कुचल देंगे ना’पाक आतंकवाद
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
जम्मू-कश्मीर के सुरक्षा-हालात पर प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने जो शीर्ष बैठकें की हैं, वे बेमानी नहीं हैं, लेकिन उन्हीं से पाकपरस्त आतंकवाद को कुचला और जड़ से उखाड़ा नहीं जा सकता। कश्मीर घाटी और अन्य राज्यों में सक्रिय आतंकवाद या उग्रवाद के उदाहरण हमारे सामने हैं। सेना, सुरक्षा बलों, पुलिस और स्थानीय गुप्तचरों के साझा ऑपरेशन कई साल तक चलाने पड़े, तो आज घाटी लगभग आतंकवाद-मुक्त है। हम इन बैठकों को खारिज नहीं करते, क्योंकि कई विचार सामने आकर साझा किए जा सकते हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय सीमा, नियंत्रण-रेखा से जम्मू-कश्मीर की जमीन तक जो सेना सक्रिय रही है, उसके समानांतर सुरक्षा-बल तैनात और सक्रिय रहे हैं। स्थानीय सूचनाओं और गतिविधियों की सूत्रधार स्थानीय पुलिस रही है। ऐसी तमाम एजेंसियों को एक सर्कुलर के जरिए निर्देश और आदेश दिए जा सकते थे। उपराज्यपाल के जरिए केंद्र सरकार अपना आदेश दे सकती है। जम्मू संभाग के राजौरी, पुंछ, कठुआ, डोडा से किश्तवाड़ तक आईबी गुप्तचर की सूचनाएं इतनी सटीक नहीं हो सकतीं, जितनी एक स्थानीय जासूस की गुप्तचरी सटीक हो सकती है और लक्ष्य तक पहुंचना आसान हो सकता है। जम्मू में खुफिया-तंत्र की कमियां अब भी महसूस की जा रही हैं। वैसे जम्मू संभाग में आतंकी हरकतें अचानक नहीं बढ़ी हैं। ये आतंकियों की रणनीति हो सकती हैं। अलबत्ता 1990-2005 के सालों में जम्मू के घने जंगलात में आतंकी गतिविधियां और हमले निरंतर देखने को मिलते रहे। यह दीगर है कि घुसपैठ, गिरोहबाजी, अलगाववाद और पाकपरस्त आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन और अभियान कश्मीर घाटी में ज्यादा किए जाते रहे। तब जम्मू को आतंकवाद-मुक्त करा लिया गया था।
अब नए सिरे से आतंकियों ने अपने नेटवर्क जम्मू में फैलाए हैं और अचानक हमले बढ़ा दिए गए हैं। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद नगण्य है। फिर भी 2024 में अभी तक 20 आतंकी हमले किए जा चुके हैं और 13 जून तक 42 नागरिकों और जवानों ने अपनी जिंदगी खोई है। भारत ऐसा नुकसान भी क्यों झेले? बहरहाल केंद्र सरकार से जो निर्देश मिले हैं, उनके मद्देनजर जम्मू-कश्मीर पुलिस महानिदेशक स्वैन का दावा है कि अब बचे-खुचे आतंकवाद को कुचल दिया जाएगा, मसल दिया जाएगा, घर-घर ढूंढ कर चुन-चुन कर मौत के घाट उतार दिया जाएगा। बहरहाल हमारी सुरक्षा एजेंसियों और जवानों की अग्निपरीक्षा ‘अमरनाथ यात्रा’ है। यह 29 जून से शुरू हो रही है और अगले ही दिन जनरल उपेन्द्र द्विवेदी नए सेना प्रमुख का कार्यभार संभाल रहे हैं। वह कश्मीर और आतंकवाद से अनभिज्ञ, अपरिचित नहीं हैं। अमरनाथ यात्रा अगस्त तक जारी रहेगी। आतंकी हमला करने की फिराक में होंगे और हमारी सुरक्षा एजेंसियों ने फुलप्रूफ योजना बनाई होगी। यात्रा के चप्पे-चप्पे पर 500 कंपनियों के जवान तैनात किए जा रहे हैं। खुफिया सूचनाओं पर तुरंत कार्यवाही की जा रही है। खासकर टीआरएफ आतंकी संगठन के साथ-साथ लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद के दहशतगर्दों पर भी निगाहें चिपकी रहेंगी। इस बार प्रशासन ने प्रत्येक तीर्थयात्री का 5 लाख रुपए का बीमा भी किया है। जम्मू-कश्मीर और आतंकवाद के संदर्भ में हमारे उन अनुभवी जनरलों की सोच कुछ भिन्न है, जो दशकों तक कश्मीर में कार्यरत रहे हैं और आतंकियों को ढेर किया है।
वे जनरल हालिया आतंकी हमलों से क्षुब्ध हैं, क्योंकि आतंकियों ने उस दिन हमला करके भारत के गाल पर तमाचा मारा था, जब देश की सरकार शपथ ले रही थी। अब ऐसे रक्षा विशेषज्ञों की राय है कि पाकिस्तान के साथ जो युद्धविराम किया हुआ है, तुरंत उस समझौते को रद्द किया जाए। यह युद्धविराम एकतरफा और बेमानी है, क्योंकि पाकिस्तान आतंकियों की घुसपैठ कराता रहा है। आतंकियों को हथियार भी मुहैया कराता है। विशेषज्ञों का परामर्श है कि अब पाकिस्तान की फौज के मुख्य ठिकानों पर ही हमला किया जाए। सिर्फ आतंकी अड्डों, लॉन्चिंग पैड, प्रशिक्षण शिविरों आदि पर ही हवाई हमले करने से आतंकियों की घुसपैठ नहीं रुकेगी। पाकिस्तान फिलहाल फटीचर देश की स्थिति में है। उसकी फौज पर निरंतर हमले करेंगे, तो उसकी फौज ही विकलांग हो जाएगी। वह पलटवार करने लायक भी नहीं रहेगी।