्रणाली पर थे। जाहिर है, हालात तो बिगडने ही थे। फिलहाल यह गहन जांच का विषय है कि आखिर टैंक में रिसाव की वजह क्या रही, जो इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौत का कारण बनी। क्या टैंक और ऑक्सीजन आपूर्ति प्रणाली के रखरखाव में खामियां थीं? जिस विभाग पर इसके रखरखाव की जिम्मेदारी थी, क्या उसकी लापरवाही ही हादसे का कारण बनी? इन बातों की जांच जरूरी है। नाशिक के अस्पताल में ऑक्सीजन संयंत्र के रखरखाव की जिम्मेदारी एक स्थानीय निजी कंपनी के हाथ में होने की बात सामने आई है। हालांकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कोई गंभीर मानवीय चूक इस हादसे का कारण रही होगी। गैस का रिसाव जैसी घटना तकनीकी या मानवीय गलती के बिना हो जाए, इसकी संभावना कम ही रहती है। देश की लगभग सभी अदालतें सरकारों से उद्योगों को दी जाने वाली ऑक्सीजन पर रोक लगाने को कह चुकी हैं। दिल्ली हाईकोर्ट के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने भी कड़ा रुख दिखाया है। सवाल यह नहीं है कि अदालतों के सख्त रुख और सरकारों के प्रयास से अस्पतालों में ऑक्सीजन की सप्लाई सुचारू हो जाएगी, सवाल यह है कि इस समस्या को इतना बड़ा क्यों बनने दिया गया। राज्यों में ऑक्सीजन प्लांट पर्याप्त संख्या में क्यों नहीं लगाए गए। कोई भी आपदा बताकर नहीं आती। लिहाजा उससे निपटने की तैयारी हमें करके रखनी होगी। समस्या आने पर हाथ-पैर मारने की आदत छोडनी होगी। स्वस्थ भारत समृद्ध भारत के नारे को साकार करना होगा। गौरतलब है कि अभी देश महामारी से बुरी तरह जूझ रहा है। अस्पतालों में बिस्तर, दवाइयों और ऑक्सीजन के लिए भारी मारामारी है। ऑक्सीजन सिलेंडरों की लूटपाट होने तक की खबरें आ रही हैं। बेशक इन दिनों अस्पतालों पर भारी दबाव है। लेकिन कुछ भी हो, मरीजों को सुरक्षा तो सर्वोपरि होती है। और इसी बात का खयाल अस्पताल प्रशासन नहीं रख पाया। जिस अस्पताल में ऑक्सीजन आपूर्ति का संयंत्र लगा हो, वहां निश्चित रूप से इसकी देखभाल करने वाला मुस्तैद तंत्र भी होना चाहिए।

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