राजनैतिकशिक्षा

चुनाव आयोग बनाम अदालत

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

चुनाव आयोग ने सर्वोच्च अदालत में हलफनामा दाखिल कर स्पष्ट किया है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण के संदर्भ में आधार कार्ड, वोटर आई कार्ड और राशन कार्ड ‘वैध दस्तावेज’ नहीं हैं, लिहाजा उन्हें मान्यता नहीं दी जा सकती। बिहार में पुनरीक्षण का करीब 96 फीसदी काम पूरा हो चुका है। चुनाव आयोग ने सर्वोच्च अदालत के आग्रह को नकार दिया है, लिहाजा अब न्यायिक पीठ का फैसला अथवा उसकी प्रतिक्रिया क्या रहती है, यह 28 जुलाई को सुनवाई के दौरान सामने आ सकता है। सर्वोच्च अदालत या तो न्यायिक आदेश देती है अथवा निर्देश देती है, जिनका अनुपालन किया जाना चाहिए। अब अदालत और आयोग दोनों ही संवैधानिक संस्थाएं हैं, उनकी परस्पर मर्यादाएं हैं, लिहाजा अहम सवाल है कि क्या आयोग बनाम अदालत की स्थिति बन गई है? क्या शीर्ष अदालत भविष्य के मतदाता-सूची पुनरीक्षण के मद्देनजर आधार, वोटर और राशन कार्ड को वैध दस्तावेज मानने को चुनाव आयोग को बाध्य कर सकती है? चुनाव आयोग ने यह भी दावा किया है कि मतदाता की नागरिकता का पता लगाना भी उसका संवैधानिक अधिकार है। बेशक यह मुद्दा भी सर्वोच्च अदालत के सामने उठेगा, क्योंकि न्यायिक पीठ कहती रही है कि चुनाव आयोग को नागरिकता तय करने का अधिकार नहीं है। वह गृह मंत्रालय का संवैधानिक जनादेश है। लिहाजा मतदाता-सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण में, बिहार में ही, जिन 52 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम काटने की संभावना आयोग ने जताई है, क्या उनकी नागरिकता भी सवालिया हो जाएगी? यह तय करने वाला चुनाव आयोग कौन होता है? आयोग ने अभी तक जो डाटा इक_ा किया है, उसके मद्देनजर आयोग ने प्रेस विज्ञप्ति में रेखांकित किया है कि बिहार की मतदाता सूचियों में करीब 18 लाख मृतकों के नाम दर्ज हैं, 26 लाख ऐसे नाम हैं, जो किसी दूसरी जगह शिफ्ट हो गए हैं और वहां के मतदाता हैं, 7 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम दो-दो स्थानों पर हैं। इस तरह 52 लाख से अधिक नाम मतदाता-सूची से काटे जा सकते हैं।

बेशक ऐसे मतदाता 1 अगस्त से 1 सितंबर के दौरान अपील कर सकते हैं। क्या नागरिकता से जुड़े ऐसे मामले सर्वोच्च अदालत तक भी पहुंच सकते हैं? बिहार में चुनाव आयोग के पुनरीक्षण-अभियान का जबरदस्त राजनीतिक विरोध किया जा रहा है। यहां तक कि विधानसभा में मेज-कुर्सियां उछाली गईं। मार्शल (सुरक्षाकर्मी) और विपक्षी विधायक आपस में भिड़ गए, धक्कामुक्की, हाथापाई तक की नौबत आ गई। संसद परिसर में भी विपक्षी गठबंधन के सांसदों ने बैनर, पोस्टर, तख्तियां लेकर संसद भवन के ‘मकर द्वार’ पर विरोध-प्रदर्शन किया। संसद के भीतर विपक्षी सांसद अध्यक्ष के आसन तक ‘वेल’ में लामबंद हुए। नारेबाजी का शोर इतना था कि सदन की कार्यवाही बार-बार स्थगित करनी पड़ी। दोनों सदनों की कार्यवाही दोनों दिन नहीं चल सकी। बेशक चुनाव आयोग के अभियान से लोकतंत्र की हत्या की जा रही है अथवा नहीं, अलबत्ता लोकतंत्र लगातार ‘लहूलुहान’ जरूर हो रहा है। अब सर्वोच्च अदालत को एक निश्चित फैसला सुना कर देश के लोकतंत्र को बचाना है। अब तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी बयानबाजी शुरू कर दी है कि आयोग बंगाल में ऐसे 40 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम काट सकता है। संविधान के अनुच्छेद 324 और 326 में चुनाव आयोग को पुनरीक्षण के संवैधानिक अधिकार दिए गए हैं। आयोग मतदाता-सूचियों में संशोधन कर सकता है। नाम काटे जा सकते हैं, तो नए मतदाताओं के नाम जोड़े भी जाते हैं। चूंकि आजकल बांग्लादेशी घुसपैठियों, म्यांमार की तरफ से रोहिंग्या मुसलमानों की चर्चा खूब है। सरकारें अवैध घुसपैठियों को उनके देश वापस भेज रही है। यदि आधार, राशन, वोटर कार्ड जैसे सरकारी दस्तावेज नकली, फर्जी बनाए जा रहे हैं, तो यह देश पर कलंक है। ऐसे कार्डधारकों की छंटनी होनी ही चाहिए। भारत कोई धर्मशाला नहीं है। ऐसे माहौल में सर्वोच्च अदालत का दायित्व ज्यादा बढ़ जाता है कि वह ऐसी छंटनी को वैधता प्रदान करे।

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