राजनैतिकशिक्षा

ट्रंप का टैरिफ तोहफ़ा है चुनौती

-विनीत नारायण-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

ट्रंप ने भारत को ‘डेड इकॉनमी’ कहकर निशाना बनाया, और यह कहा कि भारत दुनिया में सबसे अधिक टैरिफ लगाने वाला देश है। उन्होंने भारत की ‘गैर-मौद्रिक व्यापार बाधाओं’ की भी आलोचना की-जिनका अर्थ है कि भारत तकनीकी, प्रशासनिक या नियामक उपायों के ज़रिए विदेशी कंपनियों को यहां व्यापार करने से रोकता है या कठिन बनाता है।

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर वैश्विक व्यापार संतुलन को झकझोर दिया है-और इस बार सीधा निशाना भारत पर लगाया गया है। ट्रंप ने घोषणा की है कि भारत से अमेरिका को होने वाले आयात पर 25% टैरिफ लगाया जाएगा, साथ ही रूस से तेल और हथियार खरीदने के लिए भारत को दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। यह फैसला भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में अचानक तनाव बढ़ाने वाला है, और इसने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या भारत की विदेश नीति अब प्रभावशीलता खो रही है या फिर यह भू-राजनीतिक दबाव के सामने चुप रह जाने की रणनीति का परिणाम है।

ट्रंप की इस घोषणा का समय भी ध्यान देने योग्य है। पिछले कुछ महीनों से भारत और अमेरिका के बीच एक संभावित व्यापार समझौते को लेकर सकारात्मक संकेत मिल रहे थे। द्विपक्षीय वार्ताएं हो रही थीं, और यह माना जा रहा था कि दोनों देश अपनी व्यापार नीति में स्थायित्व और सहकारिता की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन ट्रंपकी घोषणा ने इस प्रक्रिया को एक झटके में उलट दिया।

ट्रंप ने भारत को ‘डेड इकॉनमी’ कहकर निशाना बनाया, और यह कहा कि भारत दुनिया में सबसे अधिक टैरिफ लगाने वाला देश है। उन्होंने भारत की ‘गैर-मौद्रिक व्यापार बाधाओं’ की भी आलोचना की-जिनका अर्थ है कि भारत तकनीकी, प्रशासनिक या नियामक उपायों के ज़रिए विदेशी कंपनियों को यहां व्यापार करने से रोकता है या कठिन बनाता है। उन्होंने यह आरोप भी जोड़ा कि भारत, रूस से तेल और सैन्य उपकरणों की खरीद जारी रखकर यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर अमेरिका की नीति का खुला उल्लंघन कर रहा है।

इस कदम का प्रत्यक्ष असर भारत के उन क्षेत्रों पर पड़ सकता है जो अमेरिका को निर्यात के मामले में सबसे महत्वपूर्ण हैं-जैसे फार्मास्यूटिकल्स, रत्न और आभूषण, टेक्सटाइल, चमड़ा, समुद्री उत्पाद और ऑटोमोबाइल। 25% का टैरिफ इन उत्पादों की अमेरिकी बाज़ार में प्रतिस्पर्धात्मकता को सीधे प्रभावित करेगा। यानी भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिकी बाज़ार अब पहले जितना सुलभ नहीं रहेगा।

विपक्ष ने इसे लेकर तुरंत सरकार पर निशाना साधा। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्रंपके ‘डेड इकॉनमी’ वाले बयान का स्वागत करते हुए कहा, “ट्रंपसही हैं। पूरी दुनिया जानती है कि भारत की अर्थव्यवस्था मृत है-सिर्फ प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को छोड़कर।” राहुल गांधी ने नोटबंदी और जीएसटी को इस ‘मृत्यु’ का कारण बताया और सरकार की आर्थिक नीतियों को पूरी तरह विफल करार दिया।

यह प्रतिक्रिया राजनीति की परंपरागत लड़ाई से आगे निकल गई, और सीधे-सीधे विदेश नीति के मोर्चे पर सरकार की स्थिति को कठघरे में खड़ा कर दिया गया। कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, “हम अमेरिका को सबसे अधिक फार्मास्यूटिकल्स निर्यात करते हैं। अगर 25% टैरिफ लगाया गया, तो ये दवाएं महंगी होंगी, मांग घटेगी, और इससे उत्पादन तथा रोजगार पर सीधा असर पड़ेगा।”

विपक्ष के अन्य नेताओं ने भी इस मुद्दे को व्यापक रूप से उठाया। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए “बुरे दिनों की शुरुआत” है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने ट्रंपको “व्हाइट हाउस का जोकर” कहकर कटाक्ष किया, लेकिन साथ ही सरकार की चुप्पी पर भी सवाल उठाया।

हालांकि, कांग्रेस में भी शशि थरूर जैसे कुछ नेताओं ने ज़्यादा संतुलित दृष्टिकोण अपनाया। उन्होंने चेताया कि भारत को केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना चाहिए और अपने निर्यात बाज़ारों में विविधता लानी होगी, वरना इस तरह के झटके भारत की समग्र अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

इस मुद्दे पर विशेषज्ञों की राय भी दो भागों में बंटी हुई है। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस टैरिफ का प्रभाव सीमित होगा और भारत अन्य बाज़ारों की ओर रुख कर सकता है। लेकिन कई विशेषज्ञों ने इसे दीर्घकालिक नुकसान की चेतावनी के रूप में देखा है।

ICRA की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा, “प्रस्तावित टैरिफ और दंड हमारी अपेक्षा से अधिक हैं। इससे भारत की जीडीपी वृद्धि पर असर पड़ सकता है। इसका प्रभाव इस पर निर्भर करेगा कि टैरिफ की प्रकृति और अवधि कितनी लंबी है।” EY इंडिया के व्यापार नीति विशेषज्ञ अग्नेश्वर सेन ने कहा कि “समुद्री उत्पाद, फार्मा, टेक्सटाइल और चमड़ा जैसे क्षेत्र भारत-अमेरिका व्यापार में प्रमुख हैं और इनकी प्रतिस्पर्धा पर असर पड़ेगा।”

फाउंडेशन फॉर इकोनॉमिक डेवलपमेंट के राहुल अहलूवालिया ने कहा कि “भारत को अब चीन और वियतनाम जैसी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले कमज़ोर समझा जाएगा। सप्लाई चेन का भारत की ओर स्थानांतरण जो कोविड के बाद एक संभावना बनता दिख रहा था-वह अब दूर जाता दिख रहा है।”

इसके विपरीत, फिक्की के अध्यक्ष हर्षवर्धन अग्रवाल ने अपेक्षाकृत आशावादी स्वर अपनाते हुए कहा कि “यह कदम दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन शायद अस्थायी हो। हमें उम्मीद है कि भारत और अमेरिका जल्द ही किसी स्थायी व्यापार समझौते पर पहुंचेंगे।”

भारत सरकार ने फिलहाल संयमित रुख अपनाया है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि “राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। भारत ने एक दशक में ‘फ्रैजाइल फाइव’ से दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनने का सफर तय किया है।” सरकारी सूत्रों ने संकेत दिया कि भारत जवाबी टैरिफ लगाने के बजाय संवाद और कूटनीतिक माध्यम से समाधान तलाशेगा।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हम इस मुद्दे पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया देने से बच रहे हैं क्योंकि यह बहुत संवेदनशील मामला है। चुप्पी सबसे अच्छा जवाब है-और हम बातचीत की मेज़ पर इसे सुलझाएंगे।”

लेकिन क्या चुप्पी वाकई सबसे अच्छा जवाब है? यह सवाल इस पूरे विवाद के केंद्र में है। क्योंकि भारत जिस तरह से वैश्विक शक्ति समीकरणों में अपनी जगह बना रहा है, उसके लिए यह जरूरी है कि वह हर चुनौती का सार्वजनिक और स्पष्ट उत्तर दे-केवल घरेलू राजनीति के लिए नहीं, बल्कि अपने अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के लिए भी।

ट्रंपकी यह घोषणा भारत-अमेरिका संबंधों में केवल एक व्यापारिक मोड़ नहीं है। यह उस व्यापक कूटनीतिक असंतुलन की ओर इशारा करती है, जहां भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता और भू-राजनीतिक विकल्पों को एक साथ साधना होगा। यदि भारत अमेरिकी दबाव में झुकेगा, तो वह रूस, ईरान, और वैश्विक दक्षिण के साझेदारों के बीच अपना विश्वास खो देगा। और यदि वह पूरी तरह टकराव की नीति अपनाता है, तो अमेरिका जैसे साझेदार से टकराव उसकी आर्थिक आकांक्षाओं को चोट पहुंचा सकता है।

इसलिए यह संकट सरकार के लिए एक नीतिगत परीक्षा है-जिसमें केवल आंकड़ों, दरों या निर्यात आंकड़ों की बात नहीं है, बल्कि भारत की वैश्विक स्थिति, कूटनीतिक परिपक्वता, और रणनीतिक संतुलन की असली परीक्षा है।

यह कोई सामान्य टैरिफ नहीं-यह एक संकेत है।

और भारत को तय करना होगा कि वह इस संकेत को चेतावनी मानेगा या अवसर।

 

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