राजनैतिकशिक्षा

भारत की उच्च शिक्षा में गुणवत्ता लुप्त

-डॉ. वरिंदर भाटिया-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस देश के पहले शिक्षा मंत्री एवं भारत रत्न से सम्मानित मौलाना अबुल कलाम आजाद की याद में हर 11 नवम्बर को मनाया जाता है। वैधानिक रूप से इसका प्रारम्भ वर्ष 2008 से किया गया है। मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म 11 नवम्बर 1888 को हुआ था। वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे। मौलाना आजाद एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, कट्टर राष्ट्रवादी और दूरदर्शी शिक्षाविद थे। वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति थे और शिक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता अद्वितीय थी। उनका दृढ़ विश्वास था कि शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग समाज को बदलने और जनता को सशक्त बनाने के लिए किया जा सकता है। भारत के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने देश की आधुनिक शिक्षा प्रणाली की नींव रखी। उनके अथक प्रयासों से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) की स्थापना हुई। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी प्रणाली, लेकिन, भारत अब दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी उच्च शिक्षा प्रणाली है, जिसमें 1100 विश्वविद्यालयों सहित 56000 से अधिक उच्च शैक्षणिक संस्थानों में 4.3 करोड़ (43 मिलियन) से अधिक छात्र हैं। हालांकि जहां तक सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) का सवाल है, हमारे देश में चार में से केवल एक युवा को उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज जाने का अवसर मिल रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 का एक प्रशंसनीय लक्ष्य 2035 तक जीईआर को दोगुना कर 50 फीसदी करना है। इसके अलावा विश्व स्तर पर चीन के बाद भारत अंतरराष्ट्रीय छात्रों का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है। 2017 से 2022 तक 13 लाख से अधिक भारतीय छात्र उच्च अध्ययन के लिए विदेश गए।

अमेरिका सबसे लोकप्रिय गंतव्य है, जहां 4.65 लाख छात्र रहते हैं। इसके बाद कनाडा (1.83 लाख छात्र), संयुक्त अरब अमीरात (1.64 लाख छात्र) और ऑस्ट्रेलिया (1 लाख छात्र) हैं। भारतीय छात्र अब विश्व स्तर पर 240 से अधिक देशों में पढ़ते हैं। उज्बेकिस्तान, फिलीपींस, रूस, आयरलैंड और किर्गिस्तान जैसे देशों में रुचि बढ़ रही है। कुल मिलाकर, 11.30 लाख से अधिक भारतीय छात्र वर्तमान में विदेशी कॉलेजों में पढ़ रहे हैं। दूसरी ओर, 2021 में भारत में केवल 48000 विदेशी राष्ट्रीय छात्रों का नामांकन हुआ, जिनमें पड़ोसी देशों से आने वाले छात्रों की संख्या सबसे अधिक थी। इसका मतलब है कि भारत अभी भी अंतरराष्ट्रीय छात्रों को आकर्षित करने के मामले में शुरुआती चरण में है, जो इस तथ्य से परिलक्षित होता है कि 45 लाख (4.5 मिलियन) अंतरराष्ट्रीय छात्रों में से केवल 0.6 फीसदी ही भारत को पसंद करते हैं। यहां तक कि उन छात्रों ने कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और दिल्ली जैसे राज्यों में स्थित मुट्ठी भर एचईआई को प्राथमिकता दी, लेकिन अन्य को नहीं। इस पृष्ठभूमि में, एनईपी देश की अत्यधिक विनियमित, नौकरशाही और काफी हद तक बंद शैक्षणिक प्रणाली को दुनिया के लिए खोलने का वादा करती है।

2022 में यूजीसी ने कुछ पात्र विदेशी संस्थानों (दोनों शीर्ष 500 विश्वविद्यालयों और अन्य विदेशी संस्थानों) को भारत में कैंपस स्थापित करने की अनुमति देने के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (अंतरराष्ट्रीय शाखा परिसरों और अपतटीय शिक्षा केंद्रों की स्थापना और संचालन) पर विनियम जारी किए। प्राथमिक शिक्षा से लेकर संपूर्ण शिक्षा प्रणाली में सुधार किए बिना अकेले यह उपाय देश में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र में कैसे सुधार करेगा, यह स्पष्ट नहीं है। गुणवत्ता मानकों के दृष्टिकोण से, भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली अत्यधिक असंगत और असंतुलित है। हमारे पास बड़ी संख्या में उच्च शिक्षा संस्थान हैं जिनकी शिक्षा की गुणवत्ता हमेशा संदिग्ध रहती है। इसी प्रकार, जिन राज्यों में बड़ी संख्या में कॉलेज हैं वे अच्छी संख्या में उच्च गुणवत्ता वाले कॉलेज बनाने में पीछे हैं। आज देश में ऐसे कॉलेज कम नहीं हैं, जो कहने को तो कॉलेज हैं, मगर छात्रों के लिए बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं। इसके अलावा विश्वविद्यालय में संबद्ध विद्यालयों का बढ़ता बोझ, पाठ्यक्रमों में बदलाव की मांग और ड्रापऑऊट विद्याॢथयों की बढ़ती संख्या असली चुनौतियां हैं, जिनका संबंध भी कहीं न कहीं सार्वजनिक शिक्षा के ढहते ढांचे और निजीकरण से ही है। वहीं, उच्च शिक्षा में अध्यापकों के रिक्त पद से जुड़े आंकड़े खुद अपनी हकीकत बताते हैं। इसका बुरा असर उच्च शिक्षा की अकादमिक गुणवत्ता पर पड़ा है।

उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में देश में सबसे अधिक कॉलेज हैं। इसके बाद महाराष्ट्र और कर्नाटक हैं। लेकिन टॉप 100 कॉलेजों की सूची में यूपी का एक भी कॉलेज शामिल नहीं है। इसमें महाराष्ट्र के बमुश्किल तीन और कर्नाटक के दो कॉलेज शामिल हैं। वास्तव में 80 फीसदी से अधिक उच्च गुणवत्ता वाले कॉलेज तीन राज्यों तमिलनाडु, दिल्ली और केरल में हैं। यह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच के मामले में देश भर में भारी असमानताओं की व्यापकता को दर्शाता है। यदि हम विश्वविद्यालयों द्वारा तैयार किए गए पाठ्यक्रम की बात करें तो इसमें और सामाजिक व्यवहार के बीच भी कोई तालमेल नहीं दिखता। दरअसल, उच्च शिक्षा की अध्ययन सामग्री उपयोगी और मानवीय आवश्यकताओं पर आधारित कौशल विकास को बढ़ावा देने वाली होनी चाहिए। इसी प्रकार, उच्च शिक्षा से ड्रापआऊट होने वाले विद्यार्थियों को रोकना और सकल नामांकन अनुपात बढ़ाना भी इस क्षेत्र की एक बड़ी चुनौती है। भारत की उच्च शिक्षा में 18 से 23 वर्ष की आयु वर्ग के अंतर्गत सकल नामांकन अनुपात काफी कम है, जो अन्य विकसित और कई विकासशील देशों की तुलना में बहुत कम है। इससे स्पष्ट होता है कि आज भी देश के करीब 74 प्रतिशत युवा उच्च शिक्षा से बाहर हो जाते हैं। इससे जाहिर होता है कि सभी वर्गों के विद्यार्थियों को समान अवसर देना और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना आज भी दूर का सपना है। उच्च शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय किए जा सकते हैं। शिक्षकों को नियमित और उन्नत प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए, ताकि वे नवीनतम शिक्षण विधियों और तकनीकों से लैस हो सकें।

पाठ्यक्रम को समसामयिक और व्यावहारिक बनाए रखना आवश्यक है, जिससे छात्रों को वास्तविक जीवन में उपयोगी ज्ञान प्राप्त हो। कक्षाओं में आधुनिक तकनीक और डिजिटल उपकरणों का समुचित उपयोग किया जाना चाहिए, जिससे सीखने की प्रक्रिया प्रभावी हो। उच्च शिक्षा में नवाचार को बढ़ावा देना चाहिए। शिक्षा में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए। योग्यतानुसार शिक्षकों का निष्पक्ष चयन होना चाहिए। देश में समान पाठ्यक्रम के लिए समान फीस लागू होनी चाहिए। शिक्षा की गुणवत्ता तकनीक के सदुपयोग से बढ़ाई जा सकती हैं। सीखना ही पर्याप्त नहीं है, उपयोग में लेना भी जरूरी है। सैद्धांतिक शिक्षा महत्वपूर्ण हैं परंतु व्यावहारिक शिक्षा अति महत्वपूर्ण है। असली शिक्षा वह है जो हमारे काम और व्यवहार में झलके। शिक्षा से जुड़े विद्वानों और शिक्षा नीति विशेषज्ञों को इस पर विचार करना ही होगा। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारत को अभी लंबा सफर तय करना है। भारत का पुराना गौरव अभी वापस भारत को दिलाना शेष है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *