राजनैतिकशिक्षा

द्रविड़/श्रमण संस्कृति के कट्टर समर्थक, विज्ञानवादी, मानवतावादी, बुद्धिवादी, अनीश्वरवादी एवं एक उत्कृष्ट सामाजिक क्रान्तिकारी का आज 24 दिसम्बर को *परिनिर्वाण दिवस है। उस महान शख्सियत को मेरी चित्रात्मक आदरांजलि

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

द्रविड़/श्रमण संस्कृति के कट्टर समर्थक, विज्ञानवादी, मानवतावादी, बुद्धिवादी, अनीश्वरवादी एवं एक उत्कृष्ट सामाजिक क्रान्तिकारी का
आज 24 दिसम्बर को *परिनिर्वाण दिवस है। उस महान शख्सियत को मेरी चित्रात्मक आदरांजलि
पेरियार ई.वी.रामा स्वामी नायकर ।
(17 सितंबर,1879 — 24 दिसम्बर, 1973 )
जीवन- परिचय
पेरियार ई.वी.रामास्वामी नायकर का जन्म दक्षिण भारत के ईरोड (तमिलनाडु) नामक स्थान पर भारतीय मूलनिवासी बहुजन समाज में, (वर्णव्यवस्था के अनुसार शूद्र वर्ण के पाल वंश में) 17 सितम्बर, 1879ई. में हुआ था। उनके पिता का नाम वेंकतप्पा नायडू था। उनकी माता का नाम चिन्नाथायाम्मल था। उनका एक बड़ा भाई और दो बहनें थीं। उनके पिता जी एक धनी व्यापारी थे। उनकी स्कूली शिक्षा चौथी कक्षा तक हुई थी। उनका परिवार कट्टर धार्मिक तथा रूढ़िवादी था। लेकिन वे परम्पराओं के विपरीत बचपन से ही थे और तार्किक पद्धति से चिन्तन- मनन करने लगे थे।

पेरियार रामास्वामी नायकर गांधी जी से प्रभावित होकर 1919 ई. में कांग्रेस में शामिल हुए थे। उन्होंने देखा कि कांग्रेस सरकार केवल ब्राह्मण एवं ऊंची जातियों का कल्याण करती है। तब वे 1925ई. में कांग्रेस से अलग हो गए। कांग्रेस को तिलांजलि देने के पश्चात् पेरियार रामास्वामी नायकर ने ‘आत्मसम्मान आंदोलन’ की स्थापना की। 1931 में उन्होंने रूस, जर्मनी, इंग्लैण्ड, स्पेन, फ्रांस तथा मध्यपूर्व के अन्य देशों का भ्रमण किया। उन्होंने रूस के कल-कारखाने, कृषि-फार्म, स्कूल, अस्पताल, मजदूर संगठन, वैज्ञानिक शोध केन्द्र, उत्तम कला केन्द्र संस्थाओं का अवलोकन किया और बहुत प्रभावित हुए।

देश की आजादी के बारे में वे कहते थे कि यह वह स्वतंत्रता नहीं है, जो सभी भारतीयों को दी गई है। इस स्वतंत्रता से गैर-ब्राह्मणों को कोई लाभ नहीं हुआ है। वे कहीं भी प्रतिनिधित्त्व नहीं करते हैं। इसी वजह से देश में गरीबी और महामारी बनी हुई है।

उनका मानना था कि धर्म एक षड्यंत्र है। कोई दिव्य शक्ति नहीं है, जो धर्म की ज्योति को जलाए रखती है। धर्म का आधार अन्धविश्वास है। विज्ञान में धर्मों का कोई स्थान नहीं है। इसलिए बुद्धिवाद धर्म से भिन्न है। सभी धर्मिक कहते हैं कि किसी को भी धर्म पर संदेह या सवाल नहीं करना चाहिए।

यदि हम मंदिरों की संपत्ति और अर्जित आय को नए उद्योग शुरू करने के लिए खर्च कर दें, तो न कोई भिखारी, न कोई अशिक्षित और न कोई निम्न स्तर वाला व्यक्ति होगा। सभी समान होंगे।

पेरियार श्रमण/द्रविड़ संस्कृति के कट्टर समर्थक, मानवतावादी, बुद्धवादी, अनीश्वरवादी, विज्ञानवादी, एक सामाजिक क्रान्तिकारी महापुरुष थे। उनका मानना था कि राजनैतिकि सुधार से पहले सामाजिक सुधार होना चाहिए। जब सभी मनुष्य जन्म से बराबर हैं, तो ब्राह्मण ऊंचा बाकी सब नीच कैसे हैं? यह मानसिकता पहले बदलनी चाहिए।

जब तक ब्राह्मणवाद खत्म नहीं हो जाता है। तब तक द्रविड़ियन स्वाभिमान आन्दोलन सक्रिय और जिन्दा रहेगा। आंदोलन के दौरान हमारे दुश्मनों या सरकार द्वारा हमारे साथ अत्याचार, दमन, साजिश और विश्वासघात किया जा सकता है, लेकिन हमें पक्का विश्वास है कि निश्चित रूप से हमें सफलता मिलेगी।

रामास्वामी नायकर के अनुयायियों ने उन्हें ‘थंथाई (पिता) ‘पेरियार’ (महान) की उपाधियों से विभूषित किया। यूनेस्को ने उन्हें नये जमाने का ‘पैगम्बर’, दक्षिण पूर्व एशिया का ‘सुकरात’, समाज सुधार का ‘जनक’, अज्ञानता, अंधविस्वास और निरर्थक प्रथाओं का ‘यम’ जैसे विशेषणों से सम्मानित किया है। 24 दिसंबर, 1973 को वेल्लोर के एक अस्पताल में पेरियार रामास्वामी ने अंतिम सांसें ली।

पेरियार का मिशन-

१. द्रविड़ियन स्वाभिमान का आंदोलन- उनका
ऐतिहासिक आन्दोलन मूलनिवासी द्रविड़ अस्मिता को जगाकर विदेशी आर्य ब्राह्मण के खिलाफ आधुनिक युग में लड़ा गया आर्यावर्त V/s दक्षिण का आंदोलन था, जो ठीक उसी तरह था जैसे काल्पनिक ग्रन्थ रामायण में राम V/s रावण का था। पेरियार ब्राह्मणवाद के वर्चस्व को दक्षिण में किसी भी रूप में स्वीकार करने को तैयार नही थे।

२- ईश्वरवाद के खिलाफ आंदोलन- ईश्वर और भक्त के बीच ब्राह्मण पुरोहित बनकर जनता का शोषण तब तक करता रहेगा जब तक हम काल्पनिक ईश्वर पर विश्वास करते रहेंगे । उन्होंने ईश्वर का पुरजोर खंडन किया। वे किसी भी रूप में ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नही किया। पेरियार एक महान नास्तिक हैं। जिन्होंने तर्क और विज्ञान को सर्वोपरि माना था।

३- मनुवादी व्यवस्था विरोधी आंदोलन- पेरियार ने ब्राह्मणवाद से मुक्ति का मार्ग धर्मपरिवर्तन के बजाय ब्राह्मण मान्यताओं का खात्मा ज्यादा अच्छा समझा। उनका विचार था कि यदि समाज ब्राह्मणों की मान्यता, परम्परा, संस्कार, पर्व , व्रत, ज्योतिष, भगवान आदि को ही नकार देगा, तो ब्राह्मणों का सनातन (हिन्दू) धर्म अपने आप खत्म हो जाएगा।
4- बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर और पेरियार रामास्वामी नायकर का सम्बन्ध

यहाँ एक बात और बताना जरूरी है कि बाबा साहब डॉ भीम राव अम्बेडकर और पेरियार रामास्वामी नायकर के वैचारिक सम्बंध बहुत गहरे थे, वे आपस में तात्कालिक परिस्थियों के अनुसार सलाह मशवरा करते थे, 6ठवां बौद्ध संघायन रंगून में भी एक साथ शामिल हुए थे। बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर धर्मपरिवर्तन को अनिवार्य मानते थे। उनका मानना था कि एक सामान्य व्यक्ति के लिए धर्म बेहद जरूरी है, धर्म उसके सामाजिक संस्कारों की जरूरत को पूरा करता है।

परिणामः हम कह सकते हैं कि पश्चिम भारत में शूद्रों/अतिशूद्रों की आजादी का आंदोलन ज्योतिबा राव फूले/छत्रपति शाहूजीमहाराज /बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर ने चलाया। वही आन्दोलन दक्षिण में नारायणा गुरू और पेरियार रामास्वामी नायकर ने
चलाया था।
जय भीम ,जय भारत, जय संविधान।
पेरियार रामास्वामी नायकर अमर रहें।
बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर अमर रहें।।

डॉ जी पी मानव
(सेवानिवृत्त उपप्राचार्य केन्द्रीय विद्यालय संगठन, भारतसरकार नई-दिल्ली)

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