हरियाणा की ड्रीम पॉलिसी: शिक्षक तबादलों के अधूरे सपनों की हकीकत?
-डॉ. सत्यवान सौरभ-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
हरियाणा सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को अधिक पारदर्शी और सुचारु बनाने के उद्देश्य से कुछ वर्ष पूर्व शिक्षक तबादलों के लिए ऑनलाइन प्रणाली लागू की थी, जिसे बड़े गर्व से “ड्रीम पॉलिसी” का नाम दिया गया। इस नीति को लागू करने का तात्पर्य यह था कि अब शिक्षकों के तबादले केवल वरिष्ठता, मेरिट और प्राथमिकताओं के आधार पर होंगे, न कि सिफ़ारिश या दबाव से। आरंभ में इसे एक क्रांतिकारी कदम माना गया। किंतु बीते वर्षों में इस नीति की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगने लगे हैं। सरकार ने घोषणा की थी कि इस वर्ष तबादले अप्रैल में होंगे, किंतु सितंबर तक भी प्रक्रिया शुरू नहीं हुई। यह देरी न केवल शिक्षकों के साथ वादाख़िलाफ़ी है, बल्कि छात्रों की पढ़ाई और विद्यालयों के संचालन पर भी सीधा आघात है।
शिक्षा केवल विद्यालय भवन या पाठ्यपुस्तकों पर निर्भर नहीं करती; उसकी वास्तविक धुरी शिक्षक ही हैं। हरियाणा जैसे राज्य में, जहाँ ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता में स्पष्ट असमानता है, वहाँ शिक्षकों की उचित तैनाती अत्यंत आवश्यक हो जाती है। ग्रामीण अंचलों के विद्यालय अक्सर योग्य और अनुभवी शिक्षकों से वंचित रहते हैं, जबकि शहरी विद्यालयों में अपेक्षाकृत अधिक संख्या में शिक्षक तैनात मिलते हैं। ऐसी परिस्थिति में तबादला नीति मात्र प्रशासनिक प्रक्रिया न होकर शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का एक सशक्त साधन बन जाती है।
सरकार ने दावा किया था कि ड्रीम पॉलिसी से भ्रष्टाचार और पक्षपात का अंत होगा। परंतु, वास्तविकता यह है कि नीति का क्रियान्वयन अनेक समस्याओं से ग्रस्त रहा है। शिक्षकों को बार-बार एमआईएस अपडेट कराने के निर्देश दिए गए, जिनमें व्यक्तिगत विवरणों से लेकर मोबाइल नंबर तक शामिल रहे। दोहराई जाने वाली इन औपचारिकताओं ने असंतोष को जन्म दिया और तकनीकी त्रुटियों व डेटा की ग़लतियों ने पारदर्शिता के दावे पर प्रश्न खड़े किए। इसके साथ ही सबसे गंभीर शिकायत यह रही कि समय पर ट्रांसफर शेड्यूल जारी नहीं किया गया। इस देरी के कारण न केवल शिक्षकों के निजी जीवन पर प्रभाव पड़ा, बल्कि विद्यालयों की शैक्षणिक गतिविधियाँ भी बाधित हुईं। भले ही प्रक्रिया को पूर्णतः ऑनलाइन बताया गया, परंतु शिक्षकों का आरोप है कि आज भी रसूख और सिफ़ारिशों का असर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
हाल ही में कैथल में हुई बैठक में शिक्षक संगठनों ने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी कि यदि शीघ्र ही ट्रांसफर शेड्यूल जारी नहीं किया गया तो सरकार की ड्रीम पॉलिसी स्वयं सरकार के लिए ही बदनामी का कारण बन जाएगी। उनका कहना है कि सरकार ने उन्हें अनावश्यक औपचारिकताओं में उलझा रखा है। मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री कई बार आश्वासन दे चुके हैं, किंतु अब तक वादे पूरे नहीं हुए। शिक्षा विभाग इस प्रक्रिया को जानबूझकर लंबित रखता है। यह असंतोष केवल तबादलों तक सीमित न रहकर सरकार की नीयत और वादाख़िलाफ़ी पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।
यदि कोई यह मान ले कि यह विवाद केवल शिक्षकों के हितों तक सीमित है, तो यह गंभीर भूल होगी। अनेक विद्यालय रिक्तियों से जूझते हैं और छात्रों की पढ़ाई प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है। बार-बार के विलंब और वादाख़िलाफ़ी से शिक्षकों का मनोबल टूटता है। असंतुष्ट शिक्षक शिक्षा की गुणवत्ता में अपेक्षित योगदान नहीं दे पाते। जब स्वयं शिक्षक ही नीति पर भरोसा न करें तो समाज और विद्यार्थियों का विश्वास स्वतः डगमगा जाता है।
हरियाणा की राजनीति में शिक्षा सदा ही प्रमुख विषय रही है। सरकारें शिक्षा सुधार के दावे करती रही हैं, किंतु शिक्षक भर्ती, तबादला और पदस्थापन सबसे विवादित मुद्दे बने रहे हैं। ड्रीम पॉलिसी का विवाद अब राजनीतिक रंग लेने लगा है। विपक्ष इसे सरकार की नाकामी बताते हुए जनता के बीच उभारने की तैयारी में है। यदि यह असंतोष बढ़ा तो आगामी चुनावों में यह मुद्दा सरकार के लिए भारी पड़ सकता है।
सरकार के पास अभी अवसर है कि वह इस नीति को वास्तव में “ड्रीम पॉलिसी” बनाए। इसके लिए ट्रांसफर प्रक्रिया का स्पष्ट कैलेंडर बनाना और उसका पालन करना आवश्यक है। एमआईएस और अन्य ऑनलाइन तंत्र को अधिक सरल व विश्वसनीय बनाना होगा। प्रक्रिया को पूर्णतः स्वचालित और मेरिट-आधारित बनाया जाए तथा शिक्षकों के संगठनों से नियमित संवाद स्थापित किया जाए। निर्णय प्रक्रिया जितनी पारदर्शी होगी, उतना ही विश्वास बहाल होगा।
हरियाणा की ड्रीम पॉलिसी का उद्देश्य प्रशंसनीय था, किंतु इसके क्रियान्वयन में गंभीर कमियाँ सामने आई हैं। यदि सरकार ने इन्हें शीघ्र दूर नहीं किया तो यह नीति सरकार की उपलब्धि न बनकर उसकी विफलता का प्रतीक सिद्ध होगी। शिक्षा किसी भी समाज की आधारशिला है और शिक्षक उसकी नींव। यदि शिक्षक ही असंतुष्ट और उपेक्षित रहेंगे, तो शिक्षा सुधार का सपना अधूरा रह जाएगा। अतः आवश्यक है कि सरकार वादों से आगे बढ़कर वास्तविक कार्रवाई करे, ताकि हरियाणा की ड्रीम पॉलिसी सचमुच “सपनों की नीति” सिद्ध हो सके, न कि केवल एक राजनीतिक नारा।