दिल्ली की चुनौती
-डा. अश्विनी महाजन-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
दिल्ली में लगभग 11 वर्षों के आम आदमी पार्टी के शासन के बाद सत्ता भारतीय जनता पार्टी के हाथ आ चुकी है। हालांकि किसी भी राज्य की सरकार हो या केंद्र की सरकार, सबकी चुनौतियां अलग-अलग होती हैं, लेकिन यदि किसी राजनीतिक दल को लोकप्रिय बने रहना है तो उसके लिए सुशासन देना जरूरी होता है। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सत्ता में काबिज होने के बाद लगभग अपराजेय जैसी स्थिति में पहुंच चुकी थी। मुफ्त बिजली, पानी और महिलाओं के लिए मुफ्त सार्वजनिक परिवहन की यात्रा के चलते आम जनता, खासतौर पर गरीब लोगों में अरविंद केजरीवाल अत्यंत लोकप्रिय हो चुके थे। हालांकि भारतीय जनता पार्टी 48 सीटें प्राप्त कर सत्ता पर काबिज हो चुकी है और आम आदमी पार्टी 62 से मात्र 22 सीटों पर सिमट चुकी है। कुछ सीटों पर भारतीय जनता पार्टी को इस बात का भी लाभ मिला है कि कांग्रेस ने थोड़ी बहुत मात्रा में वोट लेकर आम आदमी पार्टी के मार्ग को अवरुद्ध किया। प्रधानमंत्री मोदी हमेशा से ही मुफ्त की योजनाओं के विरोधी रहे हैं, जिसे वे ‘मुफ्त की रेवड़ी’ भी कहते हैं। लेकिन आम आदमी पार्टी को सत्ता से बाहर करने हेतु भाजपा को भी यह घोषणा करनी पड़ी कि जो भी कल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं, उन्हें बंद नहीं किया जाएगा। यही नहीं, गरीब महिलाओं के लिए भी 2500 रुपए प्रति माह से राशि देने का भी वादा भाजपा ने किया है।
विकास की चुनौती : जहां अरविंद केजरीवाल सरकार ने अपना सारा ध्यान मुफ्त की योजनाओं में लगाया था, दिल्ली का विकास और सार्वजनिक योजनाओं का रखरखाव उसमें सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। दिल्ली के लोग पूर्व की भाजपा और कांग्रेस सरकारों को उनकी विकास योजनाओं के नाते ही जानते हैं। जहां दिल्ली के मदनलाल खुराना के मुख्यमंत्री काल में दिल्ली की व्यस्त सडक़ों पर ‘वाई’ आकार के खंबों पर दौड़ती मेट्रो का आगमन हुआ, जिसे बाद में कांग्रेस सरकार ने आगे बढ़ाया। दिल्ली, पूरे देश में अपने फ्लाईओवरों, मेट्रो और सडक़ों के लिए जानी जाने लगी। लेकिन अरविंद केजरीवाल के शासन में दिल्ली का विकास लगभग रुक गया। पिछले 11 वर्षों में दिल्ली में शायद ही कोई नया फ्लाईओवर, विद्यालय, महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय अथवा अस्पताल बना होगा। हालांकि अरविंद केजरीवाल अपने शिक्षा मॉडल को विश्वस्तरीय बताने और अपने मोहल्ला क्लीनिक मॉडल की सफलता बताने में जुटे रहे, लेकिन जमीनी सच्चाई अलग ही कहानी बयां कर रही थी। समझा जा सकता है कि सरकारी खर्च को मुफ्त की योजनाओं पर केंद्रित करते हुए, जो विकास और सार्वजनिक सेवाओं को तिलांजलि देने का जो काम अरविंद केजरीवाल सरकार ने किया, उस नीति को उलटकर फिर से विकास को केंद्र में लाना जरूरी होगा।
यमुना की सफाई और पर्यटन : दशकों की अनदेखी और यमुना में फैक्टरियों के प्रदूषण और अन्य गंदगी को यमुना में डालते जाने और केंद्र तथा दिल्ली के बीच तालमेल के अभाव के चलते यमुना की गंदगी इन चुनावों में मुख्य मुद्दा रही। केजरीवाल ने भी स्वीकार किया कि वे यमुना की सफाई का काम नहीं करा पाए। नई सरकार के सामने यह चुनौती रहेगी कि वादे के अनुसार वह यमुना की सफाई के काम को आगे बढ़ाए। यमुना की सफाई और नदी तट का सौंदर्यकरण कोई असंभव काम नहीं है। लेकिन ऐसा करके दिल्ली को न केवल सुंदर बनाया जा सकता है, बल्कि यमुना तट को पर्यटन का आकर्षक केंद्र भी बनाया जा सकता है। दुनिया भर में नदियां पर्यटन का आकर्षण हैं। हमारे देश में भी पवित्र नदियों के घाटों में स्नान की सनातन परंपरा है। कुंभ से पूर्व गंगा की सफाई का भारी काम उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने किया है। प्रधानमंत्री ने दिल्ली चुनाव के बाद भी यमुना की सफाई के अपने संकल्प को दोहराया है। आशा की जा सकती है कि आने वाले कुछ वर्षों में यमुना की पवित्रता को पुन: स्थापित किया जा सकेगा।
संसाधनों की नहीं है कमी : दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय देश की प्रति व्यक्ति आय से लगभग दोगुनी है। यही कारण है कि दिल्ली में प्रति व्यक्ति राजस्व भी सभी राज्यों के सम्मिलित प्रति व्यक्ति राजस्व की तुलना में लगभग दोगुना है। गौरतलब है कि दिल्ली का कुल कर राजस्व 2013-14 में 25919 करोड़ रुपए था जो वर्ष 2023-24 के बजट अनुमानों के अनुसार 53565 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका था। इसके अलावा, केंद्रीय कर प्राप्तियों का भी एक बड़ा हिस्सा दिल्ली को मिलता है। गौरतलब है कि दिल्ली का अपना कर राजस्व सभी राज्यों के कर राजस्व का 2.5 प्रतिशत है, जबकि देश की जनसंख्या में इसका हिस्सा मात्र 1.4 प्रतिशत ही है। इसी राजस्व का लाभ उठाते हुए अरविंद केजरीवाल से पूर्व की शीला दीक्षित सरकार ने 1999-2000 और 2014-15 के बीच के 15 वर्षों में पूंजीगत व्यय को मात्र 510.5 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 7430 करोड़ रुपए कर दिया, यानी प्रतिवर्ष 19.6 प्रतिशत की वृद्धि। खेद का विषय यह है कि वर्ष 2023-24 तक इसे सिर्फ 16230 करोड़ रुपए तक ही बढ़ाया गया, यानी मात्र 9 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि। पूंजीगत अथवा विकासगत व्यय पर्याप्त रूप से नहीं बढऩे का मुख्य कारण यह था कि अरविंद केजरीवाल की सरकार अपने बजट का बड़ा हिस्सा मुफ्त बिजली, पानी के अलावा प्रचार पर खर्च करती थी। गौरतलब है कि 2023-24 के वर्ष में 557 करोड़ रुपए से ज्यादा का प्रावधान प्रचार के लिए रखा गया था। समझा जा सकता है कि यदि अरविंद केजरीवाल सरकार मुफ्त की योजनाओं की बजाय दिल्ली के विकास कार्यों पर खर्च करती तो दिल्ली की तस्वीर ही कुछ अलग होती। ऐसे में नई सरकार के समक्ष यह चुनौती रहेगी कि कैसे तथाकथित जनकल्याणकारी योजनाओं को जारी रखते हुए दिल्ली के विकास के लिए पर्याप्त संसाधन आवंटित किए जाएं।
क्या हो प्राथमिकता : दिल्ली के सभी क्षेत्रों में जल आपूर्ति सुनिश्चित करना, शहरी कूड़े का निदान, स्वच्छता की व्यवस्था, झुग्गी-झोंपड़ी के स्थान पर हाउसिंग की सही व्यवस्था, आवश्यकता के अनुसार सडक़ों का चौड़ीकरण, फ्लाईओवरों का निर्माण और सडक़ों का रखरखाव समेत विविध विकास कार्यों को केंद्र में रखकर बजट बनाने की जरूरत होगी। अपने चुनाव अभियान के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली के झुग्गी निवासियों को एक वायदा किया, जो झुग्गी वासियों के लिए एक स्वप्न जैसा है, कि झुग्गी वासियों की जहां झुग्गियां हैं, वहीं उन्हें पक्का मकान मिलेगा। इस वायदे को इस कारण भी निभाना जरूरी है, क्योंकि इसी के द्वारा दिल्ली राजधानी को एक सही पहचान मिल सकेगी। अरविंद केजरीवाल सरकार की सबसे बड़ी नाकामी यह रही कि हालांकि वे 2000 लीटर पानी मुफ्त में उपलब्ध कराने का दंभ भरते रहे, लेकिन न तो दिल्ली के सभी स्थानों पर जल की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकी और न ही दिल्लीवासियों को साफ पानी मिल सका। बदबूदार और गंदा पानी दिल्ली जल बोर्ड की जैसे पहचान बन गई थी। दिल्ली जल बोर्ड की वित्तीय हालत भी इस कदर बिगड़ गई थी कि उस पर लगभग 2021-22 तक 73197 करोड़ रुपए का ऋण बकाया था। दिल्ली अपने कूड़े के ढेरों के लिए देश और दुनिया में बदनाम है। यह जरूरी होगा कि नई प्रौद्योगिकी के प्रयोग और पर्याप्त संसाधन आवंटित कराते हुए दिल्ली को कूड़े से मुक्ति दिलाते हुए उसे उसकी सही पहचान दिलाई जाए। दिल्ली में लगातार बढ़ते ट्रैफिक जाम से निजात दिलाने के लिए फ्लाईओवरों के निर्माण, सडक़ों के चौड़ीकरण और सडक़ों के सही रखरखाव हेतु पर्याप्त संसाधन जुटाने होंगे। पर्यावरण प्रदूषण से मुक्ति भी दिलानी होगी।