श्रावण मास : नही चाहिए ऐसे कांवड़िए बोल रहे है हरिद्वार के लोग!
-डॉ श्रीगोपाल नारसन-
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
जिन कांवड़ियों के मुख्यमंत्री जी ने चरण धोये है, जिनके आगमन को हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा की गई है। वही कांवड़िए जब जरा सी कांवड़ टच हो जाने पर आग बबूला हो जाते है, भक्ति और धैर्य खोकर मासूम व निहत्थे लोगों को पीटने लगते है, व्यवस्था संभाल रही पुलिस के साथ भी दुर्व्यवहार पर उतारू हो जाते है, तो हरिद्वार के लोगों को बोलना ही पड़ता है कि उन्हें ऐसे कांवड़िए नही चाहिए। वास्तव में कांवड़ शिव भक्ति का एक ऐसा मार्ग रहा है, जो सभी के लिए वन्दनीय था, परन्तु कुछ कांवड़ियों की गुंडागर्दी के कारण उनका मन भी खट्टा होने लगा है जो कांवड़ियों के लिए पलक पांवड़े बिछाते रहे है। क्या आप जानते हैं कावड़ यात्रा का इतिहास, सबसे पहले कावड़िया कौन थे। इसे लेकर अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग मान्यता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’का कावड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था। परशुराम, इस प्रचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे। आज भी इस परंपरा का पालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों लोग पुरा महादेव का जलाभिषेक करते हैं। गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान नाम ब्रजघाट है। वहीं कुछ विद्वानों का कहना है कि सर्वप्रथम त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कावड़ यात्रा की थी। माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने के क्रम में श्रवण कुमार हिमाचल के ऊना क्षेत्र में थे जहां उनके अंधे माता-पिता ने उनसे मायापुरी यानि हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की। माता-पिता की इस इच्छा को पूरी करने के लिए श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कावड़ में बैठा कर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया. वापसी में वे अपने साथ गंगाजल भी ले गए। इसे ही कावड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान राम पहले कावडिया थे। उन्होंने बिहार के सुल्तानगंज से कावड़ में गंगाजल भरकर, बाबाधाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। पुराणों के अनुसार कावड यात्रा की परंपरा, समुद्र मंथन से जुड़ी है। समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। परंतु विष के नकारात्मक प्रभावों ने शिव भी प्रभावित हुए। शिव को विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए उनके अनन्य भक्त रावण ने ध्यान किया। तत्पश्चात कावड़ में जल भरकर रावण ने पुरा महादेव स्थित शिवमंदिर में शिवजी का जल अभिषेक किया। इससे शिवजी विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए। कुछ मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकले हलाहल के प्रभावों को दूर करने के लिए देवताओं ने शिव पर पवित्र नदियों का शीतल जल चढ़ाया था। सभी देवता शिवजी पर गंगाजी से जल लाकर अर्पित करने लगे। सावन मास में कावड़ यात्रा का प्रारंभ यहीं से हुआ।
कांवड़ के कई प्रकार है, जैसे, सामान्य कांवड़:
सामान्य कांवड़िए कांवड़ यात्रा के दौरान जहां चाहे रुककर आराम कर सकते हैं। आराम करने के दौरान कांवड़ स्टैंड पर रखी जाती है, जिससे कांवड़ जमीन से न छूए। डाक कांवड़: डाक कांवड़िया कांवड़ यात्रा की शुरुआत से शिव के जलाभिषेक तक लगातार चलते रहते हैं, बगैर रुके। शिवधाम तक की यात्रा एक निश्चित समय में तय करते हैं। यह समय अमूमन 24 घंटे के आसपास होता है। इस दौरान शरीर से उत्सर्जन की क्रियाएं तक वर्जित होती हैंखड़ी कांवड़: कुछ भक्त खड़ी कांवड़ लेकर चलते हैं। इस दौरान उनकी मदद के लिए कोई-न-कोई सहयोगी उनके साथ चलता है। जब वे आराम करते हैं, तो सहयोगी अपने कंधे पर उनकी कांवड़ लेकर कांवड़ को चलने के अंदाज में हिलाते-डुलाते रहते हैं। दांडी कांवड़: ये भक्त नदी तट से शिवधाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं। मतलब कांवड़ पथ की दूरी को अपने शरीर की लंबाई से लेट कर नापते हुए यात्रा पूरी करते हैं। यह बेहद मुश्किल होता है और इसमें एक महीने तक का वक्त लग जाता है।
भगवान शिव ही एक मात्र ऐसे परमात्मा है जिनकी देवचिन्ह के रूप में शिवलिगं की स्थापना कर पूजा की जाती है। लिगं शब्द का साधारण अर्थ चिन्ह अथवा लक्षण है। चूंकि भगवान शिव ध्यानमूर्ति के रूप में विराजमान ज्यादा होते है इसलिए प्रतीक रूप में अर्थात ध्यानमूर्ति के रूप शिवलिगं की पूजा की जाती है। पुराणों में लयनाल्तिमुच्चते अर्थात लय या प्रलय से लिगं की उत्पत्ति होना बताया गया है। जिनके प्रणेता भगवान शिव है। यही कारण है कि भगवान शिव को प्राय शिवलिगं के रूप अन्य सभी देवी देवताओं को मूर्ति रूप पूजा की जाती है।
शिव स्तुति एक साधारण प्रक्रिया है। ओम नमः शिवाय का साधारण उच्चारण उसे आत्मसात कर लेने का नाम ही शिव अराधना है। श्रावण मास में शिव स्तुति मनोकामना पूर्ण करने वाली होती है।
हर साल श्रावण मास में करोड़ो की तादाद में कांवडिये सुदूर स्थानों से आकर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव कस्बे व शहर वापस लौटते हैं इस यात्राको कांवड़ यात्रा बोला जाता है। श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है। कहने को तो ये धार्मिक आयोजन भर है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार भी हैं। कांवड के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए है। पानी आम आदमी के साथ साथ पेड पौधों, पशु – पक्षियों, धरती में निवास करने वाले हजारो लाखों तरह के कीडे-मकोडों और समूचे पर्यावरण के लिए बेहद आवश्यक है। भारत की भौगोलिक स्थिति को देखें तो यहां के मैदानी इलाकों में मानव जीवन नदियों पर ही आश्रित है। कांवड़ मेले में हरिद्वार में चारों ओर शिवभक्त नजर आएंगे। गंगोत्री, ऋषिकेश या फिर हरिद्वार में हर की पेडी से शुरू होकर गंगनहर के समानांतर कांवड़ियों की आस्था की धारा शुरू हो गई है। कांवड़ मेले में जगह-जगह आलोकिक दृश्य देखने को मिलता है। भारतीय लोगों के लिए कांवड़ मेला बिल्कुल अनसुना नहीं है। सावन प्रारंभ होते ही केसरी रंग के कपड़ों में कांवड़िए अपने कंधे पर कांवड़ लटकाकर उसमें गंगाजल भरकर लाते हैं और अपनी मन्नत के अनुसार किसी विशेष शिव मंदिर में उस गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। गंगाजल लाने और उससे शिवलिंग का अभिषेक करवाने तक का यह पूरा सफर पैदल और नंगे पांव किया जाता है। निश्चित तौर पर यह काम बहुत हिम्मत का है, लेकिन शिव भक्ति के सामने कोई भी मुश्किल नही रहती है। कांवड़ियों के पैरों में पड़ने वाले छाले ही कांवड़ यात्रा में एक बड़ी रुकावट बन जाते हैं लेकिन शिव भक्त हार नही मानते हैं। माना जाता है शिव का जलाभिषेक करने से शिव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामना को पूरा करते हैं। सावन के महीने को शिव मास भी कहा जाता है, क्योंकि ये वह महीना होता है जब सारे देवता शयन करते हैं और शिव जाग्रत रहकर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। कांवड़ यात्रा हठयोग की प्रतीक है, लेकिन इस दौरान कावड़ियों को कुछ नियमों का पालन भी करना पड़ता है जो अत्यंत आवश्यक होता है। कांवड़ यात्रा शुरू करते ही कावड़ियों के लिए किसी भी प्रकार का नशा करना वर्जित होता है। कांवड़ यात्रा पूरी होने तक उस व्यक्ति को मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से परहेज करना होता है।
बिना स्नान किए कांवड़ को हाथ नहीं लगा सकते, इसलिए स्नान करने के बाद ही कांवड़िए अपनी कांवड को छू सकते है। चमड़े की किसी वस्तु का स्पर्श, वाहन का प्रयोग, चारपाई का उपयोग, ये सब कावड़ियों के लिए वर्जित कार्य है। इसके अलावा किसी वृक्ष या पौधे के नीचे भी कावड़ को रखना वर्जित है। कांवड़ ले जाने के पूरे रास्ते भर बोल बम और जय शिव-शंकर का उच्चारण करना फलदायी होता है। कांवड़ को अपने सिर के ऊपर से लेकर जाना भी वर्जित माना गया है।
इन सभी नियमों का पालन करना आवश्यक है और इसके लिए कांवड़ियों की संकल्पशक्ति की मजबूती अनिवार्य है। श्रावण मास में कावंड में गंगाजल भरकर पदयात्रा करते हुए शिवालयो में जलाभिषेक करना पूण्यप्राप्ति होना माना जाता है। जिस कावंड में गंगाजल भरकर शिवालय में ले जाया जाता है। उस कावंड को बनाने वाले हिन्दू ही नही बल्कि मुस्लमान भी है। हरिद्वार नगरी के ज्वालापुर, सराय में रफीक के परिवार को साल भर की रोजी रोटी इसी कावंड से मिलती है। यह परिवार रंग बिरंगी कांवड़ तैयार कर अपने घर का चूल्हा जलाता है। कई मुस्लमान हिन्दूओं के इस कावंड मेले में कावंड सहायता शिविर लगाकर धार्मिक सौहार्द एवं आपसी भाईचारे का सन्देश भी देते है। वही इस कावंड मेले को बदरंग करते हुए कुछ कांवडिये भांग का सेवन करते है तो कुछ चरस गांजे का अवैध व्यापार भी इस कावंड मेले की आड में करते है। शिव भक्ति आषाड मास के बीस दिन बीतने के बाद से ही श्रावण मास पूरा होने तक 40 दिन के लिए किये जाने की परम्परा है। जिसकी शुरूआत हो चुकी हैऔर हरिद्वार की सड़कों व हर की पैड़ी पर शिव भक्तो की भीड बढने लगी है। इस बार चार करोड से अधिक कांवडियों के हरिद्वार आकर गंगाजल अपनी कावंड में भरकर ले जाने की सम्भावना है। जिनके लिए हर बार की तरह इस बार भी गंगनहर पटरी मार्ग को कावंड मार्ग बनाया गया है। हालांकि कुछ कांवड़िये राष्ट्रीय राजमार्ग से होकर भी जाने लगे है।
कावंडियो के लाठी डन्डे लेकर व डीजे बजाकर चलने पर भी प्रतिबन्ध लगाया गया है। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी यह प्रतिबन्ध हवा हवाई साबित होगा। क्योकि प्रतिबन्ध के बाद भी कावंडियेे लाठी डन्डे लेकर व डीजे बजाकर चलने से नही रूक पाते है। कावंड मेले को सुगम व सुविधाजनक बनाने के लिए पुलिस को जहां कांवडियों के भेष में तैनात किया गया है वही स्वास्थ्य सेवाओ के लिए डाक्टरो की तैनाती, सफाई के लिए पुख्ता इन्तजाम व खादय पदार्थो की शुद्धता व सही रेट वसूलने की हिदायत दी जाती है। इस बार दुकानदारो को अपना नाम दुकान पर अंकित करने की बाध्यता भी की गई है। जिसे लेकर कांग्रेस ने कड़ा विरोध जताया है। परन्तु वास्तव में जब कांवडियो की भीड उमडती है तो पुलिस प्रशासन कांवडियो के सामने बोने होते नजर आने लगते है।
कांवडियो के कारण गंगनहर मार्ग तो आम जनता के लिए बन्द होगा ही और लोग पिरान कलियर तक भी नही जा सकेगे वही राष्टीय राजमार्ग के भी कम से कम एक सप्ताह तक बन्द रहने की बाध्यता है। जिस कारण स्कूलो, न्यायालयों व सरकारी गैर सरकारी कार्यालयों का कामकाज प्रभावित होना अवश्यसम्भावी है। सच यह भी है कि कावंड मेले के दिनों में हरिद्वार, रूडकी से लेकर मुज्जफरनगर, मेरठ तक के लोग बन्धक हो गए है। इस कांवड मेले में उत्तराखण्ड के साथ साथ उ0प्र0, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल व पंजाब तक के शिवभक्त कांवडियों के रूप में भाग लेते है। लेकिन साथ ही असमाजिक तत्वों का भी इस मेले में जमावडा रहता है जिनसे निपटना पुलिस के लिए चुनौतीपूर्ण होता है। वही उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और उत्तराखंड के रुड़की में कांवड़ियों द्वारा राहगीरों से मारपीट और वाहनों में तोड़फोड़ की घटनाएं हुई हैं। आज तक की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इन घटनाओं ने प्रशासन की तैयारियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सावन के महीने में कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड तक मारपीट की घटनाएं सामने आई हैं. यहां मामूली विवाद में राहगीरों के साथ मारपीट की गई और उनके वाहनों को नुकसान पहुंचाया गया। घटना की जानकारी मिलने के बाद मौके पर पहुंची पुलिस ने भीड़ को किसी तरह शांत कराया और पीड़ितों को भीड़ से बचाया। इन घटनाओं के वीडियो भी सामने आए हैं। हरिद्वार से गंगाजल भरकर दिल्ली के शिवभक्त कावड़ियों की एक टोली नगर के शिव चौक मुजफ्फरनगर पर पहुंची थी। इसी दौरान एक बाइक की साइड कांवड़िए के लग गई, इसके बाद मौके पर हंगामा खड़ा हो गया। कांवड़ियों ने जल खंडित करने का आरोप लगाते हुए बाइक सवार की डंडों से पिटाई करना शुरू कर दिया। इसी के साथ बाइक में जमकर तोड़फोड़ कर दी। इस बवाल के बीच किसी ने घटना की जानकारी पुलिस को दी। सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और बाइक सवार व बाइक को कांवड़ियों के चुंगल से छुड़वाया. पुलिस ने तोड़फोड़ कर रहे कांवड़ियों को बड़ी मुश्किल से शांत कराया। उत्तराखंड के रुड़की में भी ऐसा ही विवाद सामने आया है। यह घटना हरिद्वार-रुड़की राजमार्ग पर बेलडा गांव के पास हुई। यहां कांवड़ियों ने एक कार चालक पर कांवड़ में टक्कर मारकर खंडित करने का आरोप लगाते हुए हंगामा कर दिया। कांवड़ियों ने कार चालक के साथ जमकर मारपीट की और कार को तोड़कर तहस नहस कर दिया। कांवड़ियों ने देखते ही देखते उन्होंने स्कॉर्पियो सवार के साथ मारपीट शुरू कर दी। आसपास मौजूद लोगों ने ड्राइवर को बचाया. इसी के साथ सूचना पुलिस को दी गई। इससे पहले कि पुलिस मौके पर पहुंचती, तब तक काफी संख्या में एकत्र हुए कांवड़ियों ने कार में तोड़फोड़ कर दी. इस घटना का भी वीडियो सामने आया है।
हरिद्वार के बहादराबाद थाना क्षेत्र में कांवड़ से कार टकरा जाने पर कांवड़ियों ने लाठी डंडों से हमला कर दिया। कांवड़ियों और उनके साथियों ने कार पर डंडों से हमला किया और कार सवारों को भी बाहर निकालकर पीटा। शांतरशाह चौकी इंचार्ज खेमेन्द्र गंगवार के अनुसार, इस संबंध में केस दर्ज किया जा रहा है। तीन लोगों को हिरासत में लेकर जेल भेज दिया गया है। तीनों कांवड़िये गंगोह सहारनपुर के रहने वाले हैं। इतना होने के बाद भी कांवड़ियों की सेवार्थ टोल टैक्स निशुल्क कर दिया गया। जबकि रुड़की के लोगों को बहादराबाद व भगवानपुर टोल निशुल्क परिधि में होने पर भी उनसे टैक्स वसूली नियम विरुद्ध की जा रही है।