राजनैतिकशिक्षा

पचास फीसदी टैरिफ के प्रभाव

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

27 अगस्त, सुबह 9.31 बजे से भारत में अमरीका का 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ भी लागू हो गया। अब अमरीका जाने वाले भारतीय सामान पर कुल 50 फीसदी टैरिफ देना पड़ेगा। भारत और ब्राजील पर सर्वाधिक 50 फीसदी टैरिफ थोपा गया है। जैसे ही अमरीका के गृह विभाग की अधिसूचना सामने आई, तैसे ही नुकसान और प्रभाव के आकलन और आंकड़े भी स्पष्ट होने लगे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में एक महाबैठक बुलाई गई, जिसमें राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफवाद का मुकाबला करने के विकल्पों और रास्तों पर विमर्श किया गया। पहले अमरीका में प्रवेश करने वाले भारतीय उत्पादों एवं सेवाओं पर औसतन 3 फीसदी आयात शुल्क का भुगतान करना पड़ता था। वह टैरिफ अब 50 फीसदी कर दिया गया है, लिहाजा फासला बहुत बड़ा है। सरकार समूचे प्रभावित क्षेत्रों को सबसिडी, कर्ज अथवा बेल पैकेज नहीं दे सकती। फिर भी कोरोना दौर जैसे बंदोबस्त करने होंगे। आम आदमी की क्रय-शक्ति कम न हो, बाजार में मांग बरकरार रहे, ताकि लघु, सूक्ष्म स्तर के उद्योगों में भी उत्पादन निरंतर जारी रह सके। बेशक भारत की अर्थव्यवस्था के लिए यह चुनौती का दौर है। राष्ट्रपति ट्रंप की सोच समझ में नहीं आ रही कि वह भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी के संबंध चाहते हैं अथवा भारत को दबाव में झुका देना चाहते हैं? जर्मनी के एक बहुप्रसारित अखबार ने खबर छापी है कि ट्रंप ने चार बार प्रधानमंत्री मोदी को फोन किया, लेकिन प्रधानमंत्री ने बात नहीं की। हम इस खबर की पुष्टि नहीं कर सकते, लेकिन भारत अभी आंख से आंख मिला कर बात करने की मुद्रा में है। सवाल है कि भारत पर 50 फीसदी टैरिफ क्यों थोपा गया है, जबकि चीन पर 30 फीसदी, वियतनाम पर 20 फीसदी, यूरोपीय संघ और जापान पर 15-15 फीसदी टैरिफ लगाए गए हैं? बहरहाल टैरिफ लागू होने के बाद नोएडा, सूरत, तिरुपुर में वस्त्र उद्योग का उत्पादन ठप होने की खबर सामने आई, तो भारतीय निर्यातक संघ ने तुरंत मदद करने का आग्रह मोदी सरकार से किया। शुरुआती आकलन यह है कि टैरिफ का करीब 55 फीसदी निर्यात पर बुरा असर पड़ेगा।

निर्यात कम होने से डॉलर भी कम होगा, नतीजतन डॉलर-रुपए के समीकरण भी प्रभावित होंगे। विदेशी निवेश भी कम होगा। भारत और अमरीका के बीच 2024-25 में 131 अरब डॉलर से अधिक का कारोबार हुआ। उसमें करीब 87 अरब डॉलर का निर्यात भारत ने किया। वित्त-वर्ष 2025-26 में यह निर्यात घट कर 50 अरब डॉलर के करीब हो सकता है। यह बहुत गंभीर नुकसान होगा। करीब दो-तिहाई निर्यात, जो 60 अरब डॉलर का आंका गया है, 50 फीसदी टैरिफ के दायरे में आ जाएगा। यह श्रम-गहन वाले औद्योगिक क्षेत्रों- परिधान, वस्त्र, कालीन, झींगा मछली, रत्न-आभूषण और फर्नीचर आदि- पर हथौड़ा मारने जैसा होगा। सिर्फ कमीज का ही उदाहरण लें। 50 फीसदी टैरिफ लगने के बाद भारतीय कमीज पर 62 फीसदी, चीनी कमीज पर 42 फीसदी और वियतनामी कमीज पर 20 फीसदी टैरिफ लगेगा। अमरीकी बाजार में कोई भी महंगी कमीज क्यों खरीदेगा? संभव है कि मजबूरी में भारतीय कमीज के दाम कम करने पड़ सकते हैं! फार्मा की दवाइयां, स्मार्टफोन, पेट्रोलियम पदार्थ, सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि का कुल 30 फीसदी निर्यात ‘टैरिफ-मुक्त’ रखा गया है। करीब 4 फीसदी निर्यात (3.2 अरब डॉलर) में मुख्यत: ऑटो पाट्र्स हैं, जिन पर फिलहाल 25 फीसदी टैरिफ है। यदि ट्रंप के टैरिफवाद से उद्योगों पर बुरा असर पड़ता है, तो जाहिर है कि नौकरियां भी जाएंगी। नतीजतन रोजगार की समस्या कुछ विकट होगी। हालांकि कुछ औद्योगिक पंडितों के आकलन हैं कि भारत की जीडीपी का नुकसान, मौजूदा वित्त-वर्ष में, मात्र 0.8 फीसदी हो सकता है। यह एक छोटी तस्वीर पेश की जा रही है, क्योंकि निर्यात जीडीपी के 2 फीसदी के समान है। बहरहाल राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन पर 200 फीसदी टैरिफ थोपने की धमकी जरूर दी है, लेकिन वह ऐसा कर नहीं सकेगा, क्योंकि चीन ने पलटवार किया, तो अमरीकी अर्थव्यवस्था के ‘बारह बज’ जाएंगे। भारत के प्रधानमंत्री मोदी को राष्ट्रपति ट्रंप से सीधे बात करनी चाहिए। मामले को नौकरशाहों और राजनयिकों के हवाले ही छोडऩा देशहित में नहीं है।

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