अन्तःकरण सबसे बड़ी अदालत
-संजय गोस्वामी-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
2006 में बहुचर्चित निठारी की कोठी नंबर डी-5 में रहने वाले मोनिंदर और उसके नौकर सुरेंद्र कोली पर बच्चों की बेरहमी से हत्या और अवशेष को घर के पीछे दफनाने का आरोप था। अब जब दोनों को कोर्ट से दोषमुक्त होने के बाद रिहाई मिल चुकी है, तो एक बार फिर उस दर्दनाक याद ने गांव में सन्नाटा फैला दिया है। उन घरों में जहां कभी बच्चों की खिलखिलाहट गूंजती थी, अब सिर्फ दर्द की परछाइयां बची हैं। 2005-2006 : नोएडा के निठारी गांव से कई बच्चे और महिलाएं लापता होने लगे। -दिसंबर 2006 : पुलिस ने कारोबारी मोनिंदर सिंह पंढेर और उसके नौकर सुरेंद्र कोली के घर के पास से हड्डियां और शरीर के अंग बरामद किए। सुरेंद्र कोली को नौ सितंबर (रविवार) 2014 मेरठ जेल में फांसी दी जानी थी। कोली को मेरठ जेल की एक हाई सिक्योरिटी बैरक में रखा गया था। फांसी की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी थी। रविवार को अदालत बंद होने से अधिवक्ता इंदिरा जय सिंह ने रात को ही सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा से मिलने का समय मांगा था। रात को करीब 11:45 बजे वरिष्ठ मुख्य न्यायमूर्ति एचएल दत्तू के घर विशेष अदालत लगी। रात में ही बहस हुई। कैलेंडर की तारीख बदल गई। उस समय रात को एक बजने से कुछ समय पहले ही विशेष अदालत ने अपना फैसला सुनाया। अपने फैसले में अदालत ने सुरेंद्र कोली के मामले में दोबारा सुनवाई के लिए इंदिरा जय सिंह को एक सप्ताह का समय देते हुए सुरेंद्र कोली की फांसी पर रोक लगा दी। सबसे पहले फोन करके मेरठ के डीएम और एसएसपी को इस फैसले की जानकारी दी गई। सुरेंद्र कोली की फांसी को अगले सप्ताह तक रोके जाने की जानकारी दी गई। इसके साथ ही उन्हें अदालत के आदेश की लिखित कापी मिलने तक इंतजार करने को कहा गया। निठारी हत्याकांड में मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली को सुप्रीम कोर्ट से बरी होने के बाद आदेश के अनुपालन में विशेष सीबीआई कोर्ट ने रिहाई परवाना जारी कर दिया। इसके बाद उसे गौतमबुद्धनगर के लुक्सर जेल से मुक्त कर दिया गया। निठारी कां हत्याकांड की तरह साक्ष्य के अभाव में अदालत के आदेश के बाद अपराधी को जेल से रिहा कर दिया जाता है समाज में व्यक्तिगात शोषण के अतिरिक्त कुछ सामाजिक अत्याचार भी होते हैं-जातिवाद, बिरादरीबाद, प्रान्तवाद तथा कुटिल राजनीति इत्यादि के संकीर्ण दृष्टिकोण से। योग्य व्यक्ति के अधिकार छीन लिये जाते हैं और अयोग्य अथवा निम्नस्तरीय व्यक्ति को योग्य व्यक्ति के सिर पर बैठा दिया जाता है। इसके दो परिणाम संभव है-(1) व्यक्ति सिकुड़कर समाज के एक कोने में छिपकर पड़े हुए आत्मग्लानि की भट्टी में जलता रहे अथवा आत्महत्या आदि को अपनाकर अपमानजनक स्थिति का अन्त कर दे। (2) अथवा वह हिंसा का सहारा लेकर अपराधी के रुप में सामाजिक अपराध करना प्रारंभ कर दे। किंतु विवेकशील व्यक्ति ऐसे समय में भी सुदृढ़ रहकर अपने मन में अथवा व्यवहार में ऐसी प्रतिक्रिया नहीं होने देता है। यह संकीर्णता की कदापि नहीं अपनाता है। कीचड़ से कीचड़ नहीं धोयी जाती है। शुद्ध जल से ही कीचड़ को धो सकते हैं। जब आप पर अन्याय हो रहा है, तो दो ही राह हैं-घृणा को त्यागकर कर्त्तव्य ने नाते अत्याचार का प्रतिरोघ करें तथा संघर्ष करें और जो भी फल हो उसे स्वीकार कर लें अथवा संतभाव को अपनाकर सब कुछ प्रभु पर छोड़ दें तथा अन्यायी के लिए भी सद्भावना ही करते रहें। नादिरशाही अन्याय का अन्त अवश्य होगा। एक छोटी-सी चींटी हाथी के लिए, एक छोटा-सा छिद्र विशाल नौका के लिए, एक नगण्य मनुष्य अत्याचारी के लिए घातक सिद्ध हो जाता है। कमजोर पिट जाता है, किंतु सतानेवाला मिट जाता है। अत्याचारी अपने अत्याचार से स्वंय नष्ट हो जाता है। अत्याचारी के जीवन का अन्त सदैव भयानक होता है। सन्त क्षमादान कर प्रभु के दैवी न्याय पर सब कुछ छोड़ देता है। सन्त के लिए अपने व्यक्तिगत मामले में क्षमादान देना श्रेष्ठ होता है, किंतु यदि अन्य जन पर अन्याय हो रहा हो, तो उसका प्रतिरोघ करना सदैव समुचित हैं।
