क्यूआर-सेम कई किमी दूर से ही दुश्मन के हमलों को कर देगी नाकाम
सैन्य बलों को इस मिसाइल प्रणाली से लैस करने पर होगा विचार : राजनाथ
नई दिल्ली, 10 जून (ऐजेंसी/सक्षम भारत)। रक्षा मंत्रालय जल्द ही सेना के लिए नई स्वदेशी क्विक रिएक्शन सरफेस-टू-एयर मिसाइल क्यूआर-सेम प्रणालियों की तीन रेजीमेंटों की खरीद के लिए 30,000 करोड़ रुपए के प्रस्ताव को मंजूरी देने के मामले पर विचार करेगा। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद इस माह के आखिर में इन मोबाइल क्यूआर-सेम प्रणालियों के लिए जरुरी स्वीकृति देने पर विचार करेगी।
बता दें ये प्रणालियां दुश्मन के लड़ाकू विमानों, हेलिकॉप्टरों और ड्रोन को 25 से 30 किलोमीटर की दूरी तक रोकने के लिए डिजाइन की गई है। यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया है जब भारत की मौजूदा बहु-स्तरीय वायु रक्षा प्रणाली ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान द्वारा छोड़े गए तुर्की ड्रोन और चीनी मिसाइलों के हमलों को नाकाम करने में अहम भूमिका निभाई थी। पिछले तीन-चार सालों में डीआरडीओ और सेना ने क्यूआर-सेम प्रणालियों का कई प्रकार के खतरों और उच्च गति वाले हवाई लक्ष्यों के विरुद्ध परीक्षण किया है, ताकि दिन और रात दोनों स्थितियों में इनकी क्षमताओं का मूल्यांकन किया जा सके।
बताया जा रहा है कि रक्षा क्षेत्र की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और भारत डायनेमिक्स लिमिटेड मिलकर इन प्रणालियों का निर्माण करेंगी। इन प्रणालियों के बारे में जानकारी देते हुए एक अधिकारी ने कहा कि क्यूआर-सेम प्रणालियां चलते-चलते संचालन करने में सक्षम हैं, जिनमें सर्च और ट्रैक की सुविधा है और वे कम समय के विराम पर फायर कर सकती हैं। इन्हें टैंक और इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल्स के साथ चलने के लिए तैयार किया है ताकि सामरिक युद्धक्षेत्र में उन्हें हवाई सुरक्षा प्रदान की जा सके।
बता दें ऑपरेशन सिंदूर के दौरान असाधारण प्रदर्शन करने वाली आर्मी एयर डिफेंस को वास्तव में क्यूआर-सेम की 11 रेजीमेंटों की जरुरत है। हालांकि सेना स्वदेशी आकाश प्रणाली की रेजीमेंटों को भी शामिल करती जा रही है, मगर वर्तमान में इसकी अवरोधन क्षमता करीब 25 किमी है। बता दें क्यूआर-सेम प्रणालियों का समावेश वायुसेना और सेना की मौजूदा वायु रक्षा नेटवर्क को मज़बूत करेगा। जहां तक सैन्य बलों के पास पहले से मौजूद प्रणालियों की बात है तो इसमें रूसी एस-400 त्रिउम्फ लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है जिसकी 380 किमी अवरोधन क्षमता है।
इसके अलावा हमारे पास इज़राइल के साथ संयुक्त रूप से विकसित बाराक-8 मीडियम रेंज सेम सिस्टम है जिसकी क्षमता 70 किमी की है। साथ ही हमारे पास रूसी इगला-एस कंधे पर दागी जाने वाली मिसाइलें हैं जिसकी क्षमता 6 किमी है। साथ ही उन्नत एल-70 एंटी-एयरक्राफ्ट गन और स्वदेशी एकीकृत ड्रोन डिटेक्शन व इंटरडिक्शन सिस्टम भी है जिसकी क्षमता 1-2 किमी की है।
बता दें डीआरडीओ बहुत ही कम दूरी की वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली भी तैयार कर रहा है जिसकी अवरोधन क्षमता 6 किमी है लेकिन असली गेम-चेंजर वह वायु रक्षा प्रणाली होगी जिसकी रेंज 350 किमी होगी और जिसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट कुशा के तहत तैयार किया जा रहा है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक भारत इस लंबी दूरी की प्रणाली को 2028-2029 तक संचालन में लाने की योजना बना रहा है। सितंबर 2023 में रक्षा मंत्रालय ने इसकी पांच स्क्वाड्रनों की खरीद के लिए 21,700 करोड़ की एओएन मंजूरी दी थी।