राजनैतिकशिक्षा

लगातार बारिश, बढ़ते खतरे और हमारी जिम्मेदारी

-डॉ. प्रियंका सौरभ-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

बरसात का मौसम प्रकृति की सबसे सुंदर देन है। यह धरती की प्यास बुझाता है, फसलों को जीवन देता है, नदियों और तालाबों को भरता है और वातावरण को शुद्ध करता है। लेकिन जब यह बारिश लगातार और असामान्य रूप से होती है, तो यही वरदान कभी-कभी अभिशाप का रूप भी ले लेता है। भारत जैसे देश में, जहां अब भी बुनियादी ढांचे की मजबूती पूरी तरह से नहीं हो पाई है, वहां लगातार बारिश लोगों के लिए मुसीबत बन जाती है। पिछले कुछ वर्षों में हमने देखा है कि असामान्य बारिश के कारण कई राज्यों में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हुई, सैकड़ों लोग बेघर हो गए, बिजली और पानी की आपूर्ति बाधित हो गई और जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया।

ऐसे समय में केवल सरकार या प्रशासन पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं होता, बल्कि हर नागरिक का यह कर्तव्य बनता है कि वह स्वयं भी सावधानी बरते और दूसरों को जागरूक करे। यह सच है कि प्राकृतिक आपदाएँ पूरी तरह से हमारे नियंत्रण में नहीं होतीं, लेकिन सावधानी और अनुशासन से हम उनके प्रभाव को कम कर सकते हैं।

बरसात के दिनों में सबसे बड़ा खतरा बिजली से होता है। जब जमीन गीली हो, सड़कें पानी से भरी हों और चारों ओर नमी फैली हो, तो करंट लगने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। बिजली विभाग ने समय रहते जनता को चेताया है कि इस मौसम में बिजली की तारों, खंभों, केबल और मीटर से दूरी बनाए रखें। ज़रा सी लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है। भारत में हर साल बारिश के मौसम में सैकड़ों लोग बिजली के करंट की चपेट में आकर अपनी जान गंवा बैठते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार, केवल बिजली से जुड़े हादसों में हर साल करीब 10-12 हज़ार लोगों की मौत होती है, जिनमें बड़ी संख्या बारिश के महीनों में होती है। यह आंकड़े इस बात को स्पष्ट करते हैं कि खतरा कितना गंभीर है।

गांव और कस्बों में अब भी खुले तार, ढीले खंभे और जर्जर पोल आम दृश्य हैं। लगातार बारिश में जब ये पानी में डूब जाते हैं, तो इनमें करंट फैलने की संभावना बढ़ जाती है। यह खतरा और भी बढ़ जाता है जब लोग असावधानीवश इनसे संपर्क में आ जाते हैं। कई बार बच्चे खेल-खेल में पानी के गड्ढों में उतर जाते हैं, जबकि उन्हें यह पता नहीं होता कि उसी पानी में कोई बिजली का तार गिरा हुआ है। ऐसी घटनाएं हर साल होती हैं और यह हमारे समाज की सबसे बड़ी असावधानी को दर्शाती हैं।

बरसात के दिनों में घर से बाहर निकलना भी जोखिम से खाली नहीं है। बिना वजह घर से बाहर निकलने से बचना चाहिए। आवश्यक काम भी हो तो सावधानी के साथ जाना चाहिए। फिसलन भरी सड़कें, गहरे गड्ढे और नालियां पानी में छिप जाती हैं और दुर्घटनाएं आम हो जाती हैं। कई बार तो लोग केवल जिज्ञासा या मनोरंजन के लिए पानी से भरी जगहों पर चले जाते हैं, वहां फोटो खिंचवाते हैं, वीडियो बनाते हैं और सोशल मीडिया पर डालते हैं। लेकिन यही जिज्ञासा उन्हें खतरे में डाल देती है। अनजाने में वे गहरे गड्ढे, नालों या करंट लगे पानी की चपेट में आ सकते हैं। हमें यह समझना होगा कि रोमांच या दिखावे से बड़ी चीज़ हमारी जान है। सच यही है कि ज़िंदगी है तो सब कुछ है।

लगातार बारिश केवल व्यक्तिगत सुरक्षा को ही नहीं, बल्कि प्रशासन के लिए भी बड़ी चुनौती लेकर आती है। बिजली विभाग को चौबीसों घंटे सतर्क रहना पड़ता है ताकि लोगों तक बिजली की आपूर्ति बनी रहे और हादसों से बचा जा सके। नगर निगम और पंचायतों को जलभराव की समस्या से निपटना होता है। स्वास्थ्य विभाग को डेंगू, मलेरिया और पानी से फैलने वाली बीमारियों से लड़ना पड़ता है। बारिश के बाद मच्छरों का प्रकोप बढ़ जाता है, जिससे अस्पतालों में मरीजों की संख्या अचानक कई गुना हो जाती है। यातायात विभाग को भी सड़क दुर्घटनाओं और ट्रैफिक जाम से जूझना पड़ता है। प्रशासन का यह प्रयास तभी सफल हो सकता है जब नागरिक भी जिम्मेदारी समझें और सहयोग करें।

बरसात जैसी प्राकृतिक चुनौती का सामना केवल प्रशासनिक उपायों से नहीं किया जा सकता। समाज को भी जागरूक होकर अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। मोहल्ले और गांव के लोग मिलकर नालियां साफ रखें ताकि जलभराव न हो। बिजली के खंभों और तारों की जानकारी विभाग तक पहुँचाएं। बच्चों को सिखाएं कि बारिश में खुले तार या पोल के पास न जाएं। सोशल मीडिया पर केवल सही जानकारी फैलाएं, अफवाहें नहीं। कई बार झूठी खबरें और अफवाहें स्थिति को और गंभीर बना देती हैं।

बरसात हमें केवल संकट ही नहीं देती, बल्कि यह हमें कई सबक भी सिखाती है। यह हमें बताती है कि हमें अपने बुनियादी ढांचे को और मजबूत करना चाहिए। यह याद दिलाती है कि बिजली और पानी जैसे प्राकृतिक तत्वों से खिलवाड़ करना जानलेवा हो सकता है। यह हमें सिखाती है कि अनुशासन और सावधानी ही जीवन की रक्षा करते हैं। अगर लोग थोड़ी सी सावधानी बरतें तो बड़ी से बड़ी आपदा का असर भी कम किया जा सकता है।

हमारे देश में कई बार देखा गया है कि जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आती है, तो लोग मिलकर उसका सामना करते हैं। बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए स्वयंसेवी संगठन आगे आते हैं, लोग एक-दूसरे को आश्रय और भोजन देते हैं। यही सामूहिकता और सहयोग भारतीय समाज की सबसे बड़ी ताकत है। बरसात जैसी स्थिति में भी यही सहयोग और जागरूकता जरूरी है।

बरसात का मौसम जितना सुंदर और जीवनदायी है, उतना ही खतरनाक भी हो सकता है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम इसे वरदान बनाएँ या अभिशाप। यदि हम सावधान रहेंगे, प्रशासन की चेतावनियों को गंभीरता से लेंगे और सामाजिक जिम्मेदारी निभाएँगे, तो यह मौसम हमारे लिए आनंद और ताजगी लेकर आएगा। लेकिन अगर हम लापरवाही करेंगे, बिजली के तारों और खंभों के पास जाएंगे, बिना वजह घर से निकलेंगे और अफवाहें फैलाएँगे, तो यह मौसम दुख और त्रासदी में बदल सकता है।

आज जरूरत इस बात की है कि हम सब मिलकर बरसात के इस मौसम को सुरक्षित बनाएं। बिजली के तार, खंभे और खुले मीटर से दूरी बनाए रखें। बिना वजह बाहर न निकलें और अगर निकलना भी पड़े तो पूरी सावधानी बरतें। प्रशासन का सहयोग करें, समाज में जागरूकता फैलाएं और अनुशासन बनाए रखें। याद रखिए-सुरक्षा ही बचाव है। और अंततः यही सच है कि ज़िंदगी है तो सब कुछ है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *