राजनैतिकशिक्षा

संकट की शुरुआत एच-1बी वीजा विवाद

-नृपेंद्र अभिषेक ‘नृप’-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

अंतरराष्ट्रीय संबंधों और भूमंडलीकरण के इस युग में ज्ञान, कौशल और अवसरों की आवाजाही एक स्वाभाविक प्रक्रिया बन चुकी है। तकनीकी क्रांति के साथ भारतीय युवाओं ने दुनिया भर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। अमेरिका, जहां नवाचार और तकनीकी विकास की असंख्य संभावनाएं हैं, लंबे समय से भारतीय इंजीनियरों, सॉफ्टवेयर डेवलपर्स और वैज्ञानिकों के लिए सबसे आकर्षक मंजिल रहा है। एच-1बी वीजा इस सपने को साकार करने का सबसे अहम जरिया बना। किंतु हाल के वर्षों में अमेरिकी नीतियों ने इस मार्ग में कई रुकावटें पैदा कर दी हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा एच-1बी वीजा शुल्क को एक झटके में कई गुना बढ़ाने का निर्णय उसी क्रम की नवीनतम कड़ी है। इस फैसले ने न केवल भारतीय पेशेवरों को झकझोर दिया, बल्कि दोनों देशों के बीच कौशल आधारित सहयोग पर गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है।

इस असाधारण बढ़ोतरी ने आईटी उद्योग में खलबली मचा दी है। इससे हजारों परिवारों का भविष्य अनिश्चित हो जाएगा। अमेरिका में भारतीय तकनीकी विशेषज्ञों का बड़ा हिस्सा न केवल बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए काम करता है, बल्कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था के विकास में भी अहम योगदान देता है। फिर भी, वीजा शुल्क में अचानक की गई इस वृद्धि ने यह संकेत दे दिया कि अमेरिकी नीतियां अब अपने घरेलू हितों को प्राथमिकता देते हुए संरक्षणवाद की ओर बढ़ रही हैं।

साल 2004 से अब तक हरेक वर्ष 85,000 वीजा जारी किए जाते रहे हैं, जिनके लिए मांग इतनी अधिक रहती है कि चयन प्रक्रिया लॉटरी के जरिये करनी पड़ती है। आंकड़ों के अनुसार, भारतीय पेशेवर लगभग 71 प्रतिशत वीजा हासिल करते हैं। हालांकि, एक रिपोर्ट यह भी बताती है कि इनमें से लगभग 60 प्रतिशत लोग 1,00,000 डॉलर से कम वेतन पाते हैं। इस तथ्य का इस्तेमाल ट्रंप प्रशासन जैसी सरकारें यह तर्क देने के लिए करती हैं कि विदेशी श्रमिक अमेरिकी नागरिकों के लिए रोजगार के अवसरों को सीमित करते हैं। किंतु वास्तविकता यह है कि भारतीय पेशेवरों ने अमेरिका की प्रगति में जो योगदान दिया है, वह निर्विवाद है। कई दिग्गज कंपनियों के शीर्ष नेतृत्व में भारतीय मूल के लोगों की मौजूदगी इसका जीवंत प्रमाण है।

ट्रंप सरकार की नीति को केवल शुल्क वृद्धि तक सीमित समझना भूल होगी। यह कदम उस व्यापक राजनीतिक सोच का हिस्सा है जो ‘अमेरिका फर्स्ट’ के नारे के तहत वैश्विक प्रतिस्पर्धा से अपने देश को बचाने की कोशिश कर रही है।

 

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